Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रश्नव्याकरणसूत्र : भु. १, अ. ५
११. महेच्छा - असीम इच्छा या असीम इच्छा का कारण ।
१२. प्रतिबन्ध - किसी पदार्थ के साथ बँध जाना, जकड़ जाना । जैसे भ्रमर सुगन्ध की लालच में कमल को भेदन करने की शक्ति होने पर भी भेद नहीं सकता, कोश में बन्द हो जाता है ( और कभी-कभी मृत्यु का ग्रास बन जाता है) । इसी प्रकार स्त्री, धन आदि के मोह में जकड़ जाना, उसे छोड़ना चाह कर भी छोड़ न पाना ।
१३. लोभात्मा - लोभ का स्वभाव, लोभरूप मनोवृत्ति ।
१४. महद्दिका - ( महधिका) - महती आकांक्षा अथवा याचना ।
१५. उपकरण - जीवनोपयोगी साधन-सामग्री । वास्तविक आवश्यकता का विचार न करके ऊलजलूल - अनापसनाप साधनसामग्री एकत्र करना ।
१६. संरक्षणा - प्राप्त पदार्थों का प्रासक्तिपूर्वक संरक्षण करना ।
१७. भार - परिग्रह जीवन के लिए भारभूत है, अतएव उसे भार नाम दिया गया है । परिग्रह के त्यागी महात्मा हल्के - लघुभूत होकर निश्चिन्त, निर्भय विचरते हैं ।
१८. संपातोत्पादक - नाना प्रकार के संकल्पों -विकल्पों का उत्पादक, अनेक अनर्थों एवं उपद्रवों का जनक |
१९. कलिकरण्ड - कलह का पिटारा । परिग्रह कलह, युद्ध, वैर, विरोध, संघर्ष आदि का प्रमुख कारण है, अतएव इसे 'कलह का पिटारा' नाम दिया गया है ।
२०. प्रविस्तर - धन-धान्य आदि का विस्तार | व्यापार-धन्धा आदि का फैलाव । यह सब परिग्रह का रूप है ।
२१. अनर्थ - परिग्रह नानाविध अनर्थों का प्रधान कारण है । परिग्रह - ममत्वबुद्धि से प्रेरित एवं तृष्णा और लोभ से ग्रस्त होकर मनुष्य सभी अनर्थों का पात्र बन जाता है । उसे भीषण यातनाएँ भुगतनी पड़ती हैं ।
२२. संस्तव - संस्तव का अर्थ है परिचय - वारंवार निकट का सम्बन्ध । संस्तव मोह कोआसक्ति को बढ़ाता है । अतएव इसे संस्तव कहा गया है ।
२३. प्रगुप्ति या प्रकीति अपनी इच्छाओं या कामनाओं का गोपन न करना, उन पर नियन्त्रण न रखकर स्वच्छन्द छोड़ देना - बढ़ने देना ।
'अगुप्ति' के स्थान पर कहीं 'अकीत्ति' नाम उपलब्ध होता है । परिग्रह अपकीर्त्ति - अपयश का कारण होने से उसे प्रकीति भी कहते हैं ।
२४. श्रायास प्रयास का अर्थ है - खेद या प्रयास । परिग्रह जुटाने के लिए मानसिक और शारीरिक खेद होता है, प्रयास करना पड़ता है । अतएव यह प्रयास है ।
२५. श्रवियोग - विभिन्न पदार्थों के रूप में-धन, मकान या दुकान आदि के रूप में जो परिग्रह एकत्र किया है, उसे बिछुड़ने न देना । चमड़ी चली जाए पर दमड़ी न जाए, ऐसी वृत्ति ।