Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 02 Pratyek Buddhbhashitani Rushibhashitsutrani Moolam
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम नमो नमो निम्मलदंस आगम आगम पूज्य आनंद- क्षमा- ललित-सुशील सुधर्मसागर-गुरुभ्यो नमः आगम_संबंधी_साहित्य प्रत्येकबुद्धभाषितानि ‘ऋषिभाषितसूत्राणि' मूलं आगम भाग 2 पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद आगम आगम आगम आगम के आग आगम आगम आगम मूल संशोधक :- पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ! आगम आगम अभिनव संकलनकर्ता :- आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि HOTEL रागम Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता womanepance सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर की वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद सूरीश्वरजी महाराज साहेब करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. ही है । इस संघमें पूज्य साधू-भगवंत एवं साध्वी-महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर-साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघर्म आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म. की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है | Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स आगम संबंधी साहित्य मूल संशोधक अभिनव-संकलनकर्ता writeawadhuriAVANEARS Tolerances पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] Araveena प्रत-प्राप्ति और पेज-सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855/98253062751 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ &STISTA & BONER $377TH & 9am 1 TOTER BUSH आजम ॐ आगम आजम आगम आजम सन्म STING BRIMER 5000 आजम राज आजम वासरण आजम आजम आ आजम आजम आम आगम आगम आजम अनुराणम 2213111 lauri S1GT पलाम SUCHTE आज आगम आगम आगम वाचना शताब्दी वर्ष 841929 OTHE आगर BIOTH आम आ झालर सम् लाल आिणम् म जिम GLIGEN आगम आगम म आगम 271ST आपण 34676 3AUSTR Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि श्री 'ऋषिभाषितसूत्राणि' नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: प्रत्येकबुद्धभाषितानि “ऋषिभाषितसूत्राणि" मूलं [मूलसूत्रम् एव] [आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ] (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D. श्रुतमहर्षि) 01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल ५ 'आगम-संबंधी-साहित्य' श्रेणि भाग-२ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) :ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषि भाषित [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि .... अध्ययन--1, .....मूलं / गाथा [-] ....... । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं प्रत सूत्राक गाथा ||-II श्रीमद्भिः प्रत्येकबुद्धैर्भाषितानि श्रीऋषिभाषितसूत्राणि. प्रकाशिकासुरतवास्तव्योष्ठिवर्यचुनिभाइमछुभाईत्याख्यसद्गृहस्थ धर्मपत्नी श्राविका कंकुवाइ वितीर्ण द्रव्य साहाय्येन रनपुरीया श्री ऋषभदेव केशरीमलजी नाम्नी संस्था मुदयिता-मुख पृष्ठ तथा पृष्ठ ३७-४३ जैनबन्धु प्रेस, इन्दौर में छपा. प्रतयः १... वीर संवत् २४५३ विक्रम संवत् १९८३ क्राइस्ट १९२७ पण्यम् . दीप अनुक्रम मूल संशोधकेन संपादित: 'ऋषिभाषित'सूत्रस्य टाईटल पृष्ठः Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामाचारी-संरक्षक, ज्ञानधनी, आगम-संशोधक, तीव्र-मेधावी, समाधिमृत्यु-प्राप्त, बहुमुखीप्रतिभाधारक पज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब • जिन्होने शुद्ध-श्रद्धा, सम्यक्-श्रुत आराधना, यथाख्यातचारित्र के प्रति गति और अंत समय देह-ममत्व के त्याग के द्वारा कायोत्सर्ग नामक अभ्यंतरतप कि मिशाल कायम कि है ऐसे बहुश्रुत आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज का परिचय कराना मेरे लिए नामुमकिन है, फ़िर भी गुरुभक्ति बुद्धि से : श्रद्धांजली स्वरुप एक मामुली सी झलक पैस करने का यह प्रयास मात्र है। चारित्र-ग्रहण के बाद अल्प कालमे जो अपने गुरुदेव की छत्रछाया से दूर हो गये, तो भी गुरुदेव के स्वर्ग-गमन को सिर्फ कर्मो का प्रभाव मानकर | अपने संयम के लक्ष्य प्रति स्थिर रहते हए अकेले ज्ञान-मार्ग कि साधना के पथ पर चले | पढाई के लिए ही कितने महिनो तक रोज एकासणा तप के साथ | • बारह किल्लोमिटर पैदल विहार भी किया | लेकिन अपने मंझिल पे डटे रहे, और परिणाम स्वरुप संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का, प्राचीन लिपिओ का, व्याकरणन्याय-साहित्य आदि का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया | जैन आगमशास्त्रो के समुद्र को भी पार कर गए| .एक अकेला आदमी भी क्या नहीं कर शकता? इस प्रश्न का उत्तर हमें इस महापुरुष के जीवन और कवन से मिल गया, जब वे चल पड़े देवगिणी क्षमाश्रमण के स्थापित पथ पर. बिना किसी सहाय लिए हए सिर्फ अकेले ही "जैन-आगम-शास्त्रो" को दीर्घजीवी बनाने के लिए अनेक हस्तप्रतो से शुद्ध-पाठ तैयार किये | दो वैकल्पिक आगम, कल्पसूत्र और नियुक्तिओ को जोड़कर ४५ आगम-शास्त्रो को संशोधित कर के संपादित किया | फिर पालीताणामें आगम • मंदिर बनवाकर आरस-पत्थर के ऊपर ये सभी आगम-साहित्य को कंडारा, सूरतमें तामपत्र पर भी अंकित करवाए और "आगम मंजूषा" नाम से मुद्रण भी करवा के बड़ी बड़ी पेटीमें रखवा के गाँव गाँव भेज दिए | वर्तमानकालमे सर्व प्रथमबार ऐसा कार्य हआ | .सिर्फ मल आगम के कार्य से ही उन के कदम रुके नही थे, उन्होंने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, नियुक्ति, अव चूरी, संस्कृत- छाया आदि का भी संशोधन-सम्पादन किया | उपयोगी विषयो के लिए उन्होंने एक लाख श्लोक प्रमाण संस्कृत-प्राकृत नए ग्रंथो की रचना भी की | कितने ही ग्रंथो की प्रस्तावना भी लिखी | ये सम्यक्-श्रुत मुद्रित करवाने के लिए आगमोदय समिति, देवचंद लालभाई इत्यादि विभिन्न संस्था की स्थापना भी की | . ज्ञानमार्ग के अलावा सम्मेतशिखर, अंतरीक्षजी, केशरियाजी आदि तीर्थरक्षा कर के सम्यक-दर्शन-आराधना का परिचय भी दिया | राजाओं को प्रतिबोध: | कर के और वाचनाओ द्वारा अपनी प्रवचन-प्रभावकता भी उजागर करवाई | बालदिक्षा, देवद्रव्य-संरक्षण, तिथि-प्रश्न इत्यादि विषयोमे सत्य-पक्षमें अंत तक दृढ़ रहे | जैनशासन के लिए जब जरुरत पड़ी तब अदालती कारवाईओ का सामना भी बड़ी निडरता से किया था | • सागरानंदजी के नाम से मशहूर हो चुके पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजीने अपने परिवार स्वरुप ७०० साधू-साध्वीजी भी शासन को भेट किये । ...ये थे हमारे गुरुदेव "सागरजी"... .........मुनि दीपरत्नसागर... Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयमैकलक्षी, उपधान-तप-प्रेरक, चारित्र-मार्ग-रागी, प्रवचन-पटु, सुपरिवार-युक्त पूज्य गच्छाधिपतिआचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब ... परमपूज्य आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी के पाट-परंपरामे हुए तिसरे गच्छाधिपति थे पूज्य आचार्य श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी, जो एक पून्यवान् आत्मा थे, दीक्षा ग्रहण के बाद अल्पकालमे ही एक शिष्य के गुरु बन गये | फ़िर क्या ! शिष्यो कि संख्या बढती चली, बढ़ते हुए पुन्य के साथ-साथ वे आखिर 'गच्छाधिपति' पद पे आरूढ़ हो गए | इस महात्मा का पुन्य सिर्फ शिष्यों तक सिमित नही था, वे जहा कहीं भी 'उपधान-तप' की प्रेरणा करते थे, तुरंत ही वहां 'उपधान' हो जाते थे | प्रवचनपटुता एवं पर्षदापुन्य के कारण उन के उपदेश-प्राप्त बहोत आत्माओने संयम-मार्ग का स्वीकार किया | खुद भी संयमैकलक्षी होने के कारण चारित्रमार्ग के रागी तो थे ही, साथसाथ ज्ञानमार्ग का स्पर्श भी उन का निरंतर रहेता था | आप कभी भी दुपहर को चले जाइए, वे खुद अकेले या शिष्यपरिवार के साथ कोई भी ग्रन्थ के अध्ययन-अध्यापनमें रत दिखाई देंगे। ... ये तो हमने उनके जीवन के दो-तीन पहेलु दिखाए | एक और भी अनुसरणीय बात उन के जीवन में देखने को मिली थी- 'आराधना-प्रेम'. कैसी भी शारीरिक स्थिति हो, मगर उन्होंने दोनों शाश्वती ओलीजी, पोष)दशमी, शुक्ल पंचमी, त्रिकाल देववंदन, पर्व या पर्वतिथि के देववंदन आदि आराधना कभी नहीं छोड़ी | आखरी सालोमें जब उन को एहसास हो गया की अब 'अंतिम-आराधना' का अवसर नजदीक है, तब उन के महमें एक ही रटण बारबार चाल हो गया“अरिहंतन शरण, सिद्धनं शरण, साधनं शरण, केवली भगवंते भाखेला धर्मन् शरण " इसी चार शरणो के रटण के साथ ही वे समाधि-मृत्यु-रूप सम्यक निद्रा को प्राप्त हुए थे | ऐसे महान् सूरिवर को भावबरी वंदना | ... मुनि दीपरत्नसागर... अनुदान दाता संस्था:- “श्री परम-आनंद श्वेतांबर मर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभदास ठककर कोलेज रोड, पालडी. अमदावाद करीब ५० साल पहेले परम पूज्य स्व. गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेंद्रसागरसूरीजी म.