Book Title: Agam Ke Panno Me Jain Muni Jivan Author(s): Gunvallabhsagar Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust View full book textPage 4
________________ प्रस्तावना अध्यात्म का आईना यानि आगम...... इस आगम दर्पण में अपने आत्मा का निरिक्षण-परिक्षण करके सम्यक् पराक्रम करना यही मानवजीवन में करने योग्य कार्य है। पूर्वाचार्यो में इन्ही आगमो का आधार लेकर संस्कृत-गुजराती-हिन्दी-फारसी आदि में अनेकानेक ग्रन्थो की रचना की है - कृतीओंका सर्जन किया हैं, उन सभी शास्त्रो का मूल तो आगम पंचांगी' ही है। श्वेताम्बर मूर्तीपूजक संप्रदायो में मूल आगम और उसकी पंचागी का वांचन श्रमण समुदाय मे कम है - यह प्रस्तुत पुस्तक जो कि सरल हिन्दी भाषा में है, यह सभी साधु-साध्वीजी भगवंतो को अपनी संयम यात्रा के सम्यक चिंतन के लीए उपयोगी बने - अनुपेक्षा रुप स्वाध्याय में सहायक बने... परिणती के सुयोग्य सर्जन में पूरक बने .., सत्यमार्ग की समज का बोधक बने मोक्षमार्ग की साधना-आराधना में मार्गदर्शक बने, यह शुभ भावना से यह पुस्तक का संकलन किया गया है। गिरनारजी तीर्थ में हुई १० महिने की स्थिरता के दौरान संकलित हुए यह प्रभुवचन चर्तुविध संघ के सभी भव्यजनो के जीवन में सम्यक परिवर्तक बनकर आत्मिक उत्थान के कारक बनकर कर्मनिर्जरा में सहायक बने यही मंगल शुभ कामना। सबका मंगल हो... सबका कल्याण हो... लि. मुनि गुणवल्लभसागर पुस्तक प्राप्ति स्थान : सोमचंदभाई लोडाया - 9322275440 ए-१०४, साई क्लासिक बि., महात्मा फुले रोड, मुंलुंड (पूर्व), मुंबई प्रकाश वीरा - 022-2300 8871 तीर्थ मार्केटिंग, अमिती ग्रुप, शॉप नं. ३, करीम बिल्डिंग, ए.स. करी रोड, ग्रांट रोड (पूर्व), मुंबईPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 86