Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 13
________________ सूत्र 48+ एकादशमांग विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध Page अणगारे जायसड्ढे जाव जेणेव अज हम्मे अणगारे तेणेव उवागए तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करेइ त्तावंदइणमंसइ वंदित्ता णमंसित्ताजाव पज्जवासइ,एवं वयासीजइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणाणं अयमट्रे पण्णत्ते, एक्कारसमस्सणं भंते ! अंगम विवाग सुयक्खंधस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते ? ॥ ६ ॥ तएणं अजसुहम्म अणगारे जंबूअणारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमरस अंगस्स विवागसुथरस दोसुयखंधा पण्णत्ता, तंजहा-दुहविवागाय, सुहजम्बू नाम के अनगार को प्रश्न पूछने की श्रद्धा उत्पन्न हुई यावत् जहां आर्य मुधर्मा स्वामी थे, तहां, आये, आकर तीन वक्त दोनों हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिराकर वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार करके यावत् सेवा करते हुवे यों कहने लगे-यदि अहो भगवन् ! श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उोंने दशवा अंग प्रश्न व्याकरण का तो उक्त अर्थ कहा वह मैंने श्रवण किया, अहो न भगवन् ! इग्यारवा अंग विपाक सूत्र का श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी यावतू मुक्ति पधारे उनोंने कैसा अर्थ कहा है ? ॥ ६ ॥ तब वे आर्य सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से इस प्रकार कहने लगे-यों निश्चय है * जम्बू ! श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी यारत् मुक्ति पधारे उनोंने इग्यारया अंग विपाक भूत्र के दो। दुःख विपाकका पहिला अध्ययन-मृगापुत्रका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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