सा. ही है | इस संघमें पूज्य साधू भगवंत एवं साध्वीजीओ का उपाश्रय भी है जहा हर-साल चातुर्मास करवाके श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है | इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है। ~ 8 ~ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - . . - . . - .. - .. .. - .. - .. 'सागर-समुदाय-एकता-संरक्षक, तीर्थ-उद्धार-कार्य-प्रवृत्त, गुणानुरागी' इस "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणि भाग १ से ४ के संपूर्ण अनुदान के प्रेरणादाता पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसरिजी महाराज साहेब पूज्यपाद स्व. गच्छाधिपति देवेन्द्रसागर-सूरीश्वरजी के विनयी शिष्य एवं दो गच्छाधिपतिओ के मुख्य सहायक के रुपमे 'सागर समुदाय' के सुचारु संचालक | पूज्य हर्षसागरसूरिजी, जिन की प्रेरणा से ये “आगम संबंधी साहित्य" के मद्रण के लिए संपर्ण द्रव्यराशि प्राप्त हुई, उनका अत्यल्प परिचय यहां करेंगे | समुदाय: एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए ये महात्मा समुदाय के साधु-साध्वीजी की आवश्यकताओकी पूर्ती के लिए भी प्रवृत्त रहेते है, प्राचीन-अर्वाचीन तीर्थो के | जीर्णोद्धार एवं विकाश के लिए भी उत्साहित रहेते है, ज्ञान-क्षेत्र अछूता न रहे इसीलिए अनुमोदना, अनुदान एवं समय मिलने पर शास्त्र-वांचनमें भी रूचि रखते है | समुदाय के जरूरतमंद साध्वीजी भगवंतो के आवास का विषय हो या साध्वीजी के विहारमें मजदूर का वेतन चुकाना हो, ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के प्रति भी उन का लक्ष्य रहेता है | दर्शन-शुद्धि के लिए जब उन्होंने समग्र भारतवर्ष के १०० साल तक के पुराने जिनालयो में १८ अभिषेक की प्रेरणा की, उस वक्त लगभग | सभी अभिषेक-सामग्री की द्रव्य-शुद्धि का ख़याल रखते हए अपनी मेधावी बुद्धि का परिचय दिया था, साथमे अनकंपा भाव से पुजारी या विधि करानेवाले को यत्किंचित् बहमान प्रगट करते हए कुछ धन-राशि प्रदान करवाई। ऐसे बहुगुण-संपन्न महात्मा पूज्य आचार्यश्री हर्षसागर-सूरिजी को हम भावभरी वंदना करते हए इस श्रुतकार्य का प्रारंभ करने जा रहे है। ... मुनि दीपरत्नसागर [कात्रेज]पूना, शंखेश्वर, कपडवंज, प्रभासपाटण आदि स्थानोमे आगममंदिर के प्रेरक, कर्मग्रंथ अभ्यासु, निस्पृह महात्मा पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागर-सूरीश्वरजी महाराज साहेब (एवं) अजातशत्रु, स्वाध्याय-रसिक, प्रशांतमूर्ती और अपने गुरु के प्रीतिपात्र परम पूज्य आचार्य श्री नंदीवर्धनसागर-सूरिजी महाराज साहेब इस पवित्र श्रुत-कार्यमे दोनो सूरिवरो का स्मरण करते हुए कोटि कोटि वंदना के साथ ........मुनि दीपरत्नसागर ~ ~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक: पृष्ठांक ३२ प्रत्येकबुद्ध-भाषित ऋषिभाषित-सूत्राणि विषयानुक्रम: अध्ययनम् पृष्ठांक: क्रमांक: अध्ययनम् नारद | सोरियायण वज्जियपुत्त विदु दविल १५ वरिसव अंगरिसि आयरियायण पुप्फसाल उक्कल वल्कलचिरि गाहावइज्ज कुम्मापुत्त दगभालिज्ज केतलिपुत्त रामपुत्तिय महाकासव हरिगिरि तेतलिपुत्त अंबड मंखलिपुत्त मायगिज्ज जणवक्किय वारत्तय भयालि अद्दइज्ज बाहुक वद्धमाण मधुरायणिज्ज वायु ४९ ३. ५० ~ 10~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक: ३१ ३२ 33 ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ प्रत्येकबुद्ध-भाषित ऋषिभाषित-सूत्राणि विषयानुक्रमः पृष्ठांक: क्रमांक: ५१ अध्ययनम् पासिज्ज पिंग अरुणिज्ज इसिगिरि अद्दालइज्ज तारायणिज्ज सिरिगिरिज्ज साईपुत्तिज्ज ५२ ५३ ५४ ५६ ५७ ५८ ६० ~11~ ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ 1 अध्ययनम् संजइज्ज दिवायाणिज्ज इंदनागिज्ज सोमिज्ज जम वरुण वेसमण ऋषिभाषितसूत्रस्य प्रामाण्यं पृष्ठांक ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ७० Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ['ऋषिभाषित-सूत्राणि' मूलं ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत सबसे पहले " श्रीमद्भिः प्रत्येकबुद्धैर्भाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि " के नामसे सन १९ २७ (विक्रम संवत १९ ८३) में श्री ऋषभदेव केशरीमलजी नामक संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | +ये 'ऋषिभाषित' सूत्र का मूल प्राकृत नाम 'इसिभासिय' है | वर्तमान कालमे इस सूत्र का समावेश ४५ आगमोमें नही दिखता, मगर पक्खीसूत्रमें इस की गिनती 'आगमसूत्र' के रुपमे हुई है | अंगबाह्य सूत्रोमे कालिकसूत्रमे पांचवा कालिकसूत्र 'इसिभासिय' लिखा है | नन्दीसूत्र में ये सूत्र सातवे 'कालिक सूत्र के रूपमे गिनाया है | इस सूत्र का हिन्दी एवं गुजराती अनुवाद भी किसी ने प्रकाशित करवाया है । इस सूत्र (आगम) पर किसीने वृत्ति (अवचूर्णि) भी लिखी है। 'इसिभासिय' सूत्र का संशोधन व संपादन पूज्य पुन्यविजयजीने भी किताब रुपमे किया है । + हमारा ये प्रयास क्यों? + आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पुज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर सूत्र आदि के नंबर लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा सूत्र आदि चल रहे है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके । * हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस 1 दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची या 'गाथा' शब्द लिखा है। हर पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट दी है | * शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणासे और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद | की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'आगम-संबंधी-साहित्य' भाग-२ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है। ... मुनि दीपरत्नसागर. ~12~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन-[१], .........मूलं HI गाथा [१-११] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं साहित्य प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि प्रत सूत्रांक [१] 'नारद' अध्ययन गाथा ||१-११|| ॥१॥ ऋषिभाषि दीप अथ प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ।। नारयज्झनमामिलापविमेव वदती सोयन्वमेव वदति । जेण समयं जीवे सव्वदुक्खाण मुच्चति ॥१॥ तरहासोयष्याती पर णधि सोयति । यणं २ बज्जि देवनारदेण अरहता इलिणा वुइयं ॥२॥ पाणातिपाततिविहं तिविहेण व कुज्जा कारवे पढम सोयव्वलक्षणं ॥३॥ मुसाबाद तिविहं तिचिहणं णेव बूया ण भासए। वितियं सोयव्वलक्वर्ण || अदत्त(ता)दाय तिविहं तिविहेमा घोष कुज्जा ण कारवे । नतियं सोय-13 व्यलक्खणं ॥५॥ अभपरिगह तिविहं तिविहेणं घोब कुज्जा ण कारवे। चउत्थं सोयब्वलक्षणं ॥६॥ सव' च सचहि पेय, मध्यकालं च सव्यहा। निम्ममत्तं विमुत्ति च, विरतिं चेव सेवते ॥७॥ सव्वतो विरते दंते, सव्वतो परिनिव्युडे। सभ्यतो थिप्पमुक्कप्पा सव्यत्येस समं चरे ॥८॥ सव्व' सोयध्वमादाय, अउ[ड]यं उबहाणव'। सम्बदुक्खप्पहीणे उ, सिद्धे भवति गीरये ॥६॥ दत्तं येवोपसेवती, बंभ' योपसेवती। सव्व' वोवधाणव, दत्तं चेयोवहाण ॥१०॥ बंभ चेबोधधाणव', एव से बुद्ध विरते चिपाये दंते दविए अलं ताई णो पुणरवि इच्चत्थं हब्बमागच्छइत्ति बेमि ॥१२॥ [१२]। पढम नारदज्झयाणं सम्मत्तं ॥१॥ 35ASTHANI अनुक्रम [१-११] ~13~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[२], .........मूलं H I गाथा [१-९] ........ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [२] 'वज्जियपुत्त' अध्ययनं प्रत सूत्रांक H गाथा ||१-९|| ॥२॥ 'जस्स भीता पलायन्ति, जीवा कम्माणुगामिणो। तमेवादाय गच्छति, किच्चा दिन्नं व वाहिणी ॥ १॥ वज्जियपुत्तेण अरहना इसिणा बुइत-दुक्खा परिवित्तसंति पाणा, मरणा जम्मभया य सव्वसत्ता। तस्सोक्सम गवेसमाणा, अणे प्रारंभभीरुए ण सत्तं ॥२॥ गच्छंति कस्मेहि से णुबर्त, पुणरवि आयोति से सयंकडेणं । जम्मणमरणाइ अट्टो पुणरवि आयाइ से सकम्मसिन्ने ॥३॥ बीया शंकुरणिकत्ती, अंकूरातो पुणो बोध । बोर संजुज्जनाथमि, अंकुरस्सेव संपदा ॥ ४॥ वीयभूताणि कम्माणि, संसारमि अणादिए। मोहमोहितचित्तस्स, M३ दविलज्मततो कन्माण संतती॥५॥ मूलस्सित्ते फलुप्पत्ती, मूलाघाते हते फलं । फलत्थी सिंचती मूलं; फलघाती ण सिंचती ॥ ६॥ मोहमूलम यणं गिब्याणं, संसारे सव्वदेहि। मोहमुलाणि दुक्खाणि, मोहमूलं च जम्मण ॥७॥ दुक्खामूलं च ससारे, अण्णाोण समज्जितं । मिगारिव्य सरुप्पत्ती, हणि कम्माणि मूललो ॥ ८॥ एव' से युद्ध बिरते विपावे दंते दथिए अलंताती। णो पुणरवि इच्मत्थं हव्यमागच्छतित्ति बेमि ।। १ ।। ।। इइ विइयं वज्जियपुत्तज्जयण ॥२॥ त दीप अनुक्रम [१२-२०] ~14~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि .... अध्ययन-[३], .........