Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Author(s): Gunvallabhsagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ प्रथम आगम - आच २) विनय से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से चारित्र, चारित्र से मोक्ष और मोक्ष से अव्याबाध सुख मिलता है। सभी जीवोने देवेन्द्र, चक्रवर्ती, तीर्थंकर और भाव साधुपणा, इनको छोडकर बाकी सब प्रकार के जन्म अनंतीबार लीए है । ३) निंदाखोर साधु “अनंत संसारी" है। ४) माया और लोभ ये दोनो राग के कारण है, और क्रोध और मान (अहंकार) यह दोनो द्वेष के कारण है। साधु के संयम पालन में राजा, गृहस्थ, छकाय, साधुवृंद (गुरुकुलवास), शरीर, आहार, उपकरण यह सब सहायक तत्व है। ६) दुकान से खरीदे हुए धर्मोपकरण भी साधु को कल्पे नही। आहार ग्रहण करते समय साधु को “प्रमाण और मात्रा" का ज्ञान होना जरुरी है। ८) मुनि रस रहित लुखे-सुखे आहार का सेवन करें, यह उत्सर्ग मार्ग है। कहा है कि अगीतार्थ साधु साध्वीजी-निरवद्य वचन से अनजान है उसे तो बोलने का भी अधिकार नहीं, तो प्रवचन देने का अधिकार तो कहाँ से होवे ? १०) तप कषाय के साथ साथ ‘शोक और 'वेद' को भी जलाता है। . ११) निंदा के साथ और प्रमाद के साथ वैराग्य नही रहते ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 86