Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अपज्जत्त-अपुराण
५५६
अपज्जत्त अपर्याप्त | रा० ७५६. जी० ११५१,६३, अपराजित | अपराजित जी० ३१८१,२६६,७०७,
६५,१०१, ३११२६६,१३३,१३४, ४।२५; ७१३,८२४ ५५१७,२४,२६ से ३०,३३,३५,३६,३६ ४०, अपराजिय [अपराजित | ओ० १६२.जी० ३१७९६, ४२,४५,४८,५०,५२,५४ से ६०
८१३ अपजतग | अपर्याप्तक | ओ० १८२. जी० १३१४, अपराजिया (अपराजिता] जी० ३ ६१६, १०२६
५८,६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००, अपरिगह | अपरिग्रह | अं.० १६३ १०३,१११,११२,११६,११८,१२१,१२६,१३५; अपरितावणकर [अपरितापगकर अं० ४० ३।१३६,१३६,१४०,१४६, ४।२,५,१८,२०, अपरित्त अपरीत ] जी० ११६७,७४; ६७५,७६, २२,२३,२५: ५।३,४,७,११,१८ से २२,२५ ८ ७
से २७,३१ से ३४,३६; १०,६३,६४ अपरिपूय [अपरिपूत] ओ० १११ से ११३,१३७, अपज्जत्तय [अपर्याप्तक] जी० ११५५,१०१, ४११० १३८ अपज्जत्ति [अपर्याप्ति ] जी० श२७,८६,६६,१०१, अपरिभूय [अपरिभूत ] ओ० १४१. रा० ६७५, ११६,१२८,१३३,१३६
७६६ अपज्जवसित अपर्यवसित ] जी ० ६।२३,२४,६६, अपरिमिय [अपरिमित | ओ० ४६,७१. रा०६१ ८१,८२,६२,१०४,१२५,१७५,१९२,२०१,२४० अपरियाइत्ता अपर्यादाय] जी० ३९९०
अपरियाधिय | अपरितारित] जी० ३१६३० अपज्जवसिय अपर्यवसित] ओ० १८३,१८४,१६५.
अपरिवार [अपरिवार रा० २०७,२६५,२६७, जी० ६११० से १३,१६,२५,२६,३१,३३,३४,
२६६. जी० ३।४२८,४३१,४३४ ४५,५४,५८,६०,६५,६८,७१,७२,८६,६८,
अपरिसेसिय [अपरिशेषित] जी० ३।७५१ ११०,११६,१३३,१३५,१४५,१६३,१६४,१७४.
अपलिक्खीण [अपरिक्षीण | ओ १७१ १७६,१८०,१६५,२०२,२०५,२०६,२१५,२१६,
अपवरक अपवरक जी० ३।५९४ २२७,२३०,२४६,२६१,२६५,२७६,२८५
अपसस्थकाय विणय अप्रशस्तकायविनय | ओ० ४० अपडिकूलमाण [अप्रतिकूलयत् ] ओ० ६६
अपसस्थमणविणय अप्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० अपडिक्कत | अप्रतिक्रान्त ) ओ ६५,१५५.१५६
अपसत्यवइविणय अप्रशस्तवाविनय ओ० ४० अपडिबद्ध [अप्रतिबद्ध | ओ० ७४४
अपस्समाण [अपश्यत् । ओ० ११७ अपडिविरय | अप्रतिविरत ] ओ० १६१
अपासमाण [अपश्यत् रा० ७६५ अपढम [अप्रथम ] जी० १६; ७:१,३,५,१०,१२, अपि [अपि] ओ० २३. रा० १६. जी० ११३४ १४,१६,१८,२१ से २३; ६:१ से ७,२३२,
___ अपुट्ठ ! अस्पृष्ट] जी० ११४१ २३४,२३६,२३८, २४२,२४४,२४६ २४८,
अपुट्ठलाभिय अपृष्टलाभिक ] ओ० ३४ २५१ से २५३ २५५,२६७,२६६,२७१,२७३,
अयुणरावत्तग [अपुनराव कि ओ० १९,२१,५४ २७६ २७८,२८०,२८२,२८५,२८७ से २६३
अपुणरायत्तय [अपुनरावर्तक स० ८ अपतिट्ठाण [अप्रतिष्ठान | जी० ३।१२
अपुणरावित्ति [अनावृत्ति, अपुनरावतिन् ] रा० अपत्तट्ट [अप्राप्तार्थ] ग० ७५८,७५६
२६२. जी० ३:४५७ अपद | अपद जी० ३.१९६
अपुणरुत्त ( अपुनरुक्त ] २१० २६२, जी० ३४५७ अपराइत [अपराजित ] जी० ३।६४१
अपुण्ण [पूर्ण] रा० ७६३ अपराइय [अपराजित] जी० ३१५६६
अपुग्म [अपुण्य] रा० ७७४
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