Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ कि प्रवचनों का साहित्य के रूप में संकलन करने का काम इन्हीं के द्वारा प्रारंभ किया गया। रामपुरियाजी द्वारा संकलित पुस्तकें- --प्रवचन डायरी नाम से प्रकाशित हुईं। प्रवचन - संकलन का सिलसिला चला तो चलता ही चला । समयसमय पर वे पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। हमारे अनेक साधुसाध्वियों ने अपना समय और श्रम लगाया और प्रवचन - साहित्य की धारा-सी बह चली। वह साहित्य पहले भिन्न-भिन्न नामों से प्रकाशित हुआ, फिर प्रवचन पाथेय में परिणत हो गया । आगे की सुधि लेइ, 'प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला' का १३वां पुष्प है। इसमें मुख्यतः सन १९६६ में हुई श्रीगंगानगर - - यात्रा के प्रवचन संकलित हैं। इनका संकलन साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने नहीं, साध्वी कनकप्रभा ने किया। इन वर्षों में प्रवचन - संकलन का काम मुनि धर्मरुचि कर रहा है। साध्वीप्रमुखा ने प्रवचनों की फाइलें इसे सौंप दीं। मुनि धर्मरुचि की इस क्षेत्र में अच्छी पकड़ और गहरी लगन है। वह शरीर से दुर्बल है, पर बहुत श्रमशील है। जो काम हाथ में लेता है, उसे पूरी निष्ठा से करता है। वह मानता है कि प्रवचन सुनने और लिखने से उसे बहुत लाभ हुआ है। सन १९६६ के प्रवचनों का संपादन सन १९९२ में हो, यह श्रम का दुरूह काम है, पर मुनि धर्मरुचि ने इसे सहज बना लिया। प्रवचनकार कोई, संकलनकर्ता कोई और संपादक कोई, लेकिन एक लक्ष्य से प्रतिबद्ध होने के कारण इनमें कहीं दुरूहता की झलक नहीं मिलती। जनभोग्य साहित्य की श्रृंखला में यह एक नई कड़ी जुड़ रही है। इसकी उपयोगिता का अंकन पाठकों पर छोड़कर मैं यही कामना करता हूं कि इस क्षेत्र में काम करने के लिए और भी साधु-साध्वियां दक्ष बनें। जैन विश्वभारती, लाडनूं १ फरवरी १९९२ Jain Education International आठ For Private & Personal Use Only आचार्य तुलसी www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 370