Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रश्नव्याकरणसूत्र : भु. २,५
वाला प्रथवा निश्रोत अर्थात् स्रोतों को स्थगित कर देने वाला है। श्रोत दो प्रकार के हैं- द्रव्यश्रोत और भावश्रोत । नदी प्रादि का प्रवाह द्रव्यश्रोत है और संसार - समुद्र में गिराने वाला प्रशुभ लोकव्यवहार भावश्रोत है ।
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निरुपलेप - का आशय है - कर्म - लेप से रहित । किन्तु मुनि कर्मलेप से रहित नहीं होते । सिद्ध भगवान् ही कर्म - लेप से रहित होते हैं। ऐसी स्थिति में यहाँ मुनि के लिए 'निरुपलेप' विशेषण का प्रयोग किस अभिप्राय से किया गया है ? इस प्रश्न का उत्तर टीका में दिया गया है- 'भाविनि भूतवदुपचारमाश्रित्योच्यते' अर्थात् ऐसा साधक भविष्य में कर्मलेप से रहित होगा ही, प्रतएव भावी अर्थ में भूतकाल का उपचार करके इस विशेषण का प्रयोग किया गया है ।
निर्ग्रन्थों की ३१ उपमाएँ
१६३ - सुविमलवर कंसभायणं व मुक्कतोए । संखे विव निरंजणे, विगयरागदोसमोहे ।
कुम्मो विव इंदिए गुत्ते ।
जच्चकंचणगं व जायरूवे ।
पोक्खरपत्तं व णिरुवलेवे ।
चंदो विव सोमभावयाए । सूरो व्व वित्तते ।
प्रचले जह मंदरे गिरिवरे ।
प्रक्खोभे सागरो व्व थिमिए ।
पुढवी व्व सव्वफाससहे ।
तवसा च्चिय भासरासि छण्णव्व जायतेए । जलिययासणे विव तेयसा जलते ।
गोसीसं चंदणं विव सीयले सुगंधे य ।
हरयो विव समियभावे ।
उघसिय सुणिम्मलं व प्रायंसमंडलतलं पाणडभावेण सुद्धभावे ।
सोंडीरे कुंजरोव्व ।
वसभेव्व जायथामे ।
सव्व जहा मियाहि होइ दुप्पधरिसे ।
सारयसलिलं व सुद्धहियए ।
भारंडे चैव श्रप्पमत्ते ।
खग्गविसाणं व एगनाए । खाणुं वे उड्ढकाए ।