Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आहार को निर्दोष विधि]
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एकासनिक-एकाशन करने वाले । निर्विकृतिक-घी, दूध, दही आदि रसों से रहित भिक्षा लेने वाले । भिन्नपिण्डपातिक-फूटे-बिखरे-पिण्ड–पाहार को लेने वाले। परिमितपिण्डपातिक-घरों एवं आहार के परिणाम का निश्चय करके आहार ग्रहण करने वाले । अरसाहारी-रसहीन-हींग आदि वधार से रहित पाहार लेने वाले । विरसाहारी-पुराना होने से नीरस हुए धान्य का आहार लेने वाले । उपशान्तजीवी-भिक्षा के लाभ और अलाभ की स्थिति में उद्विग्न न होकर शांतभाव में रहने वाले । प्रतिमास्थायिक -एकमासिकी आदि भिक्षुप्रतिमाओं को स्वीकार करने वाले । स्थानोत्कुटक-उकङ प्रासन से एक जगह बैठने वाले। वीरासनिक-वीरासन से बैठने वाले । (पैर धरती पर टेक कर कुर्सी पर बैठे हुए मनुष्य के नीचे से कुर्सी हटा लेने पर उसका जो आसन रहता है, वह वीरासन है)। नैषधिक-दृढ़ आसन से बैठने वाले । दण्डायतिक-डंडे के समान लम्बे लेट कर रहने वाले । लगण्डशायिक-सिर और पांवों की एड़ियों को धरती पर टिका कर और शेष शरीर को अधर रख कर शयन करने वाले। एकपाश्विक-एक ही पसवाड़े से सोने वाले। आतापक-सर्दी-गर्मी में आतापना लेने वाले । अप्रावृत्तिक-प्रावरण-वस्त्ररहित होकर शीत, उष्ण, दंश-मशक आदि परीषह सहन करने वाले । अनिष्ठीवक-नहीं थूकने वाले । अकण्डूयक-शरीर को खुजली पाने पर भी नहीं खुजलाने वाले । शेष पद सुगम-सुबोध हैं और उनका आशय अर्थ में ही आ चुका है। इस प्रकार के महनीय पुरुषों द्वारा आचरित अहिंसा प्रत्येक कल्याणकामी के लिए
आचरणीय है। आहार को निर्दोष विधि
११०-इमं च पुढवि-दग-अगणि-मारुय-तरुगण-तस-थावर-सव्वभूयसंजमदयट्टयाए सुद्धउञ्छं गवेसियव्वं अकयमकारियमणाहूयमणुद्दिठं अकीयकडं णवहि य कोडिहिं सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहि विप्पमुक्कं, उग्गम-उप्पायणेसणासुद्ध ववगयचुयचावियचत्तदेहं च फासुयं च ण णिसज्जकहापोयणक्खासुप्रोवणीयं ति ण तिगिच्छा-मंत-मूल-भेसज्जकज्जहेउं, ण लक्खणुप्पाय-सुमिण-जोइस-णिमित्तकहकप्पउत्तं, ण विडंभणाए, ण वि रक्खणाए, ण वि सासणाए, ण वि डंभण-रक्खण-सासणाए भिक्खं गवेसियव्यं ण वि वंदणाए, ण वि माणणाए, ण वि पूयणाए, ण वि वंदन-माणण-पूयणाए भिक्खं गवेसियवं।