Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 442
________________ श्री छास्थवाणी जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी पहुंचौवा बारह जनै साथ चाहिजै पहुंचौवा बारह - पयोग बारह (१२), छह अरु छहई, अनंत मिलन, अनंत अवगाह, अनंत प्रसाद ॥ ८४ ॥ सुन्न बारह (१२), विंद बारह (१२), आगौनी बारह (१२), नो उत्पन्न छह अरु छहई उत्पन्न जै छत्तीस (३६), बारह तो साथ चाहिजे पहुंचौवा बारह (१२) ।। ६५ ॥ जय चौबीस (२४), चौबीस तीर्थंकर रमन बहत्तरि (७२), ये गठरी कौने छोड़ी रे ! अनपूछे छोड़ी रयन सुभाव ॥ ६६ ॥ जिनाले बहत्तरि (७२), तिलक १२, अंजुलि १२ ॥ ८५ ॥ कुंजं जल रंज प्रवेस ॥ ६७ ॥ जो मैं कियो सो तुम कियो, जो तुम कियो सो मंगलवार मिलन बत्तीस (३२) ॥ ६८ ॥ प्रमाण, हौं का ऐसो कहत हों, कै तुम्ह काए ऐसौ मिलन रमन छत्तीस (३६) ॥ ६९ ॥ कियौ चिदानंद चिदानंद ॥ ८६ ॥ पंच अरु इकईस (२१) ॥ ७० ॥ इतनो तो तुम्हारे गुहिनारे साहि हों मैं जु कहिऊ रमन इकईस पंचोत्तरे ॥ ७१ ॥ सो तुम कियो सो प्रमान जै जै जै ॥ ८७ ॥ जय जय जय परिनाम सहितं ॥ ७२ ॥ ॥ इति पंचमोऽधिकारः॥ रुचितं सहितं सरूपं ॥ ७३ ॥ रुचितं उत्पन्न सहितं साहि ॥ ७४ ॥ षष्ठ अधिकार रुचितं सहितं बहत्तरि (७२), सुयं उत्पन्न बहत्तरि (७२) ॥ ७५ ॥ रुचितं सुयं उत्पन्न सुभाव ॥ ७६ ॥ उत्पन्न जै जै जै, हितकार जै जै जै, सहकार जै ॥ १ ॥ सहस दहोत्तरे (१०१०) पर्म परमात्मा सरूपं ॥ ७७ ।। उत्पन्न दुंदुहि सब्द ॥ २ ॥ बाईस सहस दहोत्तरे (२२०१०) रुचितं सहितं दुंदुहि सब्द ।। ७८ ॥ पटोहै उपरि जु बैठेहंहिं, सो कौन समै आहि, बत्तीस सै छयानवे (३२९६) सब्दार्थ प्रसिद्ध प्रमान ॥ ७९ ॥ आवहु रे ! भाई हो आवहु, प्रभावतिहि बुलावहु, अगम स्वरूप नित्त सुयं अरु धुवं रिद्धि दियौ ॥ ८० ॥ कै सु कलावतिहि बुलावहु ॥ ३ ॥ उत्पन्न अंकुर तीनि (३) अरु उत्पन्न मूठि ॥ ८१ ॥ उत्पन्न प्रसाद प्रवेस अनंत उत्पन्न तिलक तीनि (३), आरते उत्पन्न प्रवेस मिलन गये तीनि, पैपाल तो आयौ जय जय जय ॥ ४ ॥ दिवौकत को, अनंत उत्पन्न जु लहि न सकै ॥ ८२ ।। प्रवेस प्रसाद दिप्ति रंज बारे लहु की कमाई आगे आई ॥ ५ ॥ चारित्र उत्पन्न छद्मस्थ छह (६) अरु रिद्धि दोइ (२) नो उत्पन्न अंकुर दरसाये ॥ ६ ॥ चौ रिद्धि दीजै ॥ ८३ ॥ बहुरि के उत्पन्न हुँतकार छह (६), छह उत्पन्न हुँतकार जै जै जै ॥ ७ ॥ (४४२)

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