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निर्मल नयन युगल है । दोनों का साहित्यक्षेत्र में अमाप योगदान हैं,
फिर भी आर्य संस्कृति को समझने के लिए जितनी आवश्यकता संस्कृत की हैं, उससे भी अधिक आवश्यकता प्राकृत की है।
बालक हो या बालिका, स्त्री हो या पुरुष, राजा हो या रंक, मूर्ख हो या पंडित - सभी को प्रिय व उपकार करनेवाली भाषा हो तो वह प्राकृत भाषा
प्रस्तुत ग्रंथ की उपयोगिता :- समय परिवर्तनशील है । बीच समय में प्राकृतभाषा सीखने के साधन छिन्न भिन्न हो जाने से प्राकृत भाषा के अध्ययन में मंदता आ गई थी और संस्कृत भाषा की साधन सामग्री का सद्भाव होने से संस्कृत का प्रचार बढ गया था ।
परंतु अभी अभी साधुवर्ग में और हाईस्कूल कॉलेज में Second Language के रुप में प्राकृत का पठन पाठन चालू हुआ है, जिससे गृहस्थवर्ग में भी प्राकृत का अच्छा प्रचार हो रहा है।
प्राकृत के अधिकाधिक प्रचार के लिए और विद्यार्थीवर्ग को सरलता से बोध हो सके इसके लिए मार्गोपदेशिका रुप पुस्तक की आवश्यकता थी। उसमें परम पूज्य परमोपकारी समयज्ञ श्रीमद्गुरुराज (विजय विज्ञानसूरीश्वरजी म.सा.) श्री की प्रेरणा से मैंने यह कार्य हाथ में लिया । उनकी असीम कृपा से 'प्राकृत विज्ञान पाठमाला' तैयार हुई है, उसके लिए मैं उनका सदा ऋणी रहूंगा।
इस पुस्तक का अध्ययनकर भव्यात्माएँ प्राकृत भाषा का सरल बोध प्राप्त कर उसका अधिकतम प्रचार-प्रसार करे । इस 'प्रासंगिक' के आलेखन में पं-लालचंद भगवानदास गांधी द्वारा आलेखित 'प्राकृत भाषा की उपयोगिता' का भी उपयोग किया गया है ।
शुभं भवतु