Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 425
________________ श्री ममल पाहुड़ जी जिन उवन अर्क जं अर्क प्रवेसु, तं सुन्न साहि जिन मुक्ति लहेसु ।। १२ ।। ॥ जिन हो. ॥ जिन उवन साहि सुइ साह सु नंदु, सुइ परमनंद जिन जिनय जिनंदु ॥ जिन पद परचै सुइ उवन जिनुत्तु, १३ ॥ ॥ जिन हो. ॥ जिन सत्य साहि सुइ मुक्ति मिलंतु ॥ उव श्रेनि सहज जिन कलन रमाई, (१५९) तार कमल फूलना गाथा ३१५३ से ३१५७ तक (विषय: औकास तारन तरन स्वभाव की महिमा) १४ ॥ ॥ जिन हो. ॥ जिन तार कमल सम मुक्ति मिलाई ॥ १५ ॥ ॥ जिन हो. ॥ मिलना ॥ उव जिन तुम्हरे हो उवन साहि उव उवन सुइ रमना । उवन साहि जिनवर मुक्ति सुइ जिन जिनवर रमना, उव उवन रमन बिनु नाहि मुक्ति सुइ मिलना ॥ १ ॥ २ || ॥ आचरी ॥ ४२५ जिन दर्सन सुयं विवान स्वामी समय जिन समय उवन मुक्ति निल निलय जिन जिनय श्रेनि जिन अर्क सुइ तर तार समय सिद्धि मुक्ति सुइ उव तार कमल नंतानंत सुइ जिन नंत प्रवेस स्वामी मुक्ति सुइ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सुड़ मिलना । सुड़ रमना ॥ ३ || ॥ जिन. ॥ रमना । मिलना ॥ (१६०) जिन तार फूलना गाथा ३१५८ से ३९६४ तक जिन जिनयति जिनय जिनय जिनु रमन सु, H (विषय औंकास वीतराग तारन तरन जिन स्वभाव निज स्वरुप में रमणता का पुरुषार्थ विशेष ) जय जय जयो जयं जय जिनवर, रमना । मिलना ॥ ५ 11 ॥ जिन. ॥ उव उवन साहि सम साही । ममल जिनवर उक्तु पेषित है रे साही, ४ ॥ ॥ जिन. ॥ जय धुव अवयासं जिनय जिनेसं, मुक्ति धुव साही ॥ १ ॥ मुक्ति रमन जिन समय समाही ॥ जय लोय लोय प्रवेसइया रे । २ ॥

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