Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पृथ्वीकाय की हिंसा, अप्काय की हिंसा, तेजस्काय को हिंसा के कारण ]
पृथिवीकाय की हिंसा के कारण
१३- किं ते ?
करण- पोक्खरिणी - वाविवप्पिणि- कूव-सर-तलाग - चिइ - वेइय' खाइय प्राराम - विहार थूभपागार-दार - गोउर अट्टालग - चरिया - सेउ संकम-पासाय- विकप्प-भवण- घर-सरण-लयण श्रावण - चेइयदेवकुल- चित्तसभा-पवा- प्रायतणा-वसह भूमिघर-मंडवाण कए भायणभंडोवगरणस्स य विविहस्स य अट्ठा पुढव हिंसंति मंदबुद्धिया ।
१३ – वे कारण कौन-से हैं, जिनसे ( पृथ्वीकायिक) जीवों का वध किया जाता है ?
कृषि, पुष्करिणी (चौकोर वावड़ी जो कमलों से युक्त हो), वावड़ी, क्यारी, कूप, सर, तालाब, भित्ति, वेदिका, खाई, आराम, विहार (बौद्धभिक्षुत्रों के ठहरने का स्थान ), स्तूप, प्राकार, द्वार, गोपुर ( नगरद्वार - फाटक), अटारी, चरिका ( नगर और प्राकार के बीच का आठ हाथ प्रमाण मार्ग ), सेतु - पुल, संक्रम ( ऊबड़-खाबड़ भूमि को पार करने का मार्ग), प्रासाद - महल, विकल्प - विकप्प — एक विशेष प्रकार का प्रासाद, भवन, गृह, सरण - झौंपड़ी, लयन - पर्वत खोद कर बनाया हुआ स्थानविशेष, दूकान, चैत्य -- चिता पर बनाया हुआ चबूतरा, छतरी और स्मारक, देवकुल – शिखरयुक्त देवालय, चित्रसभा, प्याऊ, प्रायतन, देवस्थान, आवसथ - तापसों का स्थान, भूमिगृह - भौंयरातलघर और मंडप आदि के लिए तथा नाना प्रकार के भाजन - पात्र, भाण्ड - वर्तन आदि एवं उपकरणों के लिए मन्दबुद्धि जन पृथ्वीकाय की हिंसा करते हैं ।
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विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में उन वस्तुओं के नामों का उल्लेख किया गया है, जिनके लिए पृथ्वी - काय के जीवों की हिंसा की जाती है । किन्तु इन उल्लिखित वस्तुओं के लिए ही पृथ्वीकाय की हिंसा होती है, ऐसा नहीं समझना चाहिए । यह पदार्थ तो उपलक्षण मात्र हैं, श्रतः पृथ्वीका का घात जिन-जिन वस्तुओं के लिए किया जाता है, उन सभी का ग्रहण कर लेना चाहिए । 'भायणभंडोवगरणस्स विविहस्स' इन पदों द्वारा यह तथ्य सूत्रकार ने स्वयं भी प्रकट कर दिया है । काय की हिंसा के कारण
१४ – जलं च मज्जण पाण-भोयण-वत्थधोवण- सोयमाइएहिं ।
१४–मज्जन—स्नान, पान – पीने, भोजन, वस्त्र धोना एवं शौच - शरीर, गृह आदि की शुद्धि, इत्यादि कारणों से जलकायिक जीवों की हिंसा की जाती है ।
विवेचन - यहाँ भी उपलक्षण से अन्य कारण जान लेना चाहिए । पृथ्वीकाय की हिंसा के कारणों में भवनादि बनाने का जो उल्लेख किया गया है, उनके लिए भी जलकाय की हिंसा होती है । सूत्रकार ने 'आइ (आदि ) ' पद का प्रयोग करके इस तात्पर्य को स्पष्ट कर दिया है ।
तेजस्काय की हिंसा के कारण
१५ - पयण- पयावण जलावण-विदंसणेहिं श्रगण ।
१. श्री ज्ञानविमलसूरि रचित वृत्ति में ' वेइय' के स्थान पर 'चेतिय" शब्द है, जिसका अर्थ किया है - "चेति मृतदनार्थं काष्ठस्थापनं । "