Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रश्नव्याकरणसूत्र :७ : १, अ. ३
चोरश्चौरापको मंत्री, भेदज्ञः काणकक्रयी।
अन्नदः स्थानदश्चैव, चोरः सप्तविधः स्मृतः ।। अर्थात्--(१) स्वयं चोरी करने वाला (२) चोरी करवाने वाला (३) चोरी करने की सलाह देने वाला (४) भेद बतलाने वाला --कैसे, कब और किस विधि से चोरी करना, इत्यादि बताने वाला (५) चोरी का माल (कम कीमत में) खरीदने वाला (६) चोर को खाने की सामग्री देने वालाजंगल आदि गुप्त स्थानों में रसद पहुँचाने वाला (७) चोर को छिपाने के लिए स्थान देने वाला, ये सात प्रकार के चोर कहे गए हैं। चोरों को दी जाती हुई भीषण यातनाएँ
___ ७५ ते य तत्थ कोरंति परिकप्पियंगमंगा उल्लंविज्जति रुक्खसालासु केइ कलुणाई विलवमाणा, अवरे चउरंगधणियबद्धा पव्वयकडगा पमुच्चंते दूरपातबहुविसमपत्थरसहा अण्णे, य गय-चलणमलणयणिम्मदिया कोरंति पावकारी अट्ठारसखंडिया य कोरंति मुंडपरसूहिं केइ उक्कत्तकण्णो?णासा उप्पाडियणयण-दसण-वसणा जिभिदियछिया छिण्ण-कण्णसिरा पणिज्जते छिज्जते य प्रसिणा णिट्विसया छिण्णहत्थपाया पमुच्चंते य जावज्जीवबंधणा य कोरंति, केइ परदव्वहरणलुद्धा कारग्गलणियलजुयलरुद्धा चारगाएहतसारा सयणविप्पमुक्का मित्तजणणिरक्खिया णिरासा बहुजण-धिक्कार-सद्दलज्जाविया अलज्जा अणुबद्धखुहा पारद्धा सी-उण्ह-तण्ह-वेयण-दुग्घट्टघट्टिया विवण्णमुह-विच्छविया विहलमइल-दुम्बला किलंता कासंता वाहिया य प्रामाभिभूयगत्ता परूढ-णह-केस-मंसु-रोमा छगमुत्तम्मि णियगम्मि खुत्ता । तत्थेव मया अकामगा बंधिऊण पाएसु कड्डिया खाइयाए छूढा, तत्थ य वग-सुणगसियाल-कोल-मज्जार-वंडसं-दंसगतुड-पक्खिगण-विवाह-महसयल-विलुत्तगत्ता कय-विहंगा, केइ किमिणा य कुहियदेहा अणि?वयहि सप्पमाणा सुट्ठ कयं जं मउत्ति पावो तुट्टेणं जणेण हम्ममाणा लज्जावणगा य होंति सयणस्स वि य दोहकालं ।
७५-वहाँ वध्यभूमि में उनके (किन्हीं-किन्हीं चोरों के)अंग-प्रत्यंग काट डाले जाते हैं-टुकड़ेटकडे कर दिये जाते हैं। उनको वक्ष की शाखाओं पर टांग दिया जाता है। उनके चार अंगों-दोनों हाथों और दोनों पैरों को कस कर बांध दिया जाता है। किन्हीं को पर्वत की चोटी से नीचे गिरा दिया जाता है—फेंक दिया जाता है। बहुत ऊँचाई से गिराये जाने के कारण उन्हें विषम-नुकीले पत्थरों की चोट सहन करनी पड़ती है। किसी-किसी का हाथी के पैर के नीचे कुचल कर कचूमर बना दिया जाता है । उन अदत्तादान का पाप करने वालों को कुठित धार वाले–भोंथरे कुल्हाड़ों आदि से अठारह स्थानों में खंडित किया जाता है । कइयों के कान, आँख और नाक काट दिये जाते हैं तथा नेत्र, दांत और वृषण-अंडकोश उखाड़ लिये जाते हैं। जीभ खींच कर बाहर निकाल ली जाती है, कान काट लिये जाते हैं या शिराएँ काट दी जाती हैं। फिर उन्हें वधभूमि में ले जाया जाता है
और वहाँ तलवार से काट दिया जाता है। (किन्हीं-किन्हीं) चोरों को हाथ और पैर काट कर निर्वासित कर दिया जाता है—देश निकाला दे दिया जाता है । कई चोरों को आजीवन-मृत्युपर्यन्त कारागार में रक्खा जाता है । परकीय द्रव्य का अपहरण करने में लुब्ध कई चोरों को कारागार में सांकल बांध कर एवं दोनों पैरों में बेड़ियाँ डाल कर बन्द कर दिया जाता है । कारागार में बन्दी बना कर उनका धन छीन लिया जाता है।