Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
५२]
[प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ. २ यह निर्देश भी कर दिया गया है कि अलोक के इन तीस नामों के अतिरिक्त भी अन्य अनेक नाम हैं।
असत्य के तीस नामों का उल्लेख करके सूत्रकार ने असत्य के विविध प्रकारों को सूचित किया है, अर्थात् किस-किस प्रकार के वचन असत्य के अन्तर्गत हैं, यह प्रकट किया है । उल्लिखित नामों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
(१) अलीक-झूठ, मिथ्यावचन । (२) शठ-धूर्त, मायावी जनों द्वारा प्राचरित । (३) अनार्य (अन्याय्य)-अनार्य पुरुषों का वचन होने से अनार्य है अथवा अन्याययुक्त है। (४) माया-मृषा-माया रूप कषाय से युक्त और मृषा होने से इसे माया-मृषा कहा है । (५) असत्क-असत् पदार्थ को कहने वाला। (६) कूट-कपट-अवस्तुक-दूसरों को ठगने से कूट, भाषा का विपर्यास होने से कपट, तथ्य
वस्तुशून्य होने से प्रवस्तुक है। (७) निरर्थक-अपार्थक-प्रयोजनहीन होने के कारण निष्प्रयोजन और सत्यहीन होने से
अपार्थक है। (८) विद्वेषगर्हणीय–विद्वेष और निन्दा का कारण (९) अनुजुक-कुटिलता-सरलता का अभाव, वक्रता से युक्त । (१०) कल्कना—मायाचारमय ।। (११) वञ्चना-दूसरों को ठगने का कारण । (१२) मिथ्यापश्चात्कृत-न्यायी पुरुष झूठा समझ कर पीछे कर देते हैं, अतः मिथ्यापश्चात्कृत है। (१३) साति-अविश्वास का कारण । (१४) उच्छन्न-स्वकीय दोषों और परकीय गुणों का आच्छादक । इसे 'अपच्छन्न' भी कहते हैं। (१५) उत्कूल-सन्मार्ग की मर्यादा से अथवा न्याय रूपी नदी के तट से गिराने वाला। (१६) पात-पाप से पीड़ित जनों का वचन । (१७) अभ्याख्यान दूसरे में अविद्यमान दोषों को कहने वाला।
किल्विष-पाप या पाप का जनक । (१९) वलय-गोलमोल-टेढा-मेढा, चक्करदार वचन । (२०) गहन--जिसे समझना कठिन हो, जिस वचन से असलियत का पता न चले । (२१) मन्मन स्पष्ट न होने के कारण, अस्पष्ट वचन । (२२) नूम-सचाई को ढंकने वाला। (२३) निकृति—किए हुए मायाचार को छिपाने वाला वचन । (२४) अप्रत्यय-विश्वास का कारण न होने से या अविश्वासजनक होने से अप्रत्यय है। (२५) असमय–सम्यक् प्राचार से रहित । (२६) असत्यसन्धता-झूठी प्रतिज्ञाओं का कारण । (२७) विपक्ष-सत्य और धर्म का विरोधी। (२८) अपधीक-निन्दित मति से उत्पन्न । (२९) उपधि-अशुद्ध-मायाचार से अशुद्ध । (३०) अवलोप-वस्तु के वास्तविक स्वरूप का लोपक ।