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श्री घातिका विसेष जी
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
केवाल मत 5 श्री षातिका विसेष जी
ॐ नम: सिद्धं ॥ १ ॥ जीव तो तत्तु पंच मई षिदि जरु मरु पवन आकास ॥ २ ॥ एका एकु एकु ॥ ३ ॥ काल छह विडरौ विली कीए ॥ ४ ॥ आधो आडिषो परो सागरु दस को ॥ ५ ॥
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प्रथम काल दिस्टि, सागर कोडाकोडी - ४ ॥ ६ ॥ काल दूसरो सबद, सागर कोडाकोडी - ३ ॥ ७ ॥ काल तीसरो सुर्य अस्कंध, सागर कोडाकोडी - २॥ ८ ॥ काल चौथो पदम कमल, सागर कोडाकोडी - १॥ ९ ॥ केवल उक्त - सम्मत्त, न्यान, दर्सन, वीरी, सुहमंतहेव, अवगाहन, अगुरुलघु, अव्वावाहु, अट्ठ गुन ॥ १० ॥ केवल उक्त ये तो देषै नांहिं, षांडो देष्यो ॥ ११ ॥ तीन पुर्स जोई, भनि जोई, मिथ्या पंच ॥ १२ ॥ सकारा सहस्र दोई (२०००) पुरिस आउठ हाथा गहीराऊ, उत्तर भोगभूमि को गाडरन तिनि के रोम कतरनी कतरियो, षांडो भरै, बरस सै एक गये रोम एकु, जब सब रोम पांडे में ते कढ़े तब एक पल कहिये ॥ १३ ॥ एकु पदौ अढ़ाई सै अष्यर को (२५०) ॥ १४ ॥ गाथा सहस्र अष्यर की (१०००) ॥ १५ ॥
राजू चौदह उचंत, तीन सै तैताल (३४३) राजू प्रिथी को घनाकारु ॥ १६ ॥ अर्क न द्रिस्यते नर्क ॥ १७ ॥ अर्क सी विकलत्रयौ ॥ १८ ॥ अर्क न द्रिस्यते नर्क, अस्थान आवरन तदि थावर भवतु ॥ १९ ॥ त्रिजंच जमेग्य तिजंच भवतु कालादी ॥ २० ॥ दसते देव, विन्यान अंतर विंतर ॥ २१ ॥ नीली नील जोई जोयनी जोयो ॥ २२ ॥ जात उत्पन्न विसेष इस्ट उत्पन्न इस्ट इस्ट लषि उत्पन्न लष्यु ॥ २३ ॥ चतुस्टय उत्पन्न समई सही झड़प विली ॥ २४ ॥ आसम सहि उजेनि नग्री विक्रमाजीत कमल कालि काल विली ॥ २५ ॥ षांडो विली, पंच न्यान आयरन ॥ २६ ॥ पंच मेरु थार वेलु ॥ २७ ॥ पद उत्पन्न पल्लु विली ॥ २८ ॥ संसार उत्पन्न भ्रमन सुभाव ॥ २९ ॥ संसार सरनि सुभाव ॥ ३० ॥ सिद्ध ध्रुव सुभाव ॥ ३१ ॥ संसार सरनि ॥ ३२ ॥ उत्पन्न हितकार सहकार तिअर्थ उत्पन्न ॥ ३३ ॥ असंषि परिनाम दिस्टि अर्क सुभाव ॥ ३४ ॥
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