Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 418
________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी सइ वीर समय जिन श्रेनि पौ, सड़ श्रेनि कलन कलयंत । कलि कलन सहावे रमन पौ, सुइ श्रेनि कलन सिद्धि रत्तु ॥ १२ ॥ ॥जिनेली.॥ सुइ तारन तरन सु कमल मौ, सुइ उवन कमल विगसंतु ।। सुइ अर्क उवन उव कमल मौ, उव समय मुक्ति विलसंतु ॥ १३ ॥ ॥जिनेली.॥ (११२) सुन्न रमन चौतीसी माथा गाथा ३०७६ से ३११० तक (विषय : सुन्न बहतरी- ५७२ सुन्न) विलस रमन जिन अंकुर पाये, लवन साह जिन उव धुव आये ॥ १ ॥ जिन जिनवर के गुन रमन रलै, उव उवन उदय सम मुक्ति मिलै ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ रमनंतर हिय जोगी जिन जाने, विलस रमन सिद्धि पाये मान ॥ ३ ॥ || जिन. ॥ विंद सुन्न हिय सहै सु सोई, उव उवन रमन सिद्धि मुक्ति लहेई ॥ ४ ॥ | जिन. ॥ जय उवन सुन्न हुलसा दरसेई, जय सुन्न सुन्न उव उवन सु होई ॥ ५ ॥ ॥ जिन. ॥ जय रमन सुन्न सुइ साह सु लेई, जय तिस्ट सुन्न दह सहस सु सोई ॥ ६ ॥ | जिन. ॥ जय इस्ट सुन्न लषु अलषु लषेई, हिय रमन सुन्न दह अलषु रमेई ॥ ७ ॥ ॥ जिन. ॥ सुइ सरह सुन्न कलि कोडि जिनेई, सुइ दर्स सुन्न जिन कोडि रमेई ॥ ८ ॥ ॥जिन. ॥ नो उवन सुन्न सुइ कोडि सु सोई, सुइ लषन सुन्न सह साह रमेई ॥ ९ ॥ ॥ जिन. ॥ जय अंग सुन्न सुइ अगम सु सोई, पय पयोग सुन्न लषि उवन रमेई ॥ १० ॥ ॥ जिन. ॥ जय चरन सुन्न दह अलषु लषेई, जय पूर्व सुन्न सुइ कोडि लष सोई ॥ ११ ॥ ॥ जिन. ॥ = = (४१८

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