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________________ २५० ] प्रश्नव्याकरणसूत्र : भु. २,५ वाला प्रथवा निश्रोत अर्थात् स्रोतों को स्थगित कर देने वाला है। श्रोत दो प्रकार के हैं- द्रव्यश्रोत और भावश्रोत । नदी प्रादि का प्रवाह द्रव्यश्रोत है और संसार - समुद्र में गिराने वाला प्रशुभ लोकव्यवहार भावश्रोत है । 1 निरुपलेप - का आशय है - कर्म - लेप से रहित । किन्तु मुनि कर्मलेप से रहित नहीं होते । सिद्ध भगवान् ही कर्म - लेप से रहित होते हैं। ऐसी स्थिति में यहाँ मुनि के लिए 'निरुपलेप' विशेषण का प्रयोग किस अभिप्राय से किया गया है ? इस प्रश्न का उत्तर टीका में दिया गया है- 'भाविनि भूतवदुपचारमाश्रित्योच्यते' अर्थात् ऐसा साधक भविष्य में कर्मलेप से रहित होगा ही, प्रतएव भावी अर्थ में भूतकाल का उपचार करके इस विशेषण का प्रयोग किया गया है । निर्ग्रन्थों की ३१ उपमाएँ १६३ - सुविमलवर कंसभायणं व मुक्कतोए । संखे विव निरंजणे, विगयरागदोसमोहे । कुम्मो विव इंदिए गुत्ते । जच्चकंचणगं व जायरूवे । पोक्खरपत्तं व णिरुवलेवे । चंदो विव सोमभावयाए । सूरो व्व वित्तते । प्रचले जह मंदरे गिरिवरे । प्रक्खोभे सागरो व्व थिमिए । पुढवी व्व सव्वफाससहे । तवसा च्चिय भासरासि छण्णव्व जायतेए । जलिययासणे विव तेयसा जलते । गोसीसं चंदणं विव सीयले सुगंधे य । हरयो विव समियभावे । उघसिय सुणिम्मलं व प्रायंसमंडलतलं पाणडभावेण सुद्धभावे । सोंडीरे कुंजरोव्व । वसभेव्व जायथामे । सव्व जहा मियाहि होइ दुप्पधरिसे । सारयसलिलं व सुद्धहियए । भारंडे चैव श्रप्पमत्ते । खग्गविसाणं व एगनाए । खाणुं वे उड्ढकाए ।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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