मूलं [१] | गाथा [१-१२] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [३] 'दविल' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-१२|| भविच' खलु भो सव्वलेधोवरतण', लेयोयलित्ता खलु भो जीवा अपोकजम्मजोणीभयावत अणादीय अणबदाग दीहमद चातुरंत बसारसागर बोतोफता लिबमतुलमयलमध्वायाहमपुणभवमपुणरावत्तं सासत ठाणमभुवगता चिट्ठति, से भवति सम्बकामH विरने सब्वसंगातीते सजसिरोहतिक्कते सव्ववीरियपरिनिम्बुड़े सब्बकोहोवरसे सब्बमाणोबरते सव्वमायोवरते सव्वलाभोबरते। सव्ववासादाणोबरचे सुसब्बलंबुडे सुसब्यसब्बोवरत्ते सुसब्बसब्बोवस ते सुसम्बपडिबुडे णो कत्थई सज्जति (रज्जति) य, तम्हा सिव्वलेवोवरए भविस्सामित्तिक असिपण दवि देवलेणं अरहता इसिणा बुइतं । -सुटुमे व बायरे वा, पाणे जो तु विहिसइ । रागदोलाभिभूतप्पा, लिप्पते पाबकणा ॥१॥ परिगह गिण्हते जो उ, अप्पं वा जति वा बहु। गेहोमुच्छाय दोसेणं, लिप्पए पाबकम्मुणा ॥२॥ कोहं जो उ उदीरेइ, अप्पणो वा परस्स वा। तंनिमित्ताणुबंधेर्ण, लिप्पते पावकम्मुणा ॥३॥ एवं जाब मिच्छादसणसल्ले, पाणातिबाते लेवो अलियबयणं अदत्तं च । मेहुणगमणं लेवो लेवो परिग्गहं च ॥४॥ कोहो बहुविहो लेवो, माणो य बहुविधविधीओ। माया य बहुविधा लेवो, लोभो वा बहुविधविधीभो ॥ ५॥ तम्हा ते तं विकिचित्ता, पाबक सम्मपवड़णे। उत्तमहवरगाहो, विरिअत्ताए परिव्यए ॥३॥खोरे दूसिं जघा पप्प,विणासमवगच्छति । एव' रागो व दोसो य. वभवेरविणा- अविभाति सणा ।। ७॥ जया रवीर पधाण' नु, मुच्छणा जायते दधि। एवं गेहिप्पदोसेण, पावकम्म पवङ्गती ॥ ८॥रणे दवग्गिणा दहा, रोहते | वणपादया। कोहग्गिणा तु दङ्गागं, दुक्खाण' ण णिवत्तई ॥॥ सक्का वण्ही णिवार, वारिणा जलितो वहिं। सम्योदहिजलेणावि, मोहन्गी दुणिचारओ ।। १० । जस्ल एते परिष्णाता, जातीमरणव धणा। संछिपणजातिमरणा, सिद्धिं गच्छति णोरया ॥ ११ ॥ एवं से बुद्धे विरते य० ॥३॥ तईयं दविलभिषण ॥३॥ दीप ॥२॥ अंगरिसि अनुक्रम [२१-३३] तेषु ~150 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ....... अध्ययन-[४], .........मूलं ] | गाथा [१-२७] ... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:)"ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [४] 'अंगरिसि' अध्ययनं प्रत सूत्राक गाथा ||१-२७|| आयाणरक्खी पुरिसे, पर किंचि ण जाणती। असाहुकम्मकारी खलु अयं पुरिसे ॥१॥ पुणरवि पावेहिं कम्मेहि चोदिज्जती णिच्चन समपी(संसारमी)ति अंगरिमिणा भारहारण' अरहता इसिणा युइतं ॥२॥ णो संवसित्तुं सका, सीहं [णासंवसता सक्क सोलं] जाणितु माणवा।। परम खलु पडिच्छन्ना, मायाए दुहमाणसा ॥३॥णियनोसे णिगृहंते, चिरंपी णोबदसए। किह में कोपि णज्जाणे, जाणेण स्थ हियं सर्व ॥५॥ जेण जाणामि अप्पाणं, आवो वा जति वा रहे। अज्जयारि अणज्जं वा, तं गाणं अयलं धुव॥५॥ सुपाणि भित्तिए चित्तं, कतु या पुणिवेसित'। मगुस्सहिदयं पुणिणं, गहणं दुब्बियाणकं ॥ ६॥ अन्नहा समणे होइ, अण्णं कुणंति कम्मुणा। अण्णमण्णाणि | भासते, मणुस्लगहणे हु से ॥ ७॥ तणखाणुकंडकलताधणाणि वल्लीघणाणि। सणियडिसंकुलाइ मणुस्सहिदयाई' गहणाणि ॥ ८॥ द जिलभचावर भोग, संकप्पे कडमा गसे। आदाणरक्खी पुरिसे, परं किंचि ण जाणति ॥ ६॥ अदुवा परिसामग्झ, अदुवा विरहे कट। ततो गिरि(खि)णप्पाण', पावकम्मा णिरु भति ॥ १०॥ दुप्पचिणं सपेहाए, अणायारं च अप्पणो । अणुयडितो सदा धम्मे, सो पच्छा परितप्पती ॥ ११ ॥ सुप्पदण्णं सपेहाए, आषार बावि अपणो। सुपहितो सदा धम्मे, सो पच्छा उण तप्पति ॥ १२ ॥ पुव्यरत्तावरतमि दीप ॥३!! ४॥ अनुक्रम [३४-६०] पुष्फसाल अयण' । ऋषिभाषि संकप्पेण बटुकडं। सुकडं टुक्कडं वाचि, कत्तारमणुगच्छइ ।। १३ ।। सुकडं दुक्कडं बावि, अप्पणो यावि जाणति । ण य पं अपणो वि- | जाणाति, सुक्कडं व दुक्कडं ॥१४ णरं कल्लाणकागिपि, पावकारिन्ति याहिरा। पावकारिपि ते बू या, सील तोत्ति बाहिरा ॥ १५ ॥ चोरपि ता पसंसंति, मुणीवि गरिहिज्जती। ण से एत्तावताऽचोरे, ण से इत्तावताऽमुणी ॥ १६ ॥णण्यास्स बयणा चोरे, पण स्ल क्यणा । मुणो। अपं अप्पा वियाणाति, जे वा उटीमणाणिणो ॥१७॥ जइसे परो पसंसाति, असाधु साधु माणिया। न मे सा नायए भासा, - अप्पाण' असमाहितं ॥ १८॥ जति मे परो. विगरहाति, साधुसंति णिरंगणं । ण मे सक्कोसए भासा, अप्पाणं सुसमाहिन' ॥१६॥ ~16~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [-] गाथा ॥१-२७|| दीप अनुक्रम [३४-६०] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन - [४], ..........मूलं [-] / गाथा [१-२७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि”-मूलं [४] 'अंगरिसि' अध्ययनं [वर्तते] उलूका पसंति, जंवा पिंति वायसा । जिंदा वा सा पसंसा वा वायुजालेय गच्छती ॥ २० ॥ जंच वाला पसंति, बा दिति कोविदा जिंदा वा ला पसंसा वा पप्याति कुरुए जने ॥ २१ ॥ जो जत्थ विज्जती भायो, जो या जत्थ ण विज्जती। सो सभावेण सच्चोबि लोकमि तु पवत्तती ॥ २२ ॥ विसं वा अमतं वावि, सभावेण उचट्टितं । चंदसूरा मणी ओता, तो अभी दिखती ॥ २३ ॥ वदंतु जणे जं से इच्छियं किं णु का (क) लेमि उदिष्णमप्पणी भावित नम णत्थि एलिसे, इति संखाए ण संजलामहं ॥ २४ ॥ अक्खोवंजणमाताया, सीलव' सुसमाहिते । अप्पणा चैवमप्याणं, चोदितो वहते रहे । २५ ॥ सीलक्खरहमारो, णाणद सणसारथी । अप्पणा चैव अप्पाण, जदिता सुभमेहती ॥ २६ ॥ एव' से युद्धे मुझे० ॥ ४ ॥ उत्थ अंगरिसिणामयण ॥ ४ ॥ ~17~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[५], .........मूलं [१] / गाथा [१-५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं | [५] 'पुप्फ़साल' अध्ययनं प्रत सूत्रांक माणा पच्चोत्तरित्ताण, विणए अप्पाणुवदंसए, पुष्कसालपुत्तेण अरहता इसिणा बुझ्यं, पुढवि आगम्म लिरसा, थले किच्चाण अंजलिं। पाणभोजणमे चिच्चा, सव्व च सयणासण॥१॥णमंसमाणस्स सदा, सं(ख)ती आगम वहती! कोधमाणप्पहीणम्स, आता। जाणइ पजवे ॥२॥ ण पाणे अतिपातेज्जा, अलियादिपण' च वज्जए । ण मेहुणच सेबज्जा, भवं ज्जा अपरिगहे ॥३॥ कोधमाण [१] गाथा ॥१-५|| परिण्णास्स, आता जाणति पज्जवे। कुणिमं च ण सेवेज्जा, समाधिमभिद'सग ॥ ४ ॥ ॥ एच' से बुद्ध विरए यावो० ॥ ५॥ पंचम पुष्फसालणामझयण ॥५॥ बागलचीरिमझियणं दीप अनुक्रम [६१-६६] ~18~ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन-[६], .........मूलं HI गाथा [१-१३] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं | [६] 'वल्कलचीरि' अध्ययनं प्रत ऋाषभाष सूत्रांक तमेव उबरते मतंगसङ्ग कायभेदाति । आयति नमुदाहरे देवदाणवाणुमतं ॥२॥ तेनेम खलु भो लोकं सणाम बसीकनमेय मण्णामि | तमहं वैमित्ति रयं वागलचीरिणा अरहता इसिणा बुइतं ॥२॥ण नारीगणप[सेते][संवतु सत्ते, अपणो य अवधये। पुरिसा जनोदि बच्चह, तत्तोऽवि जुधिरे जिणे ॥३॥ णिरकुसे व मातंगे, छिण्णरस्सी रवे[हए] विवा। णाणापग्गहपभह, विविध पयते णवाा णावा अकण्णधागाय, सागरे वायुणेरिता । चंचला धावते णाबा, सभाबाओ अकोविता ॥५॥ सुक्क पुष्कं व आगासे, णिराबारे [स] तु जे गरे । बढसुग्दणिवद्ध तु, बलव' विहिं ॥६॥ सुत्तमेत्तमतिं चेव तुंग[गंनु] कामे वि से जहा। एवं लद्धावि सम्मागं , सभावाओ अफोषिते ॥ ७॥ अं पर णवपहि, अंबरे वा विहंगमे । बढसुत्तणिवत्ति,मि लोको (वाहण तुसिणे गे ) ॥८॥ णणापागहसंय, घितिम पणिहितिदिए । सुत्तोत्तगतिं चेब, तथा साधू पिरंगणे || सच्छंदगतिपयारा, जीया संसारसागरे । कम्मसंताणसंपदा, हिंउंति विविहं भय' ॥ १० ॥ इत्थीणुगिद्धे बसप,अप्पणो य अबधवे । जसो विवज तो पुरिसे, तत्तो विझविणे जणे ॥ ११ ॥ मपणती मुक्कमप्याण, पडिपो पलायते । वियते भगवं ययकलचीरिउगवतेत्ति ॥ १२ ॥ एव सिद्धे युद्धे ॥६॥ छ8 चक्कलचीरिणामकवणं ॥६॥ pradaagraashugamesgras गाथा ||१-१३|| दीप अनुक्रम [६७-७९] ~19~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[७], .........मूलं H I गाथा [१-७] ....... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं साहित्य [७] 'कुम्मापुत्त' अध्ययनं प्रत ॥५ ॥ सूत्रांक H गाथा ||१-७|| सव्य' तुक्खाय तुक्स', दुक्ख' सुऊसुअत्तणं । दुक्खीच दुक्करचरिय, चरित्ता सम्बदुवख खयेति तवसा ॥१॥ तम्हा अदीणमणसो | दुक्थी सम्बतुपण' तितिक्खेजा, सेति कुम्मापुत्तेण भरहता इसिणा वुइयं ॥ २ ॥ ज णवादो ण तापजा, अस्थित्त' तबसंज में। समाधि य IMI विराहेति, जे रचारियं चरे ॥३॥ आलस्रोणावि जे केड, उस्मुअत्तं ण गच्छति । तेणावि से सुही होइ, किंतु सद्धी परथकमे ॥४॥ मा (स्ट)स्स तु परिषणाए, जाति(ती)मरणय'ध । उत्तिमबरगाही, बीरियातो परिचए ॥५॥ कामं अकामकामी, अत्तत्ताए परिव्यए । सावजणिरवजेण', परिपणाए परिधए शासित्ति ॥ 4 ॥ एव से सिद्ध बुद्धे ॥ ७॥ सत्ता कुम्मापुत्तणामझप ॥ ७॥ पुत्त केतलि कामत. दीप अनुक्रम [८०-८६] ~20~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ....... अध्ययन-[८], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [८] 'केतलिपुत्त' अध्ययनं प्रत सूत्रांक साषभााप-1 उभयण आर दगुणेण पार एकगुणेणं ते के तलिपुत्तेण इसिणा बुइतं । इय उत्तमगंधवेषण रहममिया लुप्पति गच्छंती सय वा छिंद | पावए ॥ (सयं योठिंड्य कम्मसंचय, कोसारको ब ज हार बंधणं ॥ तन्हा एक वियाणिय गंथजालं दुक्ख'दुहावह छिंदिप ठाइ संजमो । सेहु | मुणी बुक्खा चिमुच्चा धुव' सिथ गई उचेइ प्रत्यंतर) ॥ एव सिद्ध बुद्धे ॥८॥ ते(के)तलिणामज्भ यर्ण अहम ॥ ८॥ गाथा ||१|| दीप अनुक्रम [८७-८८] ~21 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ॥१-३४|| टीप अनुक्रम [८९ [२३] [भाग 2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[९], .........मूलं [१] / गाथा [१-३४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि" -मूलं 110 11 ऋषिभाषि तेषु --------- [९] 'महाकासव' अध्ययनं जाता जाताय कम्म कम्मणा खलु भो पया सिया, समियं उबनिविज्ञ र अववदिजाश् य, महद महाकासवेण अरहया प्रसिणा इयं का खलु भो अपहीणेणं पुणरवि आगच्छा हत्यच्छ्रेयाणि पायछेयणाणि एवं कण्ण० नक्क० उ० जिम्भ०सीसदंडणाणि मुंडणाणि उदिष्णेण जीवो कोट्टणाणि विट्टणाणि तज्ञणाणि तालणाणि बहणाई बंधणाई परिकिलेसणाई अंधुबंधणाई नियलबंधणाणि जावजीवबंधणाणि नियलजुयकोड मोडणाई हिययुप्पाडणाई इसगुप्याणाई उल्लंघणाई ओलंबणाई सणाइ' घोलणाई पीलणार' सीहपुच्छणाई कडग्गिदाहणाई भन्तपानिरोहणाई दोगलाई भत्ताई दोमणलाई भाउमरणाई भइणिमरणाई पुत्तमरगाई धूयमरणाई भज्जमरणाई अण्णाणिय सयण मित्तधुवगमरणा दोस्ताई दोमणस्साई अप्पियसवासाई पियविप्पओनाई हीलाइ विसणाई गरहणाई पव्वहणाई परिभवणाई आगट्टणाई अण्णराव दुक्खदोमणस्साई पञ्चणुभयप्राणा अणाइयं अणवदग्गं दीहमद चाउरतसंसारसागर अणुपरियह ति कम्मुणा पहीणेण खलु भो जीवा नो आगच्छंती हत्यच्छेपणाणि ताइ चेव भाणियव्वाई जावसंसार कतार बीईयत्ता सिवमलमध्यमः स्वयमव्याबाहमपुणरायत्त सासभुवया चिम्लिननिव्वाणं, संसारे सव्यदेहिणं । कम्ममूलाई दुखाई कम्ममूलं च जम्मणं ॥ १ ॥ संसारसंतमूलं, पुण्णं पाच पुरेकडं पुण्यायमिरोहाय सम्म संपरिव्यय ||२|| पुण्णपावस्स आयाणे, परिभोगे याचि देहिणं । संत भोगपागं पुण्णं पावं सयं कडं ॥ ३ ॥ संवरो निज्जरा त्रेय, पुष्णं पाबविणासणं संवरं निज्जरं श्रेय सव्यहा सम्ममायरे ॥ ४ ॥ मिच्छत अनियती य, पमाओ यादि गहा कलाया नेय जोगा य, कम्मादाणस्स कारणं ॥ ५ ॥ जहा अंडे जहा थीए, तहा कम्म सरीरिणं । संताणे चैव भोगे य नाणावतच्छद ॥ ॥ निव्य विविध संकप्पे य अणेगहा। नाणावण्णविकस्स दारमेयं हि कम्मुणो ॥ ७ ॥ एस एव चिवण्णासो बुडो बुडो दुषो कमलो सांवरो नेत्रो देसचविकप्पिओ ॥ ८ ॥ सोपायाणा निरादाणा, विपाकेयरलज्या । उबकमेण तबला, निजरा जायए सिया ॥ ८ ॥ संततं वधए कम्म, निज्जरेश् य संततं संसारगोयरो जीवो, विसेसो उ तवो मय ।। १० ।। 1 ~ 22~ ६ महाका सवयण' Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ॥१-३४|| टीप अनुक्रम [८९ [२३] [भाग 2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन -[१] .......मूलं [१] / गाथा [१-३४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि" -मूलं [९] 'महाकासव' अध्ययनं (वर्तते) अंकुरा बंधबंधीया, जहा भयद वोरुहो। कम्मं तहा तु जीवाणं, सारा सारतरं हितं ॥ ११ ॥ उबक्कमो य उक्केरो सछोभो खवणं तथा । वनिताणं वेणा सुणिकापिते ॥ १२ ॥ उकडतं जधा तोयं, खारिज्जत' जथा जलं संविज्जा ण [णि] दाणे वा, पावं कम्म उदी रती || १३ || अन्य डितो सराराणं, बहु पायं न करें। पुव्यं यज्जिते पाव तेण दुक्ख तवो मयं ॥ १४ ॥ सि[ख]ज्जते पावकम्म जुत्तजोगिस्स धीमतो कम्भूता जायते रिदियो बहू ॥ १५ ॥ विज्जोसहिणियाणेसु वत्थु सिक्खागतीसु य तवसंयम पयुतेय, विम होति पचय ॥ २६ ॥ दुक्ख खवेति जुतप्पा, पावमी सेवि बंधणे जधा मीसेवि गामि बिसयुष्काण छणं ॥ १६ ॥ सम्मतच संममासज्ज दुल्लहं ण प्यमाज्ज मेधावी, मम्मगाह जहारियो ॥ १८ ॥ जेहवत्तिक्खए दीवो, जहा चयति संतति । आयाणधरोहमि तहा भवसंसई ॥ १० ॥ दोसादाणे णिरुद्धमि. सम्म सत्याणुसारिणा पुण्वाउते य विज्झाए, खयं वाही ||२०| मज्जं दोला विसं वण्डो, गहावेसो अणं अरी धणं धम्मं च जीवाण विष्णेयं धुयमेव तं ॥ २१ ॥ कम्मायाणेऽवरुद्ध मि सम्म माणुसारिणा । पुव्वाउत य णिज्जिपणे, स्वयं दुक्ख पियच्छती ॥ २२ ॥ पुरिसो रहमास्दो, जोगाए सत्तसंजुतो । fever frer णे, सम्मदिट्ठो तहा अण' ।। २३ । बहिनमाख्य संयोगा, जहां हेमं विसुमती सम्मत माणसंजुते सहा पायं विसु ज्झती ॥ २४ ॥ जहा आतवसंततं वत्थं सुज्झर वारिणा सम्मत्तमंजुतो अप्पा, तहा काणेण सुती ॥ २५ ॥ कंचणस्स जहा धाऊजोगेण मुच्चए मलं । आणाईएवि संताणे, तवाओ कम्पसंकरं ॥ २६ ॥ वत्थादिसु सुज्ने, संताणे गहने तहा। दितं देसधम्मित्तं सम्ममेयं विभावए । २७ ॥ आवज्जती समुग्धातो, जोगाण' च निरुमण अणिपट्टी एव सेलेसी, सिद्धी कम्मत ॥ २ ॥ णावा (व) वारिमज्कमि, खोणलेयो अणाउलो रोगी वा रोगणिमुक्को, सिद्धो भवति णीरओ ॥ २६ ॥ पुच्चजोगा असंगता, काउ वाया मणो इवा एगतो आगती चैव, कम्माभावा ण विज्जती ॥ ३० ॥ परं णावग्गहाभावा, सुही आवरणक्खया। 1 1 ॥ ८ ॥ ऋषिभाषि तेषु --------- ~23~ 11011 १० तेतलिपुसभायर्ण Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ॥१-३४|| दीप अनुक्रम [८९१२३] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[९], ......... मूलं [१] / गाथा [ १ - ३४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि”-मूलं [९] 'महाकासव' अध्ययनं ( वर्तते ) अस्थिलक्खणसभावा, निच्चो सो परमो ध्रुव ॥ ३१ ॥ दव्यतो खित्तओ बेच कालतो भवतो तहा। णिच्चापि तु विष्णेयं, सव्वभावविभावण धण्णा जिणाहिन मागं सम्मं वेदे ति माओ ।। ३३ ।। संसारे सव्वदेहि ॥ ३२ ॥ गंभीरं सव्वओम एव से सिद्धे बुद्धे० ॥ नवमं महा कासवज्भरण ॥ ६ ॥ ----X---X---X---X---X---X--- ~24~ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि संबंधी साहित्य ...... अध्ययन-[१०], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [१०] 'तेतलिपुत्त' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [१] తకు गाथा మును ॥ ६ ॥ ||१|| अषिभाषितेषु दीप कोऽह' (क) ठाइणपणत्थ सगाई कमाई() माई। सद्धेयं खलु भो समणा घदती, सायं सालु माहणा. अह-1 मेगोऽसधेयं बदिस्सामि तेतलिपुत्तेण अम्हता इसिगा वुझ्यं, सपरिज णोति णाम ममं अपरिजणोत्ति क. मे तं सद्दहिस्सती? | सपुत्तपि णाम मम अपुतं त्ति को मे तं सहहिस्सती?। एव' समिपि णाम मम०, सवित्त पिणाम मम०, सपरिगहं णाम म०, दाणमाणसवकारोययारसंगहिते० तेतलिपुत्तस्स सयणपरिजणे विराग गते को मे तं सहहिस्सती ?। जातिकुलरूबविणतोश्यारसालिणी पाहिला मूसिकार-2॥८॥ धूता मिक/ विप्पडियन्ना को मे तं सद्दहिस्सति ११, कालक्कमणीतिसत्थविसारदे तेतलिपुत्ते विसाद गतेति को मे त सद्दहिस्सति ?, तेत-1 | १०:११ तेतलिपुत्तेण आमच्छोण गिह पविसित्ता तालपुडके विसे बतितेत्ति सेविय से पडिहतेति को में त' साहहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण अमच्चेषां महति- लपुत्तमम महालयं रुक्खं दुहिता पासे छिण्णे (तहावि ण मए) को मे त सहहिस्सति ?, तेतलिपुत्तण महतिमहालयं पासाणं गीचाए पंधित्ता अत्थाहाए पुक्खरिणीए अप्पा पक्वित्ते तत्थऽविय थाहे लद्धे को से तं सद्दहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण अहतिमहालियं कहरासी पलीवेत्ता अप्पा। पक्वित्तं सेऽपि य से अगणिकाप विझाए को मे त सदहिस्सति ?, तए सा पुट्टिला मूसिायारधूता पंचवणाई सखि विणिताई वत्थाई पवर परिहिता अंतलिक्सपडिवण्णा एवं चयासी-आउसो! तेतलिपुत्ता! पहि तो आयाणाहि पुरओ विच्छिपणे गिरिसिहरकंदरप्पवाते पिट्ठभो कंपेमाणेज्य मेइणितलं साकतेय पायवे णिफोडेमाणेव्य अंबरतलं, सब्बतमोरासिव्य पिडिते, पचपखमिव सर्य करते भीमरथ करते महावारणे समुहिए या सचक्युणिवापसु पयंडधणुजंतविप्पमुका पुंक्खमेत्तावसेला धरणिप्पवेसिणो सरा णिपतंति, हुयवहजालासहस्ससंकुलं समततो पलित्त धगधगंति सञ्चारणयां, अचिरेण य बालसूरगुंजाइपुंजणिकरपकासं कियाइ गालभूत' गिह, आउसो! तेतलिपुत्ता ! क क्यामो ?, तते णं से तेतलिपुते अममी पोहिल मूसियारधूत एवं वयासि पोहिले ! एहि ता आयाणाहि, भीयस्स खलु भो पव्यज्जा, अभिउत्तस्स सबहणकिको मातिस्स रहस्सकिच्च उक्कंठियस्स देसगमणकिच्चं पिवासियस्स पाणकियां छुहियस्स भोयणकिरा पर अमिउंजिर्ड कामस्स सत्थकिन्न खतस्स दंतस्स गत्तस्स जिति दियस्स एसो ते एकमवि ण भवइ ॥ एवं से सिद्ध बद्ध० ॥ १०॥ तेतलिपत्तणामझयण' 325 अनुक्रम [१२४१२५]] ~25~ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन-[११], .........मूलं [१] / गाथा [१-५] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [११] 'मंखलिपुत्त' अध्ययनं प्रत सूत्रांक सहिअ णेव आणच्च मुणी संसाए अणच्चाए से तातिते, मंखलिपुत्तेण अरहता इसिणा वुझ्यं से पजति वेदति खुमति घट्टति फदति चलति । ME उदीरेति त' तं भावं परिणमति ण तांता से ,से णो एजति णो वेणो ख यो घणो फ० णो च० णो उ०णो त त' भाथं परिणमति से | | गाथा ||१-५|| नातो, तालिग वाजलु गान्धि रजगाउ, नाती वल अप्पाणां च परं च चाउरनाभो संसारकताराभो तातोति ता-अलंमूढो उ जो ोता, मग्गदो अविभाषि सपरकम।। गणिजई गति', गाउँ जग पावेनि गामिण ॥ १॥ सिदकम्मो त जो वेज्जो, सत्थकम्मे य कोविओ। मोयणिज्जातो सो वीरो रोगा मोतेति रोगियां ॥ २॥ जोर जो बिहाणं तु, दवाय गुण लाघवे । सो (उ) संजोगणिकपणं, सव्वं कुणइ कारियं ॥ २॥ विज्जोपयारविष्णाना, जो श्रीमं सल संजुनो। सो वि साहइत्ताणं. का कुणइ लक्षणं ॥ ३ ॥ शिवत्तिं मोक्खमम्गस्त, सम्म जो तु 1विज्ञाण नि । रागहोसे गिराकिच्चा, मे उ सिद्धि गनिस्लति ॥ ४॥ एवं से सिद्ध बुद्ध ॥ ११ ॥ मखलिपुत्त णाममपर्ण ॥ ११॥ . १२ जपणावकीय १३भवालिअाम यण दीप अनुक्रम [१२६१३१] ~26~ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ॥१-४॥ दीप अनुक्रम [१३२१३६] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[१२], .......मूलं [१] / गाथा [१-४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [१२] 'जण्णवक्कीय' अध्ययनं --------- अणच्चा जान नाच लोपला ता ताव विणा जाब ताय वित्तेसणा ताब तार लोपसणा, से लोएस च वित्ते परिणार तोपगं गच्छे वो महापणं गच्छेज्जा, जण्ण चक्केण अरहता इसिणा युत । तजहा जहा कवीता य कविलाय. गाती दह पातलं एवं मुणी गोयग्यिव्यवि णो आलये णोऽविय संजलेज्जा ॥ १ ॥ पंचवणीमकसुद्ध जो भिक्ख सुल लाभा, हणणार विमुक्कदो ॥ २ ॥ पंथाणं रुवसंबद्ध फलावत्तिय चिन्तए । कोहाती fare सोय परम् ॥ ३ ॥ एवं मे सिद्धं बुद्ध बिरए ॥ २६ ॥ जपणचक्कीपनाप्रयण ।। १२ ।। ~27~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन-[१३], .........मूलं [१] / गाथा [१-६] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं | [१३] 'भयालि' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [१] गाथा सिद्धि । किमह(राव) परिध लामा, नार मेते जेण ताग मैतेज्जेण भयालिणा अरहता इसिणा बुइत-णो र खलु हो अपणो विमोयणहुना पाअभिभविमा नि. माना जाने पर अभिभूयमाणे सम मोब अहिताए भविस्सति । आताणाए उ सम्बेसि, गिहिबूरण तारए । वर्गपसारवालसंता करने संतुमिच्छसि ॥१॥ संतम्स करणं णन्थि, णासतो करणं भवे। बहुभा दि इस सुद्द , णासतो भवर मागे॥२॥ मनोज कान, हारपोरेणुगड़ियं। णिमित्तमेत्तं परो एथ.म मे तु पुरेकर्ड ॥३॥ मूलम्सेके फलुप्पत्ती, मूल ॥२१॥ बाते इनं कले। कलत्यो सिंचती नलं, फलधातो ग सिंचती ॥ ४ ॥ लुप्पती जस्स में अस्थि, प्णासंतं किंचि लुप्पती। संतातो । पता सताता २४बाहुकलग्यतो किंचि, गासन किंनि लप्पतो ॥५॥ अस्थि ने तेण देति , नस्थि मे तेण देह मे । जइ से होज में देज्जा, णत्थि से तेण देति जमायण पिभाषि मे ॥ यं से सिद्ध ।। १३ ।। भयालिनामायण ॥ १३ ॥ ||१६|| Istory दीप अनुक्रम [१३७१४३] ~28~ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[१४], .........मुलं [१] / गाथा [१] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः)"ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [१४] 'बाहुक' अध्ययनं प्रत सूत्रांक गाथा ||१|| जुत्त' अजुत्तजोग । पमाण मिनि बाहुकेधा अरहता इलिगा वुइत - अप्पणिया खलु भो अवाणं समुसिया, ण भवंति वदन्निधे पारवतो अध्पणिया स्वान्नु भो र अप्पाणं समुसिय समकसिष भवति बद्धचिंधे सेट्ठी, रवं सेव आणुयोये जाणह | खलु भो समया माहगा गामे अदुवा रपणे अदुवा गामे पोऽवि रपणे अभिजिम्सए इमं लोयं परलोयं पंणिम्सए, टुहोऽपि लोके अपतिद्वन, अकानए पाहुए गतेति, अकामए चरए तक अकामए कालगए णरक पत्त, अकामए पव्वइए अकामते चरते नवं अक्रामप.कालाप सिद्धिपद अकामर, सकामए, पञ्बइए सकामय चरते तयं सकामए कालगते णरगे (ग)ते. सकामए चरते सन सकामर कालगते सिदिने सकामए ॥ ॥ एवं से सिदे बुद्ध ॥ बाहुकणामभयम्॥ १४ ॥ दीप अनुक्रम [१४४१४५]] ~29~ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ||१-२९|| दीप अनुक्रम [१४६ १७५] [भाग 2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[१५], ......मूलं [१] / गाथा [१-२९]__ -------.. पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि”-मूलं [१५] 'मधुरायणिज्ज' अध्ययनं "सिद्धि | सायादुवस्त्रेण अभिभूते दुक्खी दुबख उदीरेति, असातादुक्खेण अभिभूय दुक्खी दुक्ख उदीरेति सातादुक्त्रेण अभिभूप जा जो असातावेण अभिभूते दुक्खी दुक्ख' उदीरेति । सातादुक्खेण अभिभूतस्त दुक्खणो दुक्ख उदीरेति, असा अभिस्स क्षिणो दुध उदीरेति, लातादुत्रेण अभिभूतस्स दुक्खणो दुक्ख उदीरेति । पुच्छा य वागरणं च संतदुक्खी दुक्ख उदीरेति ? असंतदुखी दुवा' उदीरेति ? संत दुखी दुक्ख उदीरेंद्र सातादुक्खेण अभिभूतस्स उदीरेति णो असंत दुक्खी दुक्ख' उदीरे, मधुरायण: अरहता इसिणा बुइत दुक्खेण खलु भो अप्पहीणेषणं जीए आगच्छति हत्यच्छेयणाई पादच्छेयणाई एवं णवमज्मतणगमरणं यव्वं जाव सासत' निव्वाणमन्भुवगता चिति, णवरं दुक्खाभिलायो- पावमूदमणिव्वाण संसारे सव्वदेहिणं पाचमूलाणि दुक्खाणि पांथमूलं च जम्मणं ॥ १ ॥ संसारे दुक्खमूलं तु पावं कर्म पुरेकडं पावकम्मणिरोधाय सम्मं भिक्खु परिव्व ॥ २ ॥ सभावे सति दस्स, धुवं वल्लीय रोहणं वीए संबुज्झमाणंमि, अंकुरस्सेव संपदा ॥ ३ ॥ सभावे सति पावस्स, घुवं दुक्ख पसूयते। बासतो मट्टियापि डे, णिवन्ती तु घडादिणं ॥ ४ ॥ सभावे सति कंदस्स, जहा वल्लीय रोहण' बीयातो अंकुरो बेव दुक्थलीय अंकुरा ॥ ५ ॥ पापघाते हत' दुक्खं पुण्फघाए जहा फलं । विद्वाए मुद्रसूईए, कतो तालस्स सभवो ॥ ६ ॥ मूलसेके फलुप्पत्ती, मूलघाते हतं फलं फलत्थी सिंचए मूलं, फळघाती न सिंचति ॥ ७ ॥ दुखितो दुक्ाघाताय दुखावेत्ता सरीरिणो । पडियारेण दुक्खस्स, दुक्क्षमण्ण' निबंध ॥ ८ ॥ दुक्खमूलं पुरा किच्चा, दुक्खमासज्ज सोयती । गहितंमि अणे पुब्विं अदइन्ता पण मुच्च ॥ ६ ॥ आहारत्थी जहा वालो, वण्ही सप्पं च गेण्हती तहा मूढो सुहत्थी तु, पाचमण्णं पकुव्वती ॥ १० ॥ पार्थ परस्स कुव्यंतो, हसती मोहमोहितो मच्छो गलं गतो वा विणिघातं ण परसती ॥ ११ ॥ पच्चुप्यण्णरसे गिद्धो, मोहमलपणेोलितो दित्तं पावति उक्थं वारिमज्छे व वारणा ॥ १२ ॥ परोवघाततलिलच्छो, दुप्पमोहमलुयुगे । सीहो जरो दुपाणे बा गुणदोसग विदेति ।। १२ ।। ऋषिभाषितेषु ~ 30~ . ------ 11 22 1 १५ मधुरायप्रकयण Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [१] गाथा [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ... अध्ययन-[१५], .........मूलं [१] / गाथा [१-२९] ... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [१५] 'मधुरायणिज्ज' अध्ययनं (वर्तते) M॥१३॥ वसं सो पाबं पुरो किच्चा, दुक्ख वेदेति तुम्मती । आसत्तकंठपाबो बा, मुकधारो तुहडिओ ॥ १४ ॥ पार्थ जे उ पकुवंति, जीवा साताणुगामिणो। बढ़ती पावकं तेसि, अणग्गाहिस्स वा अण॥ १५ ॥ अणुवतमपरसता, पच्चुप्पण्णागबेसका। ते पच्छा दुक्खमच्छंति, गलुच्छिन्ना कसा जहा ॥१६॥ आता कडाण कम्माण, आता मुंजति जं फलं । तम्हा आतल्स अट्टाए, पावमादाय वजए । ॥१७॥ सति जम्मे पसूर्यति, बाहिसोगजरादयो। नासते डहते वही, तरुच्छेत्ता ण छिंदति ॥१८॥ तुलं जरा य मच्च्यू य, सोगो ||॥ १२ ॥ माणावमाणणा ।::जम्मघाते हतो होती, पुष्कघाते जहा फलं ।। १६॥ पत्थरणाहतो कीवो, लिप्पं डसइ पत्थर । मिगारिऊ सर पप्प, सरुमधुरायणि :प्पत्ति विमगति ॥ २०॥ तहा वालो दुही वत्थु, बाहिर णिदती मिस। दुकखुप्पत्तिविणासं तु, मिगारिव्य ण पप्पति (धत्तिति) ॥ २१॥ जज्भक ऋषिभाषि वर्ण वण्ही कसाए य, आण्ण जं बावि दुद्वितं । आमगं च उब्वहंता, दुक्खं पावंति पीवर ॥२२॥वण्ही अणस्स,कम्मस्स, आमकस्ल वणस्स या १५ णिस्सेसं घायिण सेयो, छिपणोऽवि रहती तुमो ॥ २३ ॥ भासच्छण्णो जहा वण्ही, गूढकोहो जहा रिपू। पावकम्म' तहा लीणं, दुक्खसंताण-सारियायण ज्म० संकडं ॥ २४ ॥ पत्तिधणस्स वहिस्स, उद्दामस्स विसस्त य । मिच्छत्ते यावि कम्मस्स, दित्ता बुड़ी दुहावहा ॥ २५॥ धूमहीणो य जो वण्ही, छिण्णादाणं च जं अणं । प्रताहतं विसं जंति, धुवं तं खयमिच्छती ॥ २६ ॥ छिण्णादाणं धुवं कम्म, झिज्जते तं तहाहतं ।। आदित्तरस्सितत्तं व, छिपणादाणं जहा जलं ॥ २७ ॥ तव्हा उ सम्बदुक्खाणं, कुज्जा मूलविणासगं । बालगाहिव्व सप्पस्स, विसदोस | विणासणं ॥ २८ ॥ ॥ गवं से सिद्ध बुद्ध० ॥ १५॥ मधुरायणिज्जणामयण ॥ १५ ॥ అవగాహన కూతురు ||१-२९|| ॥१३॥ तेषु दीप अनुक्रम [१४६१७५] मद ~31~ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन-[१६], .........मूलं [१] / गाथा [१-४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं | [१६] 'सोरियायण' अध्ययनं प्रत सूत्रांक म [१] गाथा ॥१-४|| सिद्धिः । जस्स खलु भो विसयायारा ण य परिस्सवन्ति इंदिया वा दवेहि से बलु उत्तमे पुरिसेत्ति लोरियायणेण अरहता इलिणा खुइतं तं कहमिति १, मणुपणेषु सह सु सोयविसयपत्तेसु णो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा णो मिज्झिज्जा णो विणिघायमावज्जेज्जा, मण्गुष्णेसु सदसु सोत्तविसयपत्तेसु सज्जमाणे रज्जप्राणे गिज्झमाणे सुमणो आसेवमाणे विप्पण्हतो पावकम्मस्स आदाणाए भवति, तम्हा मणुण्णामणुण्णेसु सहसु सोयविसयपत्तेसु णो सज्जेज्जा णो रज्जेजा णो गि० णो सुमणे अण्णेऽवि, एवं रुवेसु गंधेसु रसनु फासेसु, एवं विवरीपसु णो दूसेज्जा ।। दुइता इंदिया पंच, संसाराए सरीरिणं । ते च्चेव णियमिया संता, णेज्जाणाए भवंति हि ॥१॥ दुईते इंदिए पंच, रागदोसपरंगमे । कुम्मो विव सभंगाइ, सए देहम्मि साहरे ॥२॥ वण्ही सरीरमाहार, जहाजोएण जुजती। इंदियाणि य जोए य, तहा ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ I जोगे वियाणसु ॥३॥॥ एवं से सिद्ध बुद्ध ॥ १६॥ सोरियायणणामायणं ॥१६॥ Mal बिअभय. दीप अनुक्रम [१७६१८०] ~32~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[१७], .........मूलं ] | गाथा [१-८] ..... