Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४४ ]
मनुष्य
देव
नारक
जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच
स्थलचर चतुष्पद पंचेन्द्रिय
स्थलचर उरपरिसर्प पंचेन्द्रिय
स्थलचर भुजपरिसर्प पंचेन्द्रिय खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच
चतुरिन्द्रिय तिर्यंच
त्रीन्द्रिय तिर्यंच
द्वीन्द्रिय तिर्यंच
पृथ्वी कायिक स्थावर कायिक स्थावर
तेजः कायिक स्थावर
वायुकायिक स्थावर वनस्पतिकायिक स्थावर
१२ लाख कुलकोटियाँ
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१२३
१०
१०
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२८
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[ प्रश्नव्याकरणसूत्र : भु. १, अ. १
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योग - १,९७५,००००
इनमें से चतुरिन्द्रिय जीवों की यहाँ नव लाख कुलकोटियाँ प्रतिपादित की गई हैं । जैसे नारक जीव नारक पर्याय का अन्त हो जाने पर पुनः तदनन्तर भव में नरक में जन्म नहीं लेते, वैसा नियम चतुरिन्द्रियों के लिए नहीं है । ये जीव मर कर बार-बार चतुरिन्द्रियों में जन्म लेते रहते हैं । संख्यात काल तक अर्थात् संख्यात हजार वर्षों जितने सुदीर्घ काल तक वे चतुरिन्द्रिय पर्याय में ही जन्म-मरण करते रहते हैं । उन्हें वहाँ नारकों जैसे तीव्र दुःखों को भुगतना पड़ता । त्रीन्द्रिय जीवों के दुःख
३८ - तव इंदिए कुथु पिप्पलिया-अवधिकादिएसु य जाइकुलकोडिसयसहस्सेहि महि एहि इंदियाणं तह तह चेव जम्मणमरणाणि श्रणुहवंता कालं संखेज्जगं भमंति रइयसमाणतिब्वदुक्खा परिस- रसण- घाण-संपत्ता ।
३८ – इसी प्रकार कुथु, पिपीलिका - चींटी, अंधिका - दीमक आदि त्रीन्द्रिय जीवों की पूरी आठ लाख कुलकोटियों में से विभिन्न योनियों एवं कुलकोटियों में जन्म-मरण का अनुभव करते हुए (वे पापी हिंसक प्राणी) संख्यात काल अर्थात् संख्यात हजार वर्षों तक नारकों के सदृश तीव्र दु:ख भोगते हैं । ये त्रीन्द्रिय जीव स्पर्शन, रसना और घ्राण-इन तीन इन्द्रियों से युक्त होते हैं ।
विवेचन - पूर्व सूत्र में जो स्पष्टीकरण किया गया है, उसी प्रकार का यहाँ भी समझ लेना चाहिए | त्रीन्द्रिय-पर्याय में उत्पन्न हुआ जीव भी उत्कर्षतः संख्यात हजार वर्षों तक ' वार वार जन्म मरण करता हुआ त्रीन्द्रिय में ही बना रहता है ।
१. प्रमयदेवीका