Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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(प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ. १ नामक खुर वाले पशु, लोमड़ी, गोकर्ण-दो खुर वाला विशिष्ट जानवर, मृग, भैंसा, व्याघ्र, बकरा, द्वीपिक-तेंदुआ, श्वान–जंगली कुत्ता, तरक्ष-जरख, रीछ-भालू, शार्दूल-सिंह, सिंह केसरीसिंह, चित्तल-नाखून वाला एक बिशिष्ट पशु अथवा हिरण की आकृति वाला पशुविशेष, इत्यादि चतुष्पद प्राणी हैं, जिनकी पूर्वोक्त पापी हिंसा करते हैं।
विवेचन-ऊपर जिन प्राणियों के नामों का उल्लेख किया गया है, उनमें से अधिकांश प्रसिद्ध नके सम्बन्ध में विवेचन की आवश्यकता नहीं।
इन नामों में एक नाम 'सरभ' प्रयुक्त हुआ है। यह एक विशालकाय वन्य प्राणी होता है। इसे परासर भी कहते हैं । ऐसी प्रसिद्धि है कि सरभ, हाथी को भी अपनी पीठ पर उठा लेता है।
खड्ग ऐसा प्राणी हैं, जिसके दोनों पार्श्वभागों में पंखों की तरह चमड़ी होती है और मस्तक के ऊपर एक सींग होता है।' उरपरिसर्प जीव
७–अयगर-गोणस-वराहि-मउलि-काउदर-दब्भपुप्फ-प्रासालिय-महोरगोरगविहाणकाए य एवमाई ।
७-- अजगर, गोणस—बिना फन का सर्पविशेष, वराहि-दृष्टिविष सर्प-जिसके नेत्रों में विष होता है, मुकुली-फन वाला सांप, काउदर-काकोदर-सामान्य सर्प, दब्भपुप्फ—दर्भपुष्प-एक प्रकार का दर्वीकर सर्प, आसालिक-सर्पविशेष—महोरग-विशालकाय सर्प, इन सब और इस प्रकार के अन्य उरपरिसर्प जीवों का पापी वध करते हैं।
विवेचन–प्रस्तुत पाठ में उरपरिसर्प जीवों के कतिपय नामों का उल्लेख किया गया है। उरपरिसर्प जीव वे कहलाते हैं जो छाती से रेंग कर चलते हैं। इन नामों में एक नाम प्रासालिक आया है । टीका में इस जन्तु का विशेष परिचय दिया गया है । लिखा है-प्रासालिक बारह योजन लम्बा होता है । यह सम्मूच्छिम है और इसकी आयु मात्र एक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होती है। इसकी उत्पत्ति भूमि के अन्दर होती है । जब किसी चक्रवती अथवा वासुदेव के विनाश का समय सन्निकट प्राता है तब यह उसके स्कन्धावार.-सेना के पडाव के नीचे अथवा किसी नगरादि के विनाश के समय उसके नीचे उत्पन्न होता है। उसके उत्पन्न होने से पृथ्वी का वह भाग पोला हो जाता है और वह स्कन्धावार अथवा वस्ती उसी पोल में समा जाती है--विनष्ट हो जाती है ।
___महोरग का परिचय देते हुए टीकाकार ने उल्लेख किया है कि यह सर्प एक हजार योजन लम्बा होता है और अढ़ाई द्वीप के बाहर होता है। किन्तु यदि यह अढ़ाई द्वीप से बाहर ही होता है तो मनुष्य इसका वध नहीं कर सकते । सम्भव है अन्य किसी जाति के प्राणी वध करते हों । चतुर्थ सूत्र में 'केइ पावा' आदि पाठ है । वहाँ मनुष्यों का उल्लेख भी नहीं किया गया है। तत्त्व केवलिगम्य है। भजपरिसर्प जीव
___८-छीरल-सरंब-सेह-सेल्लग-गोधा-उंदुर-णउल-सरड-जाहग-मुगुस-खाडहिल-वाउप्पिय' घिरोलिया सिरीसिवगणे य एवमाई । १. प्रश्नव्याकरण-आचार्य हस्तीमलजी म., पृ. १६ २. 'वाउप्पिय' शब्द के स्थान पर कुछ प्रतियों में 'चाउप्पाइय'-चातुष्पदिक शब्द है।