Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 02 Pratyek Buddhbhashitani Rushibhashitsutrani Moolam
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
View full book text ________________
आगम
[भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
संबंधी
साहित्य
...... अध्ययन-[१०], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं
[१०] 'तेतलिपुत्त' अध्ययनं
प्रत सूत्रांक [१]
తకు
गाथा
మును
॥
६
॥
||१||
अषिभाषितेषु
दीप
कोऽह' (क) ठाइणपणत्थ सगाई कमाई() माई। सद्धेयं खलु भो समणा घदती, सायं सालु माहणा. अह-1 मेगोऽसधेयं बदिस्सामि तेतलिपुत्तेण अम्हता इसिगा वुझ्यं, सपरिज णोति णाम ममं अपरिजणोत्ति क. मे तं सद्दहिस्सती? | सपुत्तपि णाम मम अपुतं त्ति को मे तं सहहिस्सती?। एव' समिपि णाम मम०, सवित्त पिणाम मम०, सपरिगहं णाम म०, दाणमाणसवकारोययारसंगहिते० तेतलिपुत्तस्स सयणपरिजणे विराग गते को मे तं सहहिस्सती ?। जातिकुलरूबविणतोश्यारसालिणी पाहिला मूसिकार-2॥८॥ धूता मिक/ विप्पडियन्ना को मे तं सद्दहिस्सति ११, कालक्कमणीतिसत्थविसारदे तेतलिपुत्ते विसाद गतेति को मे त सद्दहिस्सति ?, तेत-1 | १०:११ तेतलिपुत्तेण आमच्छोण गिह पविसित्ता तालपुडके विसे बतितेत्ति सेविय से पडिहतेति को में त' साहहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण अमच्चेषां महति- लपुत्तमम महालयं रुक्खं दुहिता पासे छिण्णे (तहावि ण मए) को मे त सहहिस्सति ?, तेतलिपुत्तण महतिमहालयं पासाणं गीचाए पंधित्ता अत्थाहाए पुक्खरिणीए अप्पा पक्वित्ते तत्थऽविय थाहे लद्धे को से तं सद्दहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण अहतिमहालियं कहरासी पलीवेत्ता अप्पा। पक्वित्तं सेऽपि य से अगणिकाप विझाए को मे त सदहिस्सति ?, तए सा पुट्टिला मूसिायारधूता पंचवणाई सखि विणिताई वत्थाई पवर परिहिता अंतलिक्सपडिवण्णा एवं चयासी-आउसो! तेतलिपुत्ता! पहि तो आयाणाहि पुरओ विच्छिपणे गिरिसिहरकंदरप्पवाते पिट्ठभो कंपेमाणेज्य मेइणितलं साकतेय पायवे णिफोडेमाणेव्य अंबरतलं, सब्बतमोरासिव्य पिडिते, पचपखमिव सर्य करते भीमरथ करते महावारणे समुहिए या सचक्युणिवापसु पयंडधणुजंतविप्पमुका पुंक्खमेत्तावसेला धरणिप्पवेसिणो सरा णिपतंति, हुयवहजालासहस्ससंकुलं समततो पलित्त धगधगंति सञ्चारणयां, अचिरेण य बालसूरगुंजाइपुंजणिकरपकासं कियाइ गालभूत' गिह, आउसो! तेतलिपुत्ता ! क क्यामो ?, तते णं से तेतलिपुते अममी पोहिल मूसियारधूत एवं वयासि पोहिले ! एहि ता आयाणाहि, भीयस्स खलु भो पव्यज्जा, अभिउत्तस्स सबहणकिको मातिस्स रहस्सकिच्च उक्कंठियस्स देसगमणकिच्चं पिवासियस्स पाणकियां छुहियस्स भोयणकिरा पर अमिउंजिर्ड कामस्स सत्थकिन्न खतस्स दंतस्स गत्तस्स जिति दियस्स एसो ते एकमवि ण भवइ ॥ एवं से सिद्ध बद्ध० ॥ १०॥ तेतलिपत्तणामझयण'
325
अनुक्रम [१२४१२५]]
~25~
Loading... Page Navigation 1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78