Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 302
________________ परिशिष्ट-१ उत्थानिका-पाठान्तर कतिपय प्रतियों में निम्नलिखित पाठ 'जंबू !' इस सम्बोधन से पूर्व पाया जाता है । यह पाठ प्रायः वही है जो अन्य आगमों में पूर्वभूमिका के रूप में आता है, किन्तु प्रस्तुत पाठान्तर में प्रश्नव्याकरण के दो श्रुतस्कन्ध प्रतिपादित किए गए हैं, जब कि मूल पाठ में, अन्त में एक ही श्रुतस्कन्ध बतलाया गया है । यह विरोधी कथन क्या इस तथ्य का सूचक है कि प्राचीन मूल प्रश्नव्याकरण में दो श्रुतस्कन्ध थे और उसका विच्छेद हो जाने के पश्चात् उसकी स्थानपूर्ति के लिए विरचित अथवा उसके लुप्त होने से बचे इस भाग में एक ही श्रुतस्कन्ध है ? मगर दोनों श्रुतस्कन्धों के नाम वही प्रास्रवद्वार और संवरद्वार गिनाए गए हैं । अतएव यह संभावना भी संदिग्ध बनती है और अधिक चिन्तन-अन्वेषण मांगती है । जो हो, पाठ इस प्रकार है तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नाम नयरी होत्था, पुण्णभद्दे चेइए, वणसंडे, असोगवरपायवे, पुढविसिलापट्टए। तत्थ णं चम्पाए नयरीए कोणिए नामं राया होत्था, धारिणी देवी। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स अन्तेवासी अज्जसूहम्मे नाम थेरे जाइसंपण्णे कुल-संपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दंसणसंपण्णे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोभे जियइंदिए जियपरीसहे जीवियास-मरणभय-विप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे वंभप्पहाणे वयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चपहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव चम्पा नयरी तेणेव उवागच्छइ जाव अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू नाम अणगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव सखित्तविउलतेउलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूर-सामंते उड्ढं जाणू जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं से अज्जजंबू जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उट्ठाए उठेइ, उद्वित्ता जेणेव सुहम्मे थेरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मं थेरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ (नमसित्ता) नाइदूरे विणएणं पंजलिपुडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी 'जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं णवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं अयमठे पण्णत्ते, दसमस्स णं अंगस्स पण्हावागरणाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ?' 'जंबू ! दसमस्स अंगस्स समणेणं जाव संपत्तेणं दो सुयक्खंधा पण्णत्ता-आसवदारा य संवरदारा य ।'

Loading...

Page Navigation
1 ... 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359