Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 268
________________ झल्लरी-ठियलेस सल्लरी झल्लरी] ओ०६७. रा० १३,७७,६५७. जी० ३१२८ से ३२, ७८,४४६, ६१८ झस | झप] ओ० १६. जी. ३१५९६ झाण [ध्यान ] ओ० ३८,४३, ४६ झाणकोट्ठोवगय [ध्यानकोष्ठोपगत ] ओ० ४५,८२ साम [दग्ध] जी० ३६६ झिाम [दह, ] झाभिज्जइ रा०७६७ ‘झिया [ध्य] --झियाइ रा० ७६५ --झियामि । रा० ७६५.---झियायसि रा० ७६५ झियायमाण [ध्यायत् ] रा० ७६५ झीण क्षीण ] ओ० ११६,११७. रा० ७७४ झीणोदग क्षीणोदक ] आ० ११७ मुसिय [ शुषित] जी० ३।११८,११६ झुसिर [शुषिर] जी० ३१८०,९६,४४७,५८८ झूसणा [जूषणा] ओ० ७७ सूसित्ता जुषित्वा] आ० १४० झूसिय [जुष्ट, शुषित ] ओ० ११७ ठाणपय स्थानपद] जी० ३३१०४८,१०५६ ठाणप्पय [स्थानपद] जी० ३१७७ ठाणमग्गण [स्थानमार्गण] जी० ११३४,३६,३६ ठि [ स्थिति] ओ० ८६ से ६५,११४,११७.१४०, १५५,१५७ से १६०, १६२,१६७,१७१. रा० ६६५.६६६. जी०१:१४,५२,५६,६०; २११५१; ३२१२७१५,१२६३५,१६०,६३१,१०४२ ठिइक्खय [स्थितिक्षय ] ओ० १४१ रा० ७६ ठिइय [स्थितिक | ओ० ७०. जी० ११३३ ठिइडिया [स्थितिपतिता] मो० १४४ ठिईय [स्थितिक] जी० ३१७२१ ठिच्चा [स्थित्वा] रा० ७३६ ठित [स्थित जी० ३।३०३,८४५ ठिति [स्थिति] रा० ७६८,८१५, जी० ११६५, ७४,८२,८७,८८,६६,१०३,१११,११२,११६, ११६,१२०,१२३ से १२५,१२८,१३३,१३६ से १३८२२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,७६ से ८१,८५,१०७ से १०६, १११ से ११४,११६,११८,१५०, ३।१२०, १५६,१६२,१६५,१८६,१६२,२१८,२३८, २४३.२४७,२५०,२५६,२५८,५६४,५६५, ६२६,१०२७,१०४२,१०४४,१०४६,१०४७, १०४६,१०५०,१०५२,१०५३,१०५५,११२६, ११३१, ४१३,५,६ ; ५।५,७,२१,२८, ६३२,५, ७; ७२,८; ८१२; ६२ ठितिपद [स्थितिपद] जी० ३.१९२ ठितिवडिया | स्थितिपतिता) रा० ८०२,८०३ ठितीय [स्थितिक] रा० १८६. जी० ३३३५०, ३५६,६३७,६५६,७००,७२४,७२७,७३८, ७६०,७६३,७६५,८०८,८१६.८२६,८४२, ८४५,८५४,८५७,८६३,८६६,८६६,८७२, ८७५,८७८,८८५,९२३,६२५ ठिय स्थित ) ओ० ४०. रा० १७,१८,१३०,१३३, ७०३. जी० ३।३०० ठियलेस [स्थितलेश्य] ओ० ५० टकारवग्ग [टकारवर्ग ] रा० ६७ ठिव स्थापय --ठवेइ रा०६८१-ठवेई रा०५६–ठवेंति ओ० ५२. रा०६८७ –ठवेति ओ० ६६. रा०६८३ ठवित्ता | स्थापयित्वा) रा० ७६१ ठविय स्थापित ) ओ० १३४ ठवेत्ता (स्थापयित्वा] ओ० ५२. र१० ५६ ठाण | स्थान] आ० १६.२१,४०,५४,७३,६५, ११७,१५५,१५६. रा० ८,७६,१७३,२६२, ६७५.७१४,७१६,७५१,७५३,७७१,७६६. जी० १११२४; ३२२८५,४५७,८४३,८४५, ८४६ आणदिइय [स्थानास्थतिक ] ओ० ३६ ठाणधर स्थानधर ओ० ४५ ठाणपद [स्थानपद] जी० ३।२३३,२३४,२४८, २५० से २५२,२५७,१०४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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