Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पञ्चम अध्ययन : परिग्रह
परिग्रह का स्वरूप
९३ - जंबू ! इत्तो परिग्गहो पंचमो उ णियमा णाणामणि- कणग- रयण-महरिहपरिमलसपुत्तदार - परिजन दासी - दास भयग- पेस- हय-गय-गो-महिस- उट्ट- खर- श्रय - गवेलग-सीया-सगड-रह- जाण - जुग्गसंदण-सयणासण- वाहण-कुविय- धणधण्ण-पाण- भोयणाच्छायण- गंध मल्ल- भायण-भवणविहं चेव बहुविहीयं ।
भरहं · णग नगर-निगम जणवय-पुरवर दोणमुह- खेड - कब्बड-मडंब संबाह-पट्टण- सहस्स-परि
मंडियं ।
थिमियमेइणीयं एगच्छत्तं ससागरं भुजिऊण वसुहं, अपरिमियमणंत-तरह मणुगय-महिच्छसारणिरयमूलो, लोहकलिकसायम हक्खंधो, चितासयणिचियविउलसालो, गारवपविरल्लियग्गविडवो, णियडि तयापत्तपल्लवधरो पुप्फफलं जस्स कामभोगा, श्रायासविसूरणा कलह-पकंपियग्गसिहरो । णरवईसंपूइश्रो बहुजणस्स हिययदद्दश्रो इमस्स मोक्खवरमोत्तिमगास्स फलिहभूश्रो ।
'चरिमं श्रहम्मदारं ।
९३ - श्री सुधर्मा स्वामी ने अपने प्रधान शिष्य जम्बू स्वामी से कहा - हे जम्बू ! चौथे अब्रह्म नामक आस्रवद्वार के अनन्तर यह पाँचवाँ परिग्रह (प्रस्रव ) है । ( इस परिग्रह का स्वरूप इस प्रकार - )
अनेक मणियों, स्वर्ण, कर्केतन आदि रत्नों, बहुमूल्य सुगंधमय पदार्थ, पुत्र और पत्नी समेत परिवार, दासी दास, भृतक - काम करने वाले नौकर-चाकर, प्रेष्य- किसी कार्य के लिए भेजने योग्य कर्मचारी, घोड़े, हाथी, गाय, भैंस, ऊंट, गधा, बकरा और गवेलक ( एक विशिष्ट जाति के बकरे, भेड़ों), शिविका - पालकी, शकट- गाड़ी - छकड़ा, रथ, यान, युग्य-दो हाथ लम्बी विशेष प्रकार की सवारी, स्यन्दन - क्रीडारथ, शयन, ग्रासन, वाहन तथा कुप्य - घर के उपयोग आने वाला विविध प्रकार का सामान, धन, धान्य – गेहूँ, चावल आदि, पेय पदार्थ, भोजन – भोज्य वस्तु, आच्छादन — पहनने- प्रोढ़ने के वस्त्र, गन्ध - कपूर आदि, माला - - फूलों की माला, वर्तन - भांडे तथा भवन आदि के अनेक प्रकार के विधानों को ( भोग लेने पर भी ) -
और हजारों पर्वतों, नगरों (कर - रहित वस्तियों), निगमों (व्यापारप्रधान मंडियों), जनपदों ( देशों या प्रदेशों), महानगरों, द्रोणमुखों ( जलमार्ग और स्थलमार्ग से जुड़े नगरों), खेट (चारों ओर धूल के कोट वाली वस्तियों), कर्बटों-छोटे नगरों-कस्बों, मडंबों - जिनके आसपास अढ़ाईअढ़ाई को तक वस्ती न हो ऐसी वस्तियों, संबाहों तथा पत्तनों - जहाँ नाना प्रदेशों से वस्तुएँ खरीदने के लिए लोग आते हैं अथवा जहाँ रत्नों आदि का विशेष रूप से व्यापार होता हो ऐसे बड़े नगरों से सुशोभित भरतक्षेत्र - भारतवर्ष को भोग कर भी अर्थात् सम्पूर्ण भारतवर्ष का आधिपत्य भोग लेने पर भी, तथा