Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 438
________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी श्री छयस्थवाणी जी हंसा ॥ २६ ॥ कुंवरसिरी ॥ २७ ॥ पाताले ॥ २८ ॥ वैद्य ॥ २९ ॥ मनसुष ॥ ३० ॥ इन्द्रा ईजरूवा ॥ ३१ ॥ अमरदेव ॥ ३२ ॥ डालू ॥ ३३ ॥ विरऊ ॥ ३४ ॥ जैनाश्री॥ ३५ ॥ अषयावती आल्हो॥ ३६ ॥ रामचंद्र ॥ ३७॥ रंजरमन ॥ ३८ ॥ हरषावती ॥ ३९ ॥ भक्तावती ॥ ४० ॥ सुवनावती ॥ ४१ ॥ रमनावती ॥ ४२ ॥ हीरा ॥ ४३ ॥ विगसावती ॥ ४४ ॥ सिवकुंवार ॥ ४५ ॥ अतुलश्री ॥ ४६ ॥ चंद्रावती ॥ ४७ ॥ हर्षाश्री ॥ ४८ ॥ विहसावती ॥ ४९ ॥ रत्नश्री ॥ ५० ॥ श्रीदीन ॥ ५१ ॥ कनकश्री ॥ ५२ ।। भोउश्री ॥ ५३ ॥ रूपनिधि ॥ ५४ ॥ भीषावती ॥ ५५ ॥ अमलावती ॥ ५६ ॥ सुधर्मा ॥ ५७ ॥ चन्दना ॥ ५८ ॥ ॥ इति तृतीयोऽधिकारः॥ चतुर्थ अधिकार ॐ नम: सिद्धं ॥ १ ॥ जिनवर स्वामी तू बड़ो ॥ २ ॥ मै जिनवर हौं भलो ॥ ३ ॥ बहत्तरि बहत्तरि बहत्तरि (७२) ॥ ४ ॥ चौउवन उत्पन्न बहत्तरि ॥ ५ ॥ बहतरि इकतीस (३१) ॥ ६ ॥ गणधर ११ कलनावती ॥ ७ ॥ रुइया जिन श्रेनि जू उत्पन्न भये ॥ ८ ॥ सोवत काहो रे ॥ ९॥ उठि कलस लेहु सत्ता एक सुन्न विंद उत्पन्न सुन्न सुभाव ॥ १० ॥ अर्थतिअर्थ सिद्धं धुवं ॥ ११ ॥ उव उवन उवन सुयं धुव सासुतं ॥ १२ ॥ बहत्तरि रमन चतुस्टय ॥ १३ ॥ चौरासी उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न अनंत भव ॥ १४ ।। आपनौ आपनौ उत्पन्न निमिष निमिष लेहु लेहु ॥ १५ ॥ जैसे ले सकहु लेहु ॥ १६ ॥ सक विली ॥ १७ ॥ उत्पन्न प्रवेस ॥ १८ ॥ घन उत्पन्न कोड अनंत ॥ १९ ।। दुंदुही सब्द ॥ २० ॥ रमनावती तीन लै उत्पन्न हुई हैं ॥ २१ ॥ बहत्तर (७२) समै लै उत्पन्न ।। २२ ।। निन्यानवे (९९) समै यहि लेह लै उत्पन्न ।। २३ ।। उवं ह्रियं श्रियं ग्रीवकं ॥ २४ ॥ तीन लै उत्पन्न गुप्ति ॥ २५ ॥ उत्पन्न औकास निधि ॥ २६ ॥ लय उत्पन्न अस्कंध तीन ॥ २७ ॥ तीन लय उत्पन्न कुन्यान हननं ॥ २८ ॥ तीन लय उत्पन्न जैनावति ॥ २९ ॥ तीन लय उत्पन्न छाया विमुक्त ॥ ३० ॥ (४३८

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