Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Ovaiyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 308
________________ पडिवह-पणाम ६७३ —पडिविसज्जे इ. ओ० ५४. रा०६८४. पडुप्पन्न [प्रत्युत्पन्न ] जी० ३३१६५ से १९७ --पडिविसज्जेहिति. ओ० १४७. रा०८०८ पडपाएमाण [प्रत्युत्पद्यमान] जी० ३।२५६ पडिवह [प्रतिव्य ह] ओ०१४६. रा० ८०६ पडोयार [प्रत्यवतार] ओ० ४३. जी. ३२१८, पडिसंखेवेमाण प्रतिसंक्षिपत्] रा० ५६ २५६,५७८,५६६,५६७ पडिसलीणया [प्रतिसंलीनता] ओ० ३१,३७ पढम [प्रथम ] ओ० ४७,१४४,१७४,१७६,१८२. पडिसंसाहणया [प्रतिसंसाधना] ओ ४० रा०८०२. जी० १२२६,६८२,६८३,६८८; पिडिसार [प्रति+-सं+ह]-पडिसाहर इ. ७१,२,४,६,११,१३,१५,१७,२०,२२२३; ओ० २१. रा०८ ६।१ से ७,२३२,२३३,२३५,२३७,२४१,२४३, पडिसाहरित्ता | प्रतिमहत्य] ओ० २१ २४५,२४७,२५०,२५२,२५३,२५५,२६७,२६८, पडिसाहरेत्ता [प्रतिसंहृत्य ] रा० ८ २७०,२७२,२७५,२७७,२७६,२८१,२८४,२८६, पडिसाहरेमाण [प्रतिसंहरत् ] रा० ५६ २८८ से २६३ पिडिसुण [प्रति--- श्रु]-पडिसुणंति. रा० १०. पढ़मग [प्रथमक] रा० २२८. जी० ३१३८७,६७२ जी० ३१४४५.–पडिसुणिज्जासि. रा० ७५३. पढमसत्तराइंदिया प्रथमसप्त रात्रिंदिवा] ओ० २४ --पडिसुणे इ. ओ० ५६. रा० १८.--पडि- पढमसरयकाल[प्रथमशरत्काल] जी० ३।११८,११६ सुर्णेति ओ० ११७. रा० ७०७. जी. ३१५५५. पढमा [प्रथमा] जी० ३१२,३,८८,११११ --पडिसुणेति. रा० १४, पडिसुणेज्जासि, पढमिल्लुय [प्रथम] रा० ७६८ रा० ७५१ पणगजीव [पनकजीव | ओ०१८२ पडिसुणित्ता [प्रतिश्रुत्य] रा० १८. जी० ३६४४५ पणच्च [+ नृत्य]--पच्चिसु. रा० ७५ पडिसुणेत्ता [प्रतिश्रुत्य] ओ० ५६. रा० १०. पणतीस [पञ्चत्रिंशत् ] जी० ३.८०२ जी० ३१५५५ पणपण्ण [दे० पञ्चपञ्चाशत् जी०६।६ पडिसुय [प्रतिश्रुत] रा० १४ पणपन्न दे० पञ्चपञ्चाशत् | जी० २।२० पडिसूर [प्रतिसूर] जी० ३।६२६,८४१ पणमिय [प्रणत | ओ० ५,८,१०. रा० १४५. पडिसेग [प्रतिषेक] रा० २५४ जी० ३१२६८,२७४ पडिसेविय | प्रतिषेवित ] रा० ८१५ पणयाल ! पञ्चचत्वारिंशत् | जी० ३१२२६३६ पडिसेह {प्रतिषेध] जी ० २।६६,१०१ पणयालीस [पञ्चचत्वारिंशत् ] ओ० १६२. पडिहत | प्रतिहत] जी० ३१७४६ जी० ३१३०० पडिहत्य | दे० रा. १७४. जी. ३।३२४,८५७, पणयालीसविह [पञ्चचत्वारिंशविध ] ओ० ४० ८६३,८६६,८७५,८८१,६४८ पणयासण [प्रशतासन ] रा० १८१,१८३. पडिहय | प्रतिहत ] ओ० १६५।१,२ जी० ३।२६३ पडीण | प्रतीचीन ] रा० १२४. जी० ३१६३६ पणव पणव] ओ०६७. रा० १३,७७,६५७. पडीणवात | प्रतीचीनवात | जी० १८१ जी० ३७८,४४६,५८८ पड़ीणवाय प्रतीचीनवात जी० ३१६२६ पणवण्णिय |पणपन्निक] ओ० ४६ पड़ पटु] ओ० ६८. रा० ७,१३,६५७. पणवीस [पञ्चविंशति | रा० १२७. जी० ३१६१ जी० ३१३५०,४४६,५६३,८४२,८४५,१०२५ पणस [पनस] जी० ३३८८ पडुच्च [प्रतीत्य ] रा० ७६३. जी. ११३४ पणाम [प्रणाम] रा०६८,२६१,३०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412