Book Title: Adhyatma Vani
Author(s): Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publisher: Taran Taran Jain Tirthkshetra Nisai

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Page 413
________________ श्री ममल पाहुड जी चरि चरन उवन जिन चरन चरै, तत्काल रमन रमि जोड़ । रमि रमन मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ॥ जिन दर्स उवन दरसावै, जिन अलब्धि लब्धि रलि होड़ । सुइ अलब्धि मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ || ॥ री ॥ । जिन इच्छ उवन जिन इच्छ रमै, जिन गुप्ति इच्छ धुव रे धुव इच्छ मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ पय परम तत्तु पद विंद रमै, पय ईर्ज पय ईर्ज मुक्ति जिन ६ ॥ री ॥ ८ ॥ री ॥ । जिन गुप्ति रमन सिय सिद्धि रमै, निहि रिद्धि गुप्ति जिनु रे सुइ गुप्ति मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ॥ रमन जिनु रे । स्वामी पावै ॥ ॥ ति अर्थ तिलोय रमन सुइ नेई, ति ईर्ज उवन तिथेई । इय रमन मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ وا || ९ || री ॥ १० ॥ री ॥ ११ ॥ री ॥ ॥ मध्य ममल रमन जिन रावै, ध्याय नंत नंत जिनु रे । मध्य रमन मुक्ति जिन स्वामी पावै ।। १२ ।। ॥ री ॥ ४१३ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उव उवन रमन रलि रमन रलेई तत्काल रमन जिनु रे । पय नंत मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ || रलि उवन उवन सुइ रमन रलेई, सुइ उवन उवन सुइ रे उव उवन नंत जिन स्वामी पावै ।। ॥ आ अप्प उवन जिन रमन रलै, गुरु गुपित रमन जिनु रे । ठा ठवन मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ ॥ हा हलवं चिय चेयरमन जिन उवन रलै, ध्याय याय उवन जिनु रे । हा हल हुव हुव सुइ रमन रमै, री ईर्ज नंत नंत जिनु रे । ई ईर्ज मुक्ति जिन स्वामी पावै ।। १३ ॥ ॥ । आ अगम अगम जिन अगम रलै, या यास आस जिनु रे ई ईर्ज मुक्ति जिन स्वामी पावै ।। . || १४ ।। री ॥ हिय थान मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ १६ ॥ ॥ री ॥ १५ ॥ री ॥ १७ ।। री ॥ १८ ।। री ॥ ॥ । 9 जिन श्रेनि कलन जिन रमन रलै सुइ तार कमल जिनु रे तार कमल मुक्ति जिन स्वामी पावै ॥ १९ ॥ ।। री ॥

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