Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 469
________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री नाममाला जी दोहा पटवारी पटवारिनी, सिंधी और सिंधैन / राऊ रानी चौधरन, माते अरु मातेन // 2 // पांडे पंडा इन कही, ज्ञानी ध्यानी सोय / रथी कुवैती आदि सब, वैद्य गुनी अवलोय // 3 // परवारे रतनागरे चरनागरे अजध्या वासी और / ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मिल, दीन्हों आत्म प्रबोध // 4 // तेली वैश्य गहोई या, ठाकुर है राठौर / / कायथ घोसी माहुरा, गोलालारे और // 5 // गोलापूरव दोसके, लाल असहटी जान / ओसवाल पुरवाल मिलि, तारण पंथीय इकतान // 6 // इस प्रकार षट् संघ की, रचना कर इक ठौर / नाम समैया धर कह्यो, भारत में चहुंओर // 7 // पुष्पावती में जन्म ले, सेमरखेड़ी तज राग / आत्म ध्यान निसई धर्यो, जग्यो परम वैराग // 8 // विहरत देश विदेश में, सूखा कर विश्राम / गगन सकल चुम्बत रहै, चैत्यालय शुभ ठाम // 9 // ध्यानाध्यन जहं करत हैं, निशदिन ध्यान मनोज्ञ / कारण्य वन दग्धियो, मन वच तन कर योग // 10 // सिद्ध भूमि सुहावनी, मंगलमय सुखदाय / धर्म ध्यान नित प्रति करो, गुरुपद शीश नवाय // 11 // श्री शुभ सम्वत् 2043 मिती श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी का शुद्ध मूल पाठ सम्पादन श्री निसई जी तीर्थक्षेत्र पर सन् 1986 में सम्पन्न हुआ था। इसमें विशेष उपलब्धि आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज के संघ में सात मुनि - श्री हेमनन्दि मुनि, श्री चन्द्रगुप्त मुनि, श्री समंतभद्र मुनि, श्री चित्रगुप्त मुनि, श्री समाधिगुप्त मुनि, श्री जयकीर्ति मुनि, श्री भुवनन्द मुनि तथा 36 आर्यिका, 231 ब्रह्मचारिणी बहिनें, 60 ब्रह्मचारी व्रती श्रावक एवं अन्य श्रावकों का भी उल्लेख प्राप्त हुआ। यह सम्पादन फैजपुर (महाराष्ट्र) से प्राप्त वि.सं. 1585 -1590 की एवं गंजबासौदा से प्राप्त वि.सं.१५७२ की एवं अन्य हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर किया गया था, समापन श्री शुभ मिति कुंवार सुदी 15 संवत् 2043 को सानन्द सम्पन्न हुआ। ___ सन् 2011 में श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी के पुन: प्रकाशन हेतु पूर्व प्रकाशन मे छपाई सम्बंधी अशुद्धियों को सुधारकर शुद्ध एवं आदर्श प्रति तैयार की गई। इस पुनीत कार्य में सभी साधकजनों एवं सभी विद्वतजनों का सहयोग प्राप्त हुआ। // इति शुभम् // विनम्र सम्पादन TOGT // इति दोहा श्री नाममाला जी ग्रन्ध / (46)

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