Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
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श्री ममल पाहुड़ जी
(१२८) सु रमन चिंतामनि फूलना गाथा २६६२ से २७०६ तक
(विषय कमल दल, अर्क- ३६)
रमना रे ॥ रखना रे ।
रमना रे ॥
रखना रे ।
उव
रमना
रे ॥
रखना रे ।
उव उवन चिंतामनि उवन पौ, जिन रखना रे । उव उवन उवन दर्पंतु, उवन जिन जिन जिनय चिंतामनि जिन उवन जिन जिन जिनयति जिनय जिनेन्दु, जिनय जिन जिन इस्ट चिंतामनि उवन पौ, जिन उवन इस्ट इस्टंतु, इस्ट जिन जिन लषन चिंतामनि अलष पौ, जिन जिन अलष अलष दर्पंतु, अलष जिन जिन गमन चिंतामनि अगम पौ, जिन जिन अगम अगम दिस्टंतु, अगम जिन जिन सुयं चिंतामनि उवन पौ, जिन जिन उवन रमन दसैंतु, रमन जिन जिन समय चिंतामनि उव समय, जिन जिन असम साहि साहंतु, समय जिन
रमना रे ॥
रखना रे ।
जिन गुपित चिंतामनि गुपित जिन जिन जिन गुपित उवन दर्पंतु, गुप्ति जिन जिन पयं चिंतामनि परम जिनं, जिन जिन पयं मुक्ति दसैंतु, परम जिन
रमना रे ॥ रखना रे । रमना रे ॥
रखना रे ।
रमना रे ॥
रखना रे । रमना रे ॥
रखना रे । रमना रे ॥
१ ॥
२
३
४
६
11
11
५ ||
८
||
11
७ 11
॥
९ ॥
३७७
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
जिन धुवं चिंतामनि ध्रुव रमनु, जिन रखना रे । जिन धुवं मुक्ति विलसंतु, धुवं जिन रखना रे ।। १० ।। जिन चलन चिंतामनि अचल पौ, जिन रवना रे । जिन अचल उवन इस्टंतु, अचल जिन रखना रे ।। ११ ।। जिन ढलन चिंतामनि उब ढलनु, जिन रखना रे । जिन उवन ढलनु ढलनंतु, ढलन जिन रखना रे ॥ १२ ॥ जिन दिप्ति चिंतामनि दिप्ति जिनु, जिन रखना रे । जिन उवन दिप्ति दिपिनंतु, दिप्ति जिन रखना रे ।। १३ ।
जिन दिस्टि चिंतामनि दिस्टि जिनं, जिन रखना रे ।
जिन उवन दिस्टि दिस्टंतु, दिस्टि जिन रखना रे ।। १४ ।
जिन अर्क चिंतामनि अर्क जिनु जिन रखना रे । जिन उवन अर्क अकंतु, अर्क जिन रखना रे ।। १५ ।। जिन कलन चिंतामनि उव कलनु, जिन रवना रे । जिन सरनि कलन विलयंतु, कलन जिन रखना रे ॥ १६ ॥ जिन चरन चिंतामनि उव चरनु, जिन रखना रे । जिन सरनि चरनु विलयंतु, चरन जिन रखना रे ।। १७ ।। जिन कमल चिंतामनि उव कमल, जिन रखना रे । जिन विविर उवनु विलयंतु, कमल जिन रखना रे ॥ १८ ॥ जिन कमल चिंतामनि धुव कमलु, जिन रखना रे । जिन कमल धुवं ध्रुव उत्तु, कमल जिन रखना रे ।। १९ ।। ध्रुव कमल चिंतामनि धुव उवनु, जिन रखना रे ।
धुव उवन उवन सम श्रवन, श्रवन जिन रखना रे ॥ २० ॥

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