Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 431
________________ श्री पातिका विसेष जी राजू उत्पन्नताई राजू विली, राजू सागर विली ॥ संसारी छेयं, मुक्ति गति सिद्धं भवतु ॥ न्यान उत्पन्न उत्पन्न सहकार ।। ७९ ।। अर्क उत्पन्न अर्क कमल ॥ ७२ ॥ औकास दिस्टि सब्द ॥ ७३ ॥ सु अर्क अस्कंध ह्रिदय उत्पन्न अनंत अवकास परमिस्टी चतुस्टय ॥ ७४ ॥ रत्नत्रय सुभाव, उत्पन्न औकास, उत्पन्न हितकार, उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न कमल अर्कस्य ॥ ७५ ॥ अर्क अर्क सिय सुयं ।। ७६ ।। अर्क उत्पन्न हितकार सहकार ।। ७७ ।। अर्क अर्क सिय जिन जिननाथ रमन अर्क रंज रमन, आनंद अर्क, अर्क अनंत उत्पन्न सुभाव ॥ ७८ ॥ गति छीन, पल्य षातिका छीन, सागर काल छीन, भ्रमन छीन सरनि दलनि विलयं विली ।। ७९ ।। मुक्ति सुभाव मुक्ति सिद्धं गतः ॥ ८० ॥ ॐ नमः सिद्धि मुक्ति प्रसाद ते ॥ ८१ ॥ साह सह धुव अस्थान कालकोडि जा उत्पन्न कोड साह सह उत्पन्न प्रवेस ॥ ८२ ॥ ६९ ॥ ७० ॥ प्रवन लषि अलषि गम्य अगम्य थाह अथाह उत्पन्न प्रवेस ॥ ८३ ॥ सर्व नी सर्व अर्क उत्पन्न प्रवेस ॥ ८४ ॥ ४३१ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जित निरषत असोक वृक्ष, अनंत दर्सन दिस्टि उत्पन्न सुभाव, प्रवेस प्रमान सुह गमन अर्क उत्पन्न ॥ ८५ ॥ अपर चौ विली, गन नंत चरन संतत अनु बाध, प्रतिगन उत्पन्न जार उत्पन्न निधि ॥ ८६ ॥ अवहि पट पयोग प्रवेस संजुक्त ।। ८७ ।। देव दिव्य ध्वनि सहन सिय भाव उवन विली ॥ ८८ ॥ उत्पन्न अन्मोद लीन ।। ८९ ।। सह असह, अगह, अलह लाह, लाह त्रिलोक बंदनीक, उत्पन्न जित प्रवेस अनवार विली ॥ ९० ॥ अनयार उत्पन्न प्रवेस, सरनि विली ॥ ९९ ।। उत्पन्न प्रवेस विली, उत्पन्न मुक्ति प्रवेस, उत्पन्न सह साह सति प्रवेस प्रवेस्यो ।। ९२ ।। असत्य अन्रित विली, व्रित सार उत्पन्न ॥ ९३ ॥ सहन साह मुक्ति प्रवेस धुव ।। ९४ ।। सिद्धं प्रवेस, सियं सह साह उत्पन्न सिद्धासन ।। ९५ ।। उत्पन्न छत्र, उत्पन्न समय मुक्ति सुयं सिद्धि अनंत चतुस्टय संप्राप्तं धुवं ॥ ९६ ॥ दुष्यान विली सुष्येन उत्पन्न सह मुक्ति सिद्धि संपत्तं ।। ९७ ।। विनंद विली, उत्पन्न परम आनंद सह गमन सिद्धि संपत्तं ॥ ९८ ॥ उत्पन्न सह गमन पट प्रवेस ।। ९९ ।। पयोग उत्पन्न साह गमन मन विलियाऊ ॥ १०० ॥

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