Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 9
________________ (९) नववे अध्ययन में 'पांच आचार का पालन करने वाला ही विनयशील होता ' अतः विनय के स्वरूप का निरूपण किया है । (१०) दशवें अध्ययन में - पहले कहे हुए नव अध्ययनों में कहो हुई विधिका पालन करने वाला ही भिक्षु हो सकता है' इसलिए भिक्षु के स्वरूप का वर्णन किया है । निवेदक समीर मुनि * (श्री दशवेकालिकसूत्रका सम्मतिपत्र ) ॥ श्रीवीरगौतमाय नमः ॥ सम्मति - पत्रम् - मए पंडियमुणि हेमचंदेण य पंडिय - मूलचन्दवासवारापत्ता पंडिय- रयण-मुणिघासीलाले विरइया सक्कय-हिंदी-भासाहि जुत्ता सिरि-दसवेयालिय-नाम सुत्तस्स आयारमणिमंजूसा वित्ती अवलोइया, इमा मणोहरा अस्थि, एत्थ सदाणं अइसयजुत्तो अत्थो वणिओ विउजाणं पाययजणाण य परमोवयारिया इस वित्ती दीस ! आयारविसए वित्तीकत्तारेण अइसयपुव्वं उल्लेहो कडो, तहा अहिंसाए सरूत्रं जे जहा तहा न जाणंति तेर्सि इमाए वित्तीए परमलाही भविस्सर, कचुणा पत्तेयविसयाणं फुडरूवेण वण्णणं कडं, तहा मुणिणो अरहत्ता इमाए वित्तीए अवलोयणाउो अइसयजुत्ता सिज्झइ ! सक्कछाया सुपयाणं पयच्छेओ य सुबोहदायगो अस्थि, पत्तेयजिष्णासुणो इमा वित्ती agar | अम्हाणं समाजे एरिसविज्ज- मुणिरयणाणं सभाओ समाजस्स अहोभगं अस्थि, किं ? उत्तविज्जमुणिरयणाणं कारणाओ जो अम्हाणं समाजो सुत्तप्पाओ अम्हकेरं साहिच्च च लुत्तप्पायं अत्थि तेसिं पुणोवि उदओ भविस्सर जस्स कारणाओ भवियप्पा मोक्खस्स जोग्गो भविता पुणो निव्वाणं पाविहिर अओहं आयारमणि - मंजूसाए कत्तणो पुणो पुणो धन्नवार्य देमि - ॥ वि सं १९९० फाल्गुनशुक्लत्रयोदशी मङ्गले (अलवर स्टेट) શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર : ૧ इइ उवज्झाय- जइण- मुणी, आयारामो (पंचनईओ) શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રનું સમ્મતિ પત્ર શ્રમણુ સઘના મહાન આચાય આગમ વારિધિ સતન્ત્ર સ્વત ંત્ર જૈનાચાર્ય પૂજ્યશ્રી આત્મારામજી મહારાજે આપેલા સમ્મતિ પત્રને ગુજરાતી અનુવાદ. *

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