Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 01
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 10
________________ लेखक की कलम से... भारतवर्ष की और अपेक्षा से संपूर्ण जगत् की देश-भाषा भिन्न-भिन्न स्वरूपवाली प्राकृत भाषा रही है। शास्त्रीय रीति से विविध विज्ञानों को प्रस्तुत करने की भाषा, संपूर्ण देश में संस्कृत भाषा रही है, इस कारण वह भाषा भी विश्व की विशिष्ट भाषा है । भारत देश की महान् आर्य प्रजा के आध्यात्मिक महा संस्कृति के आदर्श पर विरचित मानव जीवन के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग संबंधी गंभीर परिभाषाएँ प्राकृत और संस्कृत भाषा के शब्दकोश में संगृहीत हैं । जिस प्रकार संस्कृत भाषा का साहित्य विपुल प्रमाण में है, उसी प्रकार मानव-हृदय पर उसका प्रभाव भी अत्यंत तेजस्वी है । मानव हृदय की भक्ति का प्रवाह भी उस ओर सदैव बहता रहा है । मानव बुद्धि को ग्राह्य ऐसा कोई विषय नहीं है, जिससे संबंधित वाङ्मय उस भाषा में न हो । शिल्प, ज्योतिष, संगीत, वैद्यक, निमित्त, इतिहास, नीति, धर्म, अर्थ, तत्त्वज्ञान, व्यवहार और अध्यात्म आदि संबंधी विविध कर्तृक अनेक ग्रंथ इस भाषा में हैं और आज भी विपुल प्रमाण में उपलब्ध हैं । दैनिक जीवन से संबंध रखनेवाले विषय, प्राचीन साहित्य संशोधन, प्राचीन शोध, भाषा, विज्ञान, तुलनात्मक भाषा शास्त्र आदि के अभ्यास के लिए इस भाषा के अभ्यास की आवश्यकता आज भी रही है । प्राकृत और संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का प्राण ही हैं, इतना ही नहीं, गहनता से विचार करें तो 'विश्व के सभी मनुष्य जीवन का भी यह प्राण हैं' - यह कहना अधिक उचित और सत्य है ।

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