Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay, Veervijay
Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal

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Page 12
________________ अथ अध्यात्म स्वरूप. भगवन् ! किं तदध्यात्मं यदिच्छमुपवर्ण्यते । शृणु वत्स यथाशास्त्रं वर्णयामि पुरस्तव ॥ १ ॥ गतमोहाधिकाराणामात्मानमधिकृत्य या । प्रवर्तते क्रिया शुद्धा तदध्यात्म जगुर्जिनाः ॥२॥ अर्थ-हवे शिष्ये पूछयु के-हे भगवंत ! अध्यात्म ते शुंछे के जेनुं तमे आq वर्णन करो छो ? त्यारे गुरु कहे छे केहे शिष्य ! शास्त्रमर्यादाये तने कहुं हुं ते सांभळ ॥ १॥ जे मुनिराजनो मोहनो अधिकार नाश पाम्यो छे अने जे आत्माने आश्रीने शुद्ध क्रियाये अंतरआत्माने विष प्रवर्ते, तेनुं नाम परमेश्वर अध्यात्म कहे छे ॥ २॥ सामायिकं यथासर्व चारित्रेष्वनुवृत्तिमत् । अध्यात्मं सर्वयोगेषु तथानुगतमिष्यते ॥३॥ अपुनबंधकाद्यावद्गणस्थानं चतुर्दशं । क्रमशुद्धिमती तावत् क्रियाध्यात्ममयो मता ॥४॥ ___अर्थ–सामायिक चारित्र जेम सर्व चारित्रने विषे अनुगत कारणपणे वर्ते छे तेम सर्व जोगने विषे अध्यात्म पण सहचारीपणे वर्ने छ ।॥ ३ ॥ अपुनर्बधी जे चोथु गुणठाणुं त्यांथी मांडीने चौदमा गुणठाणा लगण अनुक्रमे जे आत्मानी विशुद्धता प्रगट थाय ते सत्र अध्यात्म क्रिया जाणवी ॥ ४ ॥ आहरोपधिपूजार्ड गौरवप्रतिबंधतः । भवाभिनंदी यां कुर्यात् क्रियां साध्यात्मवैरिणी॥५॥

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