Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 430
________________ श्री घातिका विसेष जी तदि सुभाव अर्क न द्रिस्यते नर्क ॥ ३५ ॥ अर्कसी विकल विकलत्रयौ ॥ ३६ ॥ अर्क अस्थान आवरन थावर ॥ ३७ ॥ अर्क बिन तिअर्थ जाच त्रिजंच ॥ ३८ ॥ षिपक लीन बहल विलयंति पल बहल ॥ ३९ ॥ पद कमल बहल विली पंक कंपमा बहल ॥ ४० ॥ जिन उक्त वयन के सुभाव रमनं न द्रिस्यते तद किन्नर ॥ ४१ ।। पूर्व उक्त न रमन न सहकार तदि किं पुरुष ॥ ४२ ॥ समय मूरति हितकार न रमते तदि महोरघ ॥ ४३ ।। गम्य अगम्य जिन उक्त सहकार न रमते तदि गंधर्व ॥ ४४ ।। जिन उक्त जै षिपक न रमते तदि जष्य ॥ ४५ ॥ जिन रमनं न रमते तदि राक्षस ॥ ४६ ॥ अर्क बिन भुक्त तदि भूत ॥ ४७ ॥ जिन प्रियो न द्रिस्यते तदि पिसाच ॥ ४८ ॥ अर्क बिना दिति दिस्टि सुभाउ तदि देव मनु उत्पन्न ॥ ४९ ॥ तदि मानव मनु सहकार तदि मानस मनुष्य पात ॥ ५० ॥ तदि मनुष्य गति भ्रमन किं विसेष तिअर्थ अर्क न द्रिस्यते, ते भयभीत अर्कस्य भय तीनि ॥ ५१ ॥ तदि भै नौ, भै अर्थ उत्पन्न भय, झड़प भय, काय भय, तदि सुभाव भयभीत, ऊंच नीच द्रिस्यते ते सं पुंसंसा अस्थान नौ (९) ॥ ५२ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी मन भै, झड़प भै, वचन भै, दर्स भै, पांडो दर्सयंति, पद लोपन तदि उत्पन्न पलु ॥ ५३ ॥ वांडो सुभाइ षातिका, पद लोपन पलु कथते ॥ ५४ ॥ उत्पन्न भय रमन अन्यान गाडरा प्रवाह ॥ ५५ ॥ तदि सुभाई उत्तम भोगभूमि के गाडरा तिनके रोम कतरि पल्य प्रमान भरितं, तदि पद न दिस्यते ॥ ५६ ॥ पल्य कोड़ाकोड़ी विसेष ॥ ५७ ।। तदि सागर कोड़ाकोड़ी १० तदि काल छह (६) ॥ ५८ ॥ सर्पिणी हुन्डावति भै नौ (९) ।। ५९ ॥ तदि सहकार अर्थ जोइनी द्रिस्यते मिथ्या सहकार तदि विलण्यतं, तदि जोयनी द्रिस्यते ॥ ६० ॥ राजू भी नौ, रंज न द्रिस्यते ॥ ६१ ॥ राजू सुभाव उत्पन्न, राजू हितकार, राजू सहकार, राजू विन्यान, राजू जिनरंज रंज दिस्यते राजू -१४ ।। ६२ ।। तिअर्थ सहकार सुयं तत्काल रमन, तदि रंज न दिस्यते ॥ ६३ ॥ राजू तीन सौ तेतालीस (३४३) रमने ॥ ६४ ॥ तदि संसारी अनंत जीव ब्रह्म ॥ ६५ ॥ ऊंच नीच न द्रिस्यते, पांडो न द्रिस्यते, पद उत्पन्न द्रिस्यते ॥ ६६ ॥ तदि पल्य षातिका विलयं गतः ॥ ६७ ॥ सहकार जिन सुभाव, उत्पन्नता द्रिस्यते गारव विली ॥ ६८ ॥

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