Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 02 Pratyek Buddhbhashitani Rushibhashitsutrani Moolam
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम संबंधी साहित्य
[भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि
.... अध्ययन-[२७], ..........मूलं H I गाथा [१-८] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं
प्रत सूत्रांक
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| [२७] 'वारत्तय' अध्ययन TEL सि । साधु सुचरितं अव्याहता समणसंपया वारत्तएणं अरहता इसिणा बुइत-न चिर जणे संबसे मुणी, संवासेण सिणेहु वद्धती | भिक्खस्स अणिच्छाचारिणो , अत्तह कम्मा दुहायती ॥१॥ पयहितू सिणेहबंधणं , भाणझयणपरायणे मुणी। णिवत्तेण सयावि चेत
व्याणाय मतिं तु संदधे ॥२॥ जे, भिक्खु सखेषमागते , वयणं कण्णमुहं परस्स व्या । सेऽणु पियभासण हुमुद्धे, आतह णियमा
तु हायती ॥३॥ जे लक्षणसुमिणपहेलियाउ, भक्खाइयाई व कुतूहलाओ। भद्द (तहाय) दाणाई गरे पउंजए , सामण्णभावस्स महंतर खुसेायण ऋषिभाषि- ॥४॥ जे चोलकतवणयणेसु वावि , आवाहवि (वी) वाहवधूवरेसु या जुज्जेइ जुरुक य पत्थिवाणं, सामण्णभावस्स महंतर खु से कामरकामतेषु MS जे जीवाण हेतु पूयणट्ठा, किंची इहलोकसुहं पउंजे। अद्धि(ही)ऽवि सेए सुपयाहिणे से, सामपणभावस्स महंतर खु से ॥ ॥ यण'२८
ववगयकुरु जे संछिपणसोते , पेज्जेग दोसेण य विप्पल्मको। पियमप्पियसहे अकिंचणे य , आत?ण जहेज धम्मजीवी ॥ ॥ ॥ एवं से सिद्धे० ॥२७॥ वारत्तयणामज्झयणं ।। २७॥
गाथा ॥१-८||
दीप
अनुक्रम [२९१२९८]
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