Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

View full book text
Previous | Next

Page 428
________________ श्री ममल पाहुड़ जी जं जान जयं नंत सुन्न जयवन्ता, जय जयं जान जिन सुन्न विंद प्रवेसा ॥ मय ममल मान सुन्न मान प्रवेसा, मय ममल मान विंद सुन्न अगम गमेसा ॥ दर्स दान दान नंत सुन्न रमेसा, रम रमन रमिय सुन्न विंद रमेसा, ८ ॥ ॥ जिन. ॥ जय दान सुन्न गम अगम प्रवेसा ।। १० ।। ॥ जिन. ॥ सुइ सुन्न उवन श्रेनि जिन श्रेनि जैवंता, ९ || ॥ जिन. ॥ सुड़ सुन्न सहावे रमन मुक्ति प्रवेसा ॥ ॥ तर तार कमल सम समय संमत्ता, सुइ कलन कलिय नंत लोय प्रवेसा ॥ ॥ सुइ तार कमल समय मुक्ति विलसंता ॥ ॥ ११ ॥ जिन. ॥ १२ ॥ जिन. ॥ १३ ॥ जिन. ॥ ४२८ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१६४) तारन तरन फूलना गाथा ३१९४ से ३२०० तक (विषय: औकास आयरन जिनुत्तं लाइये) तार तरन मिलि मुक्ति रमाये, १ ॥ २ ३ ॥ सम समय पियारे, मेरे हो स्वामी ॥ जिनवर वयन तुम्हारे, जय जय मेरे हो स्वामी । ध्रुव जिन वयन तुम्हारे, केवल मेरे हो स्वामी ॥ सुइ इन्द्र धर्महि श्रेनि पूरित, सुइ कलन कमल राये । तर तार कमल सुनंद नंदित, सह समय मुक्ति पाये || मैं पाये जिनवर आपनौ, मैं पाये जिनवर आपनौ । मैं पाये स्वामी आपनी, मैं पाये धुव जिन आपनौ ॥ सुइ सुल्प साहि समाहि, मैं पाये तरन जिनु आपनौ । सुल्प साहि समाहि मैं पाये तरन जिनु आफ्नौ || * ॥ आयरन जिनुत्तं लाइये, आराधि धरिउ सम्हारि । आलाप जिन सन्मुष भये, तं पात्र नंत विचारि ॥ सुइ कलन कमल संजुत्त है, मैं पाये केवल आपनौ || सुल्प साहि समाहि, तं पात्र साह संजुत्त जिनवर । सुल्प साहि समाहि, तं पात्र कमल प्रवेस जिनवर || सुल्प साहि समाहि, मैं पाये तरन जिनु आपनौ ॥ ६ जिनवर जय जिनु जाई, जय जिनु जाई जिनवर प्यारो री केवल जय जिनु जाई, स्वामी जय जिनु जाई स्वामी प्यारो री ॥ ७ || ॥ मैं पाये. ॥ ५ || 11 । ॥ इति श्री भय पिपनिक ममलपाहुड नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469