Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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माण्डलिक राजाओं के भोग]
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इस परिवार में ५६ करोड़ यादव थे। उनमें साढे तीन करोड़ प्रद्युम्न आदि कुमार थे । बलराम की माता का नाम रोहिणी और श्रीकृष्ण की माता का नाम देवकी था । इनके शस्त्रों तथा वस्त्रों के वर्ण आदि का वर्णन मूल पाठ में ही प्रायः आ चुका है।
____ मुष्टिक नामक मल्ल का हनन बलदेव ने और चाणूर मल्ल का वध श्रीकृष्ण ने किया था। रिष्ट नामक सांड को मारना, कालिय नाग को नाथना, यमलार्जुन का हनन करना, महाशकुनी एवं पूतना नामक विद्याधरियों का अन्त करना, कंस-वध और जरासन्ध के मान का मर्दन करना आदि घटनाओं का उल्लेख बलराम-श्रीकृष्ण से सम्बन्धित है, तथापि तात्पर्य यह जानना चाहिए कि ऐसोंऐसों के दमन करने का सामर्थ्य बलदेवों और वासुदेवों में होता है । ऐसे असाधारण बल, प्रताप और पराक्रम के स्वामी भी भोगोपभोगों से तृप्त नहीं हो पाते । अतृप्त रह कर ही मरण को प्राप्त होते हैं। माण्डलिक राजाओं के भोग
८७-भुज्जो मंडलिय-णरवरिंदा सबला सअंतेउरा सपरिसा सपुरोहियामच्च-दंडणायगसेणावइ-मंतणीइ-कुसला णाणामणिरयणविपुल-धणधण्णसंचयणिही-समिद्धकोसा रज्जसिरि विउलमणुहवित्ता विक्कोसंता बलेण मत्ता ते वि उवणमंति मरणधम्मं अवितत्ता कामाणं ।
८७-और (बलदेव और वासुदेव के अतिरिक्त) माण्डलिक राजा भी होते हैं । वे भी सबलबलवान् अथवा सैन्यसम्पन्न होते हैं । उनका अन्तःपुर---रनवास (विशाल) होता है । वे सपरिषद्परिवार या परिषदों से युक्त होते हैं। शान्तिकर्म करने वाले पुरोहितों से, अमात्यों-मंत्रियों से, दंडाधिकारियों-दंडनायकों से, सेनापतियों से जो गुप्त मंत्रणा करने एवं नीति में निपुण होते हैं, इन सब से सहित होते हैं। उनके भण्डार अनेक प्रकार की मणियों से, रत्नों से, विपुल धन और धान्य से समद्ध होते हैं। वे अपनी विपल राज्य-लक्ष्मी का अनुभव करके अर्थात भोगोपभोग करके, अपने शत्रुओं का पराभव करके-उन पर आक्रोश करते हुए अथवा अक्षय भण्डार के स्वामी होकर (अपने) बल में उन्मत्त रहते हैं अपनी शक्ति के दर्प में चूर-बेभान बन जाते हैं। ऐसे माण्डलिक राजा भी कामभोगों से तृप्त नहीं हुए। वे भी अतृप्त रह कर ही कालधर्म-मृत्यु को प्राप्त हो गए।
विवेचन—किसी बड़े साम्राज्य के अन्तर्गत एक प्रदेश का अधिपति भाण्डलिक राजा कहलाता है । माण्डलिक राजा के लिए प्रयुक्त विशेषण सुगमता से समझे जा सकते हैं । अकर्मभूमिज मनुष्यों के भोग
८८-भुज्जो उत्तरकुरु-देवकुरु-वणविवर-पायचारिणो णरगणा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा भोगसस्सिरीया पसत्थसोमपडिपुण्णरूवदरिसणिज्जा सुजायसव्वंगसुदरंगा रत्तुप्पलपत्तकंतकरचरणकोमलतला सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा अणुपुव्वसुसंहयंगुलीया उण्णयतणुतंबणिद्धणक्खा संठियसुसिलिट्ठगूढगुफा एणीकुरुविंदवत्तवट्टाणुपुग्विजंघा समुग्गणिसग्गगूढजाणू वरवारणमत्ततुल्लविक्कम-विलासियगई वरतुरगसुजायगुज्झदेसा पाइण्णहयव्वणिरुवलेवा पमुइयवरतुरगसीहाइरेगवट्टियकडी गंगावत्तदाहिणावत्ततरंगभंगुर-रविकिरण-बोहिय-विकोसायंतपम्हगंभीरवियडणाभी साहतसोणंदमुसलदप्पणणिगरियवरकणगच्छरुसरिसवरवइरवलियमज्झा उज्जुगसमसहियजच्चतणुकसिणणिद्ध-प्राइज्जल