Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 07
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रं : प्रा० 20 ] [ 443 णं मणुस्सलोअंमि मणुस्सा वदंति-चंदेण वा सूरंण वा राहुस्स कुच्छी भिराणा 13 / ता जता णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं थावरेत्ता पच्चोसकति तता णं मणुस्सलोए मणुस्सा एवं वदंति-राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते राहुणा 2, 14 / ता जता णं राहू देवे श्रागच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं थावरेत्ता मझ मझेणं वीतिवतति तता णं मणुस्सलोयंसि मणुस्सा वदंतिराहुणा चंदे वा सूरे वा विइयरिए राहुणा 2, 15 / ता जता णं राहू देवे श्रागच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं पावरेत्ता णं अधे सपक्खिं सपडिदिसि चिट्ठति तता णं मणुस्सलोअंसि मणुस्सा वदति-राहुणा चंदे वा सूरे वा पत्थे राहुणा 2, 16 / कतिविधे णं राहू पराणते ?, दुविहे पराणत्ते, तंजहाता धुवराहू य पव्वराहू य 17 / तत्थ णं जे से धुवराहू से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए पराणरसइभागेणं भागं चंदस्स लेसं पावरेमाणे 2 चिट्ठति, तंजहा-पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसमं भागं, चरमे समए चंदे रत्ते भवति अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ, तमेव सुकपक्खे उवदंसेमाणे 2 चिट्ठति, तंजहा-पढमाए पढम भागं जाव चंदे विरत्ते य भवइ, अवसेसे समए चंदे रत्ते विरत्ते य भवति 18 / तत्थ णं जे ते पव्वराहू से जहराणेणं छराहं मासाणं, उकोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदस्स अडतालीसाए संवच्छराणं सूरस्स 11 // सूत्रं 103 // ता कहं ते चंदे ससी श्राहितेति वदेजा ?, ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरगणो मियंके विमाणे कंता देवा कंताश्रो देवीयो कंताई श्रासण-सयण-खंभ-भंडमत्तोवगरणाई अप्पणावि णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभे पियदंसणे सुरूवे ता एवं खलु चंदे ससी चंदे ससी अाहितेति वदेजा 1 / ता कहं ते सूरिए श्रादिच्चे सूरे 2

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