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं | [१७] "विदु' अध्ययनं प्रत सूत्रांक णं १७ वरिसवाझ पर्ण १८ गाथा ||१-८|| अषिमाधि सिद्धि। इमा विज्जा महाविज्जा, सव्वविज्जाण उत्तमा । जं विज्जं साहइत्ताणं, बन्यदुक्खाण मुच्चती ॥१॥ जेण Mबंध च मोक्खं च, जीवाणं गतिरागतिं । आयाभावं च जाणाति, सा विज्जा दुक्खमोयणी ॥२॥ विदुणा अरहता इसिणा बुइतं सम्म रोगपरिण्णाणं, ततो तस्स (वि) निच्छितं । रोगोसहपरिणाण', जोगो रोगतिगिच्छितं ॥१॥ सम्म कम्मपरिणाण, ततो तस्स विमोक्खण। काममोक्षपरिणाण', करण च विमोक्खण ॥२॥ मम्मं ससल्लजीवं च, पुरिस वा मोहघातिण। सल्लुध्धरणजोगं च, जो जाणइ स सल्लहा ॥३॥ बंधण' मोयण चेव, तहा फलपरंपरं । जीवाण जो विजाणाति, कम्माण तु स कामहा ॥ ४ ॥ सावज्जजोगं Hणिहिलं विदित्ता, तं चेव सम्मं परिजाणिऊण । तीतस्स जिंदाए समुत्थितप्पा, सावज्जवृत्तिं तु ण सद्दहेज्जा ॥५॥ समायज्माणोवगतो जितप्पा, संसारवासं बहुधा विदित्ता । सावज्जवुत्तीकरणेऽकितप्पा,णिरवज्जवित्ती उ समाहरेज्जा ॥६॥ परकीयसव्यसावज्ज जोग' इह अज्भ तुच्चरियं णायरे अपरिसेस, णिरवज्जे ठितस्स णो कप्पति पुणरवि सावज सेवित्तए । एवं से सिद्ध ॥१७॥ विदुणामज्झयणं ॥१७॥ दीप अनुक्रम [१८१ जाड १८८] ~33~ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[१८], .........मूलं [१] | गाथा [१-२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [१८] 'वरिसव' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [१] गाथा a . सिदि। अयते खलु भो जीवे वज्जं समादियति, से कहमेतं?, पाणातिषाएणं जाव परिगहणां अरति जाब मिच्छादसणसल्लण वा M वजं समाइत्ता हत्थच्छेयणाई पायच्छेपणाई जाव अणुपरियति णवमुद्दे सगमेणं, जे खलु भो जीवे णो वज्जं समादियति से कहमे तं. परिसवकण्हेण अरहता इसिणा बुइतं-पाणाइवातवेरमणेां जाव मिच्छादसणसलवेरमणेणं, सोइ दियताणिग्गहेणं णो धज्ज समजिणित्ता हत्थच्छेयणाई पायच्छेयणाई जाव दोमणस्साई, बीतिवतित्ता सिवमचल जाव चिट्ठति। सकुणी संकु (चंचु) प्पघातं च ॥ १४ ॥ ॥ १५ ॥ रत रज्जग तहा । वारिपत्तधरो कचेव, विभागंमि विहाबए ॥१॥ एवं से :सिद्ध० ॥१८॥ वरिसवणामझायण ॥१८॥ वरिसचज्झ ||१-२|| दीप अनुक्रम [१८९१९१] ~34~ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ॥१-६॥ दीप अनुक्रम [१९२१९८] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[१९], .......मूलं [१] / गाथा [१-६] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि”-मूलं [१९] 'आयरियायण' अध्ययनं ऋषिभाषितेषु सिद्धि । सन्चमिणं पुराऽऽरियमासि आयरियायणेणं अरहता इसिणा बुझतं वज्जेनऽणारियं भावं कम्मं वेव अणारियं। आणारियाणि य मित्ताणि आरियत्तमुहिए ॥ १ ॥ जे जणाऽणारिए पिच्वं कम्मं कुव्र्वतऽणारिया । आणारिएहि य मित्तेहि सीदति भवसागरे ॥ २ ॥ संधिज्जा आरियं मगं कम्मं जं बाबि आरियं। आरियाणि य मित्ताणि आरियन्तमुवट्टिए ॥ ३ ॥ जे जणा mr free, mai कुवंति आरियं। आरिएहि य मित्तेहि मुच्वंति भवसागरा ॥ ४ ॥ आरियं णाणं साहू, आरियं साहु दंसण । आरियं चरणं साहू, तम्हा सेवय आरियं ॥ ५ ॥ ॥ एवं से सिद्धे बुद्ध विरए विपावे अलंतातिणो ॥ १६ ॥ आयरियायणायणं १६ ॥ ॐ ~35~ पण १८ आरियज्क यण १६ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि .... अध्ययन-[२०], ........मूलं [२] / गाथा [१-६] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) 'ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं | [२०] 'उक्कल' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [२] गाथा ||१-६|| सिद्धि । पंच उकला पन्नत्ता , तंजहा-दंडुक्कले १ रज्जुक्कले २ तेणुक्कले ३ देसुक्कले ४ सयुक्कले ५ । से कि त दंडुक्कले, दंडुकले नाम जेण दंडदिहुँतेणं आदिलमज्भावसाणाणं (आदिल्लमज्जवसाण) पण्णवणा, एसमुदयमेत्ताभिधाणाई, णत्थि सरीरातो परं जीवोत्ति भगवति वोच्छेपं वदति सेतं दंडुक्कले १ । से कि त रज्जुक्कले १, रज्जुकले णाम जे. रज्जुदिट्टतेणं समुदयमेत्तपपणवणा, ए० , पंचमहाभूतखंधमेत्ताभिधाणाई संसारसंसतीवोच्छेद वदति, सेत रज्जुझले २ । से कि त तेणुक्कले ?, तेणुक्कले णाम जेण' अण्णसत्यदिढतगाहेहिं सपक्वुभावणाणिरए मम ते तमिति परकरणच्छेद वदति से तं तेणुक्कले ३ । से किं तं देसुक्कले?, देसुक्कले णाम जेणं अत्थितं स इति सिद जोबस्स अत्तादिरहि गाहिं देसुच्छेदं बदति, से तं देसुक्कले ४ । से कि त सव्वुक्कले १ : सब्बुक्कले णामं जेण सव्वतो सव्यसंभवाभावा णो तच्च सव्वतो सव्वहा सबकाल व णत्यित्ति सव्वच्छेदं वदति, से तं सम्युकले ॥ ५ ॥ उपायतला IMI अंडे केसगमत्थका एस आताए पजये कसिणे तपपरिपंते जीवे, एस जीवे जीवति , एतं तं जीवितं भवति , से जहा णामते दड़े सु वीएसु ण ॥ १६॥ पुष्णो अकुरुपती भवति पयामेव वॉ सरीरे ण पुणो सरीरुप्पत्ती भवति, तम्हा इणमेव जीवितं, पत्थि परलोए, रिथ सुण्डफडाण कम्मा ऋषिभाषि मां फलवित्तिविसेसे, णो पच्चायंति जीवा. णो फुसंति पुग्णयावा, अफले कल्लाणपावए, तम्हा एतं सम्मति बेमि उड़ पाततला अहे केसग्ग। मत्थका एस आया एय तयपरितंते एस जीवे, एसामडे णाए तं तं, से जहाणामते दउँसु वीपसु० एवामेव दई सरीरे०, तम्हा पुण्णा पावऽगहणा मुहदुक्खसंभवाभावा सरीरदाहे पावकम्माभाचा सरीरि डहेत्ता को पुणो सरीरुप्पत्ती भवति । एवं से सिद्ध ॥२०॥ उक्कलक्ष्य ण ॥ २०॥ दीप अनुक्रम [१९९ ॥ १५ ॥ क्वलकयण' २० गाहापाइझयण २१. २०६] ~36. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[२१], .........मूलं [१] / गाथा [१-११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [२१] 'गाहावइज्ज' अध्ययन प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-११|| दीप सिद्धि । णाई पुरा किंचि जाणामि, सव्वलोकसि गाहावतिपुत्तेण तरुणेण अरहता इसिणा वुइत-अण्णाणम् । खलु भो । पुव्यं न जाणामि न पासामि नोऽभिसमाबेमि नोऽभिसंबुज्झामि, नाणमूलाकं खलु भो इयाणि जाणामि पासामि मामेमि अहिसंबुज्झामि, अण्णाणमूलयं खलु मम कामेहिं किच्छ करणिज्ज, णाणमूलयं खलु मम कामेहिं अकिच्छ अकरणि, गणमूलयं जीवा | चाउरत संसारजाय परिययंति, णाणलयं जीवा चाउरंत जाव वोयीवयंति, तम्हा अण्णाणं परिवज्ज णाणमूलक व्यदुक्खाणं अंत' करिम्सामि, सध्वदुक्खाणं अंत' किच्चा सिवमचल जाव सासत' चिहिस्सामि। अण्णाणं परमं दुक्वं, अण्णाणा जायते भयं । अण्णाणमूलो संसारो, विविहो सम्बहिणं ।। १।। मिगा बझति पासेहि, विहंगा मत्तवारणा । अच्छा गलेहिं सासंति, अण्णाण सुमहभयं ॥२॥ जम्मं जरा य मच्चू य, सोको माणोऽवमाणणा। अण्णाणंमूलं जीवाण', संसारस्स य संतती॥३॥ अपणाणेण अहं पुष, दीहं संसारसागर। जम्मजोणिभयावत्त, सरितो दुक्खजातसं (लयं)॥४॥ दीवे पालो पयंगस्स, कोसियारस्स बंधण। किंपाकमक्खण' व , अण्णाणस्स णिदसण ॥५॥ वितियं जरो दुपाणत्यं , दिवो अण्णाणमोहितो! संभग्गगातलट्ठी उ, मिगारी णिधर्ण गओ ॥६॥ मिगारी य भुयंगो य, अण्णाणेण विमोहितो। गाहा ( दाढा ) दसणिवातेणं, विणास दोऽवि ते गता दगभालिज्ज 10॥ से सुप्पिय तणय भहा, अण्णाणेण विमोहिता। माता तस्सेव सोगेण, कुद्धा त' चेव खादति ॥ ८॥ विष्णासो पोसहीणं तु. संजोगाणं व जोयण। साह वावि विज्जाणं, अण्णाणेण ण सिझति ॥ ६॥ विणणसो ओसाहीणं तु, संजोगाण व जोयणं । साहणं वाधि विज्जाणं, णाणजोगेण सिज्झति ॥ १०॥॥ एवं सिद्ध ॥ २१ ॥ गाहावदों नामज्भवणं सम्मत्त ॥ २१ ॥ अनुक्रम [२०७२१८] ॥ १७॥ अष्भिाषितेषु 2022 ~37~ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[२२], .........मूलं [१] / गाथा [१-१४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [२२] 'दगभालिज्ज' अध्ययन प्रत सूत्रांक [0] गाथा ||१-१४|| दीप सिद्ध। परिसाडी कम्मे, अपरिसाडिणो बुद्धा, तम्हा खलु परिसाडिणो बुद्धा णोवलिप्पंति रएणं पुक्खरपत्त' व बारिणा, दगभाले(गद्दभे)ण अरहता इसिणा वुइत-पुरिसादीया धम्मा पूरिसप्पवरा पुरिसजेट्ठा पुरिसकप्पिया पुरिसपज्जोविता पुरिससमण्णागता पुरिसमेव अभिउंजियाणं चिट्ठति, से जहाणाम ते अरसिया सरीरंसि जाता सरीरेण वड़िया सरीरसमण्णागता सरीरं चेव अभिउंजियाण चिट्ठाते, एवामेव धम्मावि पुरिसादीया जाब चिट्ठति। एवं गडे वम्मीके थूभे रक्खे वणसंडे पुक्खरिणी, णवर पुढवीय जाता भाणियव्वा, उदगपुक्खले उदगणेतव्याणि । से जहा णामते अगणिकाए सिया अरणीय जाते जाव अरणी चेव अहिभूय चिट्ठति, एवामेव, धम्मावि || पुरिसादीया त चेव । धित्तेसिं गामणगराण', जेसिं महिला पणायिका । ते यायि धिक्किया पुरिसा, जे इत्थीण वसंगता ॥१॥ गाहाकुला सुदिव्याच, भावका मधुरोदका । फुल्ला व पउमिणी रम्मा, वालक्कता व मालगी ॥२॥ हेमा गुहा ससीहा था, माला वा वझकप्पिता। सविसा गधजुत्ती वा, अ'तो दुट्ठा व वाहिणी ।। ३ ।। गरता मदिरा वावि, जोगकपणा व सालिणी । णारी लोमि विष्णेया, जा होज्जा समणोदया ॥ ४॥ उच्छायणं कुलाणं तु, दब्यहीणाण लाघवो। पतिट्ठा सव्वदुक्खाण, णिहाय अज्जियाण य ॥ ५ ॥ गेह येराण गंभी', विग्धो सद्धम्मचारिण। दुहासो अखलोग व. लोके सूता सुमंगणा (किमंगणा ?) ॥६॥ इत्थी उ बलवं जत्थ, गामेसु णगरेसु वा अणस्तबस्स हेस तं, अपव्येसु य मुडण ॥ ७॥ चित्त सिं गामणगराणं सिलोगो। डाहो भय हुतासातो, विसातो मरणं भयं। छेदो I भयं च सत्थातो, वालातो दसणं भयं ॥ ८॥ संकणीयं च जं वन्धु', अप्पडीकारमेवय । तं वत्थु सुडू जाणेज्जा, जुजते जेऽणुजोइता | जत्थत्थी जे समारंभा, जे वा जे साणुबंधिणो। ते वन्धु सुगु जाणेज्जा, णेय सव्यविणिच्छये ॥ १० ॥ जैसिं जहिं : सुटुप्पत्ती, जे वा जेसाऽऽणुगामिणो। विणासो अविणासो वा, जाणेज्जा कालवेयवो ॥ ११ ॥ सोसच्छेदे धुवो मच्बू, मूलच्छेदे हतो तुमो। मूलं फलं च सव्वं च, जाणेजा सव्ववत्थुसु ॥ १२ ॥ सीसं जहा सरीरस्स, जहा मूलं दुमस्स य। सव्वस्स साहुधम्मस्स, तहा झा All विधीयते ॥ एवं सेसि ॥२२॥ गभालो) गहभीयनामज्भवणं ॥ २२॥ अनुक्रम [२१९२३३] ॥१८॥ ॥ १७ रामपुत्तज्कयण' ऋषिभाषि तेषु ~38~ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[२३], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [२३] 'रामपुत्तिय' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१|| सिदि। दुवे मरणा अस्सिं लोए पवमाहिज्जंति, तंजहा-सुहमतं चेव दुहमतं वेव, राम पुत्ते ण अरहता इसिणा युइत एवं वित्ति' विष्णत्ति बेमि, इमस्त खलु ममाइस्स असमायलेसस्त गडपलिघाइयस्स गंडबंधणपलियस्स गंडबंधणपडियात' करेस्सामि, अल पुरेमएण, तम्हा गडबंधणपडियात' करेत्ता णाणदलणचरित्ताई पडिसेविस्सामि, णाणेण जाणिप दसणेणं पासित्ता संजमेण संजमिय तयेण अधिएकम्मरयमल विझुणित विसोहिय अणादीयं अणवतम्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतार वीतिवत्तित्ता सिवमयलमत्यमक्खयमन्यावाहमपुणरावत्तय सिद्धिगतिणामधिज्ज ठाणं संपत्ते अणातगद्ध' सासत कालं चिहिस्सामिति ॥ एवं से सिध्दे ॥ २३ ॥ रामपुतियझयण ॥ २३ ॥ दीप अनुक्रम [२३४२३५] ~39~ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-४१|| [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[२४], .........मूलं [१] / गाथा [१-४१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं | [२४] 'हरिगिरि' अध्ययनं समिणं पुरा भव्य उदाणि पुण अभव्य हरिगिरिणा अरहता इसिणा वुइत-चयंति खलु भो य रहया ऐरतियत्ता तिरिक्षा तिरि-1 सक्खत्ता मणुस्सा मणुरुसत्ता देवा देवत्ता, अणुपरियति जोवा चाउरतं संसारकतार कम्माणुगामिणो तधावि मे जोवे इधलोके सुरप्पायके ॥१८॥ IMI परलोकदुहुप्पादए अणिए अधुवे अणितिए अणिच्वे असासते सजति रजति गिज्झति मुज्झति अज्झोववज्जति विणिघातमावज्जति. मंच हरिगिरिभ ऋषिभाषि Wण पुणो सडणपडणविकिरणविद्धंसणधम्म अणेगजोगक्खेमसमायुत्तं जीवस्सऽतारेलुके, संसारणिध्वेढिं करोति , संसारणिव्येदि करेसा जमायणे २४ Eसिवमचल चिहिस्सामित्ति, तम्हाऽधुवं असासतमिणं संसारे सव्वजीवाणं संसतीकरणमितिणच्चा णाणदसणचरित्ताणि सेविस्सा- IST मि, णाणदसणचरित्ताणि सेवित्ता अणादीयं जाच कतार वितिवतित्ता सिवमचल जाव ठाण अभुवगते चिहिस्सामि । कतार बारिमउभे घा, दित्ते या अग्गिसंभमे। तमंसि वाडधाणे वा, सया धम्मो 'जिणाहितो ॥१॥ धारणी सुसहा चेच, गुरभेसज्जमेव वा EI सद्धम्मो सव्यजीवाणं , णिच्च लोए हितंकरो ॥२॥ सिग्धवायिसमायुत्ते , रधचक्के जहा अरा। फडतं परिलछ या घ, सुहयुक्खे | सरीरिणो ॥३॥ संसारे सव्वजीवाणं , गेहा संपरिपत्तते । उदुवकातरूणं वा, वसणुस्सवकारणं ॥४॥ वहिं रविं ससंकं च सागर सरियं तहा। इंदमयं अणीयं च , सज्जमेहं च चिंतए ॥५॥ जोव्वां यूवसंपत्ति', सोभ-गं धणसंपवं । जीवितं वाचि जावाEM, जलबुध्य्यसंनिभं ॥ ६॥ देविंदा समहिड्डिया, दाणबिंदाय विस्सुता । णरिंदा में य विता, संखयं विवसा गता ७॥ सव्वस्थ णिरणुक्कोसा णिव्विसेसप्पहारिणो। सुत्तमत्तपमत्ताणं , एका जर्गातऽणिच्चता ॥८॥ देविंदा दाणविन्दा य, रिंदा जे य विस्मुता। पुराण कम्मादयन्भूयं, पीति पावंति पीवरं ॥ ॥ आऊ धणं बलं कब , सोभन्गं सरलत्तण। णीरामयं च कंतच , दिस्सते विविहं जगे ॥ १०॥ सदेवोरगगंधच्वं , सतिरिक्स समाणुसं। णिभया णिब्बिसेसा, जगे यत्तं यऽणिच्चता। ॥१९॥ दाणमाणोक्यारेहि , सामभेयक्कियाहि या। ण सका संणिवारेउं, तेलोकेणाविऽणिच्चता ॥ १२॥ उच्च वा जति वा | णीयं, देहिणं वा णमस्सित । जागरत पमत्त वा, सव्वत्थाणाभिलुप्पति ॥१३॥ एवमेत करिस्सामि , ततो एवं भविस्सति । दीप अनुक्रम [२३६२७७] ~40~ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ....... अध्ययन-[२४], .........मूलं H I गाथा [-1......... आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [२४] 'हरिगिरि अध्ययनं (वर्तते) प्रत सूत्रांक हरिगिरिभ जयण'२४ गाथा ||१-४१|| ॥ २० ॥ संकप्पो देहिणं जो य , ण त कालो पडिच्छती ॥१४॥ जो जता सहताजेवा. सव्यस्थेवाणुगामिणो। छाया देहिणा गुढा , सव्य- मण्णेतिऽणिच्चता ॥१५॥ कम्मभावेऽणुक्त्त'ती, दीसंती य तथा तथा । देहिणं पकती चेय, लीणा बत्तयऽनिच्चता ॥१६॥ कई तेषु || देहिणं जेणं , णाणावण्णं सुहासुहं । णाणावत्थं नरोऽयेत', सव्यमण्णेति त तहा ॥ १७॥ कंती जाव वयो वत्था , जुते जेण कम्मु णा। णिवत्ती तारिसी तीसे , वायाए व पडिसुका ॥ १८॥ ताहं कडोदयुभूया , नाणागोयविकप्पिया। भंगोदयऽणुवत्त ते , संसारे | सव्वदेहिणं ॥ १६॥ कम्ममूला जहा बल्ली , वल्लोमूला जहा फल । मोहमूलं तहा कर्म , कम्ममूला अणिच्चया ॥२० ।। बुज्झते युज्माए देव , बहजुत्त सुभासुभ। कंदसंदाणसंबद, वल्लीणं व फला फलं ॥ २१ ॥ छिण्णादाणं सयं कम्म, भुज्जए त न बज्जए । छिन्नमूलं व चल्लीण', पुल्युप्पणं फला फले ॥ २२ ॥ छिन्नमूला जहा बहरली , सुक्कमूलो जहा दुमो। नहमोह तथा का, सिष्ण' या हयणायक ॥ २३॥ अप्पारोही जहा बीय', धूमहीणो जहाऽनलो । छिनमूलं तहा कम्म, नहसण्णो व देखभो ॥२४॥ जुए कम्मुणा जेणं, बेसं धारद तारिस । वित्तकतिसमत्था बा, रंगमज्झे जहा नडो ॥ २५ ॥ संसारसंतई चित्ता , देहिणं विविहोदया । सव्यो (या) दुपा (मा). लया वेव, सव्वपुण्फफलोदया ॥ २६ ॥ पाच परस्स कुब्बतो , हसए मोहमोहिओ। मच्छो गल गसंतो वा, विणिघायं न पस्सई ॥२०॥ परोवधायतल्लिच्छो, दप्पमोहबलुडुरो । सीहो जरो दुपाणे वा , गुणदोस न विंदई ॥२८॥ पच्चुप्पाणरसे गिद्धो, मोहमल्लपणोल्लिओ । दित्तं पाबद उपाठ, वारिमझ च वारणे ॥२६॥ सबसो पार्य पुरा किच्चा , दुक्ख वेएर दुम्मई । आसत्तकंठपासो वा, मुक्कघाओ दुट्टिभो ॥ ३०॥ पंचर सुहमादाय, सत्ता मोह मि माणवा। आइच्चरस्सितत्तं या , मच्छा जिजंतवाणियं ॥३१॥ अधुवं संसिया रज्ज , अचसा पावंति संखयं । छिज्ज व तरुमारूढा , फलस्थीव जहा नरा ॥ ३२ ॥ मोहोदये सय जंतू, मोहं तं चेब दीप अनुक्रम [२३६२७७] ~41~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ....... अध्ययन-[२४], .........मूलं H I गाथा [-1......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [२४] 'हरिगिरि अध्ययनं (वर्तते) ॥ मडझय २५ कृषिभाषि प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-४१|| ९॥14 || बेसई । छिपणकपणो जहा कोई , हसिजा छिन्ननासियं ॥३३॥ मोहोदई सयं जंतू, मंदमोहं तु विसई। हेमभूसणधारिया, जहा लक्खाविभूसणं ॥ ३४॥ मोही मोहीण मझमि, कोलए मोहमोहिओ। गहीणं व गही मज्झ, जहत्थं गहमोहिओ ॥३५॥ बंधता तेषु निजरता य, कम्म नणंति देहिणो । बारिगाहघडोउन्ध , घडिजंतनियंधणा ॥ ३६ ॥ बज्कए मुच्चए चेव , जीवो चित्तण कम्मुणा । बद्धो वा रज्जुपासेहिं , ईरियन्तो पओगसो ॥३०॥ कापस्स संतई चित्तं , सम्म नच्चा जिईदिए । कम्मसंताणमोक्खाय , समाहिमभिसंधए ॥ ३८॥ दन्यो खेतो चेव , कालो भावभो तहा। निच्चानिच्चं तु विण्णाय , संसार सव्वदेहियं ॥३६॥ निच्चलं कयमारोग्ग', थाणं तेलोकसकय । सब्बष्णुमगाणुगया , जीवा पार्वति उत्तम ॥ ४०॥ ॥ एवं सिके बुद्ध विरए विपाये ॥ २४ ।। हरिगिरिणामझयणं ॥२४॥ ---x--- x---x--- x--- x --- दीप अनुक्रम [२३६२७७] ~42~ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-२५], .........मूलं [२] / गाथा [१-२] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं | २५] 'अंबड' अध्ययन प्रत सूत्रांक [२] गाथा तए छां अंमडे परिवायए जोगंधरायणं एवं बयासी(स)मणे मे विरई भो देवाणुप्पिओ ! गभवासा हि कह न तुम वंभचारी ?, तए मां जोगंधरायणे अंबडं परिव्वायगं एवं बयासी-भारिया एहि या एहि त' प्याणाहि जे खलु हारिता पावेहि कम्मेहि, अविप्पमुक्का ते खल्लु गभवासा हि रज्जति, ते सयमेव पाणे अतिवात ति। अण्णेहिवि पाणे आलवातेति । अण्णेवि पाणे अतिवातावे ते या सातिज्जति समणुजाति, ते सयमेव मुसं भासंति० सातिज्जंति स० अबिरताअप्पडिहतपच्चक्खात. मणुजा अदत्तं० अनं० साति जाव सयमेव अव्यंभपरिगहं गिति मीसर्व भणियध्वं जाव समणुजाति, एवामेव ते अस्संजता अविरता अप्पडिहतपच्चयखातपावकम्मा सकिरिया । असंवुत्ता एकंतदडा एकंतवाला बहु पावं कम्म कलिकलुस समज्जिणित्ता इतो चुता दुग्गतिगामिणो भवंति, एहि हारिता आताणाहि । जे खलु आरिया पावेहिं कस्मेहि विष्पमुक्का ते खलु गम्भवासा हि णो सज्जति, ते णो सयमेष पाणे अतिवातिन्ति, एवं तथैव विपरीत / ||१२|| दीप अनुक्रम [२७८२८१] ॥ २२ ॥ जाव अकिरिया संधुडा एकतपण्डिताववगतरागदोसा तिगुत्तिदुत्ता तिदंडोवरता णीसल्ला आयरफ्ती ववगयचउक्कसाया चउविकहविवज्जिता अंमडमय ऋषिभाषि चमहध्वयतिगुत्ता, पंचिंदियसुबुडा छज्जीवणिकाय सुहु णिरता सत्तभयविप्पमुक्का अहमयट्ठाणजदा णवर्षभचेरगुत्ता दससमाहिट्ठाण| 'पयुत्ता बहु पावकम्म कलिकलुस खवइत्ता इतो चुया सोग्गतिगामिणो भवति । से णं भगवं ! सुतमगाणुसारी खीणकसाया दते दिया | सरीरसाधारणट्ठा जोगसंधणता गचकोडीपरिसुद्ध' दसदोसविप्पमुक्कं उग्गमुप्पायणासुर' इतराइतरहि फुलेहि परफङपरिणिहितं विगति गालं | विगतमं पिंड सेज उवधि च गयेसमाथा संगतविण योवयारसालिशीयो कलमधुररिभितभासिणीओ संगतगतहसितभणितसुदरथणजहणपटियाभो इत्थियायो पासित्ता णो मणसावि पाउभावं गच्छति, से कथमेत विगतरागता १, सरागस्सपि त ण अधिक्स इतमोहस्स त्य तत्थ इतराइतरेसु कुलेसु परकर जाव वाई पासित्ता णो मणसावि पादुभावो भवति, तकहमिति ? मूलधाते हतो रक्खो, पुष्कघात हतं EG डिपणाए मनसाए.कतो तालस्स रोहणं? ॥१॥से कथमेत , हत्थिमा रसणं, तेल्लापाउधम् किंपागफलणिदरिसणं, | ~43~ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-२५], .........मूलं [२] / गाथा [१-२] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं | [२५] 'अंबड' अध्ययनं (वर्तते) प्रत सूत्रांक २] से जथा णाम ते साकडिए अक्वं मक्खेज्जा एस में णो भज्जिस्सदि भारं च मे बहिस्सति, एबामेवोबमाए समणे णिग्गंथे छहि ठाणेहि आहार आहारमाणे या णो अतिक्कमेति, वेदणा यावच्चे तं चेव, से जथाणामते जतुकारए इंगालेसु अगणिकार्य णिसिरेग्जा एस मे अगणिकाए णो | विज्झाहिति जतुं न ताविस्लामि, पवामेवोवमाए समणे णिगंथे छहिं ठाणेहिं आहारं आहारमाणे णो अतिक्कमेति वेदणा येयावच्चे तसेव, से। ज णामते उसुकारण तुसेहि अगणिकायं णिसिरेज्जा एस मे अगणिकाए णो विज्झातिस्सति उसु च तावेस्सामि, एवामेवोचमाए समणे* II णिगथे० सेस तं चेव ॥ ॥ एवं से सिद्धे, बुद्धे विरए विपावे० ॥२॥ अंबडायणं ।। २५ ।। गाथा ||१-२|| दीप अनुक्रम [२७८२८१] ~44~ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [-] गाथा दीप अनुक्रम [ २८२ २९० ] [भाग 2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ... मूलं [-] / गाथा [१-९] अध्ययन - [२६], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं ।। २३ ।। ऋषिभाषि तेषु ----.. ------- [२६] 'मायंगिज्झ' अध्ययनं कतरे धम्मे पण्णत्ते सव्धा (महा) उसो सुणेध मे । किण्णा बंभणवण्णाभा, युद्ध सिक्खति माहणा ॥ १ ॥ रायाणो वणिया जागे, 1 माहणा सत्यजीविणो । अंधेण जुगेणद वि; पल्लत्थे उत्तराधरे ॥ २ ॥ आरूढा रायरहं, अडिणीए युद्धमारभे । सधामाई पिपिद्धति, विवेता म्हपाहुणे ॥ ३ ॥ ण माहणे धगुरह, सत्यपाणी ण माहणे ण माहणे मुसं थूया, चोज्जं कुज्जा ण माहणे ॥ ४ ॥ मेहुणं तु ण गच्छेज्जा, णेव गेण्डे परिग्गहं । धम्मंगेहि णिजुत्तेहिं, झाणज्भ्यणपरायणो ॥ ५ ॥ सध्यिंदिपहिं गुत्त हिं, सच्चप्पेही स माहणे । सीलंगहिं णिउत्तेहिं, सील [जाल] प्पेही स माहणे || ६ || छज्जीवकायहितप, सव्वसन्तदयावरे। स माहणेत्ति वत्तव्वे, आता जस्स विसुमती || ७ | दिव्यं सो किसिं किसेज्जा णो वपिज्जा, मातंगणं अरहता इसिणा बुइतं आता छेत्तं तयो पीतं, संजमो जुअणंगलं । काणं फालो निसित्तो य, संवरो य यीयं दढं ॥ १ ॥ अकूडत्तं व कूडेसु विणए णियमणे ठिते । तितिक्खा य हलीसा तु दया गुत्ती ये पग्गहा ॥ २ ॥ संमत्त गोच्छणवो, समिती उ समिला तहा। धितिजोत्तसुसंबद्धा, सव्वण्णुचयणे रया ॥ ३ ॥ तु खतात अणि कसतो किसिं ॥ ४ ॥ तत्तो पो असे अहिंसा जिणं परं तस्स, जुत्ता गोणा व संगहो ॥ ५ ॥ धितो खलं बलुयिक (हिक्का), सद्धामेडी य णिच्चलाः । भावणाड वती तस्स, इरियादारं सुसंबद्धं ॥ ६ ॥ कसाया मलणं तस्स, कित्तिवातो य तक्खमो णिज्जरातुलिवामीसा, इति दुक्खाण णिक्खति ॥ ७ ॥ एतं किसिं कसित्ताणं सव्वसत्तदयामाहणे खत्तिए वैस्से, सुदैवापि विसुकती ॥ ८ ॥ ॥ एवं से सिद्धे० ॥ २६ ॥ माय' गिज्जकयण ॥ २६ ॥ " 1 ~45~ पंचैव दिया ववसातो य णं ॥ २२ ॥ माय गिज यण २६ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि .... अध्ययन-[२७], ..........मूलं H I गाथा [१-८] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं प्रत सूत्रांक H | [२७] 'वारत्तय' अध्ययन TEL सि । साधु सुचरितं अव्याहता समणसंपया वारत्तएणं अरहता इसिणा बुइत-न चिर जणे संबसे मुणी, संवासेण सिणेहु वद्धती | भिक्खस्स अणिच्छाचारिणो , अत्तह कम्मा दुहायती ॥१॥ पयहितू सिणेहबंधणं , भाणझयणपरायणे मुणी। णिवत्तेण सयावि चेत व्याणाय मतिं तु संदधे ॥२॥ जे, भिक्खु सखेषमागते , वयणं कण्णमुहं परस्स व्या । सेऽणु पियभासण हुमुद्धे, आतह णियमा तु हायती ॥३॥ जे लक्षणसुमिणपहेलियाउ, भक्खाइयाई व कुतूहलाओ। भद्द (तहाय) दाणाई गरे पउंजए , सामण्णभावस्स महंतर खुसेायण ऋषिभाषि- ॥४॥ जे चोलकतवणयणेसु वावि , आवाहवि (वी) वाहवधूवरेसु या जुज्जेइ जुरुक य पत्थिवाणं, सामण्णभावस्स महंतर खु से कामरकामतेषु MS जे जीवाण हेतु पूयणट्ठा, किंची इहलोकसुहं पउंजे। अद्धि(ही)ऽवि सेए सुपयाहिणे से, सामपणभावस्स महंतर खु से ॥ ॥ यण'२८ ववगयकुरु जे संछिपणसोते , पेज्जेग दोसेण य विप्पल्मको। पियमप्पियसहे अकिंचणे य , आत?ण जहेज धम्मजीवी ॥ ॥ ॥ एवं से सिद्धे० ॥२७॥ वारत्तयणामज्झयणं ।। २७॥ गाथा ॥१-८|| दीप अनुक्रम [२९१२९८] ~46~ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक H गाथा ॥१-२५॥ टीप अनुक्रम २९१ ३२३] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन - [२८], मूलं / गाथा [१-२५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं [२८] 'अद्दईज्ज' अध्ययनं सिद्धि | छिण्णसोते भिसं सव्वे, कामे कुणह सव्वसो कामा रोगा मणुस्साणं, कामा दुग्गतिवङ्गणा ॥ १ ॥ गालेज मुणी गेही एकन्तमणुपस्सतो। कामे कामेमाथा अकामा जंति दोग्गति ॥ २ ॥ जे लुब्भति कामेसु तिविहं हवति तुच्छ से अकोयवण्णा कामेसु बहवे जीवा किलिसंति ॥ ३ ॥ सल्लं कामा विसं कोमा, कामा आसीविसोवमा बहुसाधारणा कामा कामा संसार " चणा ॥ ४ ॥ पत्थति भावओ कामे, जे जीवा मोहमोहिया। दुग्गमे भयसंसारे, ते धुवं दुक्खभागिणो ॥ ५ ॥ कामसलमणुदित्ता जयवो काममुच्छिया । जरामरण कंतारे, परियचंति वक्कमं ॥ ६ ॥ सदेवमाणुसा कामा, मए पत्ता सहस्वसो । न याहं कामभोग सु, तित्त| पुब्बो कयाइवि || || तत्तिं कामेसु णासज्ज' पत्तपुध्वं अनंतसो । दुक्ख बहुविहाहाकार, कक्कसं परमासुभं ॥ ८ ॥ कामाण मग दुक्ख', तित्ती कामेसु दुल्लभा बिज्जुज्जोतो परं दुक्ख तपखयपरं सुहं ॥ १ ॥ कामभोगाभिभूतप्पा, विच्छिष्णावि णराहिया फीति खिति' इमं भोच्चा, दोग्गति' विवसा गता ॥ १०॥ काममोहितचित्तेणं, विहाराहारकंखिणा । दुग्गमे भयसंसारे, परीत केसभा गिणा ॥ ११ ॥ अप्यत्तावराहोऽयं, जीवाण भवसागरो सेओ जरगंवाणं वा अवसाणंमि दुत्तरो ॥ १२ ॥ अप्पक्कतायराहेहिं, जीवा ॥ २५ ॥ ऋषिभाषि तेषु ------.. | , , . पार्श्वति वेदनं । अव्यक्कतेहिं सल्लेहिं, सल्लकारीव वेदनं ॥ १३ ॥ जीवो अप्पोवघाताय पडते मोहमोहितो बंधमोग्गरमाकोदा (चोदा -लोदा) णच्तो बहु वारिओ ॥ १४ ॥ असम्भावं पवते 'ति दीणं भासति वीकवं कामग्गहाभिभूतप्पा, जीवितं पहयंति तं (य) ॥ १५ ॥ हिंसादाणं पयतं ति कामतो केति माणवा वित्त णाणं सविण्णाणं केयी घोति हि संखयं ॥ १६ ॥ सदेवोरगगंधव्यं, सतिरिक्ख समाणुसं । कामपंजरसंवद्धं, किस्सते विविह जगं ॥ १७ ॥ कामग्गहविणिमुक्का, घण्णा धीरा जितिंदिया वितरति मेइणिं रम्मं, सुप्पा सुद्धवादिणो ॥ १८ ॥ जे गिद्धे कामभोगेसु पावाई कुरुते नरे से संसरति संसारं चाउरतं महत्भयं ॥ १६ ॥ जहा निस्साविणिं णावं जातिगंधो दुरहिता । इच्छते पारमागंतु, अंतरे च्चिय सीदति ॥ २० ॥ अएण अरहता इसिणा बुझतं काले काले य मेहावी, 1 1 ~47~ ।। २४ ।। बद्धमाणिज्ज मा० २८ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि .......... अध्ययन-[२८], .........मलं H I गाथा [१-२५] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [२८] 'अद्दईज्ज' अध्ययनं (वर्तते) प्रत सूत्रांक H गाथा ||१-२५|| पंडिए य खणे खणे । कालातो कंचणस्सेव , उतरे मलमप्पणो ॥१॥ अंजणस्स खयं दिस्स , बम्मीयस्स य संचयं । मधुस्स य समाहारं उज्जमो संजमे वरं ॥२॥ उच्चादीयं विकणं तु भावणाए विभावए । ण हेमं दंतक तु, चक्कवट्टीवि खादए ॥३॥ खणधोवमुहुत्तम* तर, सुविहित ! पाउणमप्पकालियं। तस्सवि विपुले फलागमे , किं पुण जे सिद्धि परक्कमे? ॥३॥ ॥ एवं से सिद्ध ० ॥२८ । अइज्जज्मयण ॥ २८ ॥ ---x---x---x---x--- दीप अनुक्रम [२९९३२३] ~48-~ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक H गाथा ॥१-२०|| दीप अनुक्रम [३२४ ३४३] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन - [२९], .. मूलं [-] / गाथा [१-२०] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं ।। २६ ।। ऋषिभाषि तेषु 事 ------ [२९] 'वद्धमाण' अध्ययनं " सिद्धि । सर्वति सव्वतो सोता, किं ण सोतोणिवारणं? पुढे मुणी आइक्ले, कहं सोति पिहिजति ॥ १ ॥ वदमाणेण अरहता इसिणा बुइतं पंच जागरओ सुत्ता, पंच सुत्तस्सं जागरा पंचहिं रथमादियति पंचहिं च रंवं उप ॥ २ ॥ सद्द सोतमुवादाय मण्णुण्णं वावि पावगं मणुण्णंमि ण रज्जेज्जा, ण पदुस्सेज्जा हि पावर ॥ ३ ॥ मणुष्णंमि अरज्जते अदु इयरम्मि य असुते अविरोधीणं एवं सोए पिचिति ॥ ४ ॥ रथं चक्खुमुवादाय, मणुण्णं एवं दो सिलोगा ६ एवं गंधे घाणं०८ रस जिन्भमुवादाय १० एवं फासमु बादाय० १२ ॥ दुइता इंदिया पंच संसाराय सरीरिणं ते चैव नियमिया सम्मं, जेव्वाणाय भवति हि ॥ १३ ॥ दुप्पहं हीