Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 02 Pratyek Buddhbhashitani Rushibhashitsutrani Moolam
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[२], .........मूलं H I गाथा [१-९] ........ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [२] 'वज्जियपुत्त' अध्ययनं प्रत सूत्रांक H गाथा ||१-९|| ॥२॥ 'जस्स भीता पलायन्ति, जीवा कम्माणुगामिणो। तमेवादाय गच्छति, किच्चा दिन्नं व वाहिणी ॥ १॥ वज्जियपुत्तेण अरहना इसिणा बुइत-दुक्खा परिवित्तसंति पाणा, मरणा जम्मभया य सव्वसत्ता। तस्सोक्सम गवेसमाणा, अणे प्रारंभभीरुए ण सत्तं ॥२॥ गच्छंति कस्मेहि से णुबर्त, पुणरवि आयोति से सयंकडेणं । जम्मणमरणाइ अट्टो पुणरवि आयाइ से सकम्मसिन्ने ॥३॥ बीया शंकुरणिकत्ती, अंकूरातो पुणो बोध । बोर संजुज्जनाथमि, अंकुरस्सेव संपदा ॥ ४॥ वीयभूताणि कम्माणि, संसारमि अणादिए। मोहमोहितचित्तस्स, M३ दविलज्मततो कन्माण संतती॥५॥ मूलस्सित्ते फलुप्पत्ती, मूलाघाते हते फलं । फलत्थी सिंचती मूलं; फलघाती ण सिंचती ॥ ६॥ मोहमूलम यणं गिब्याणं, संसारे सव्वदेहि। मोहमुलाणि दुक्खाणि, मोहमूलं च जम्मण ॥७॥ दुक्खामूलं च ससारे, अण्णाोण समज्जितं । मिगारिव्य सरुप्पत्ती, हणि कम्माणि मूललो ॥ ८॥ एव' से युद्ध बिरते विपावे दंते दथिए अलंताती। णो पुणरवि इच्मत्थं हव्यमागच्छतित्ति बेमि ।। १ ।। ।। इइ विइयं वज्जियपुत्तज्जयण ॥२॥ त दीप अनुक्रम [१२-२०] ~14~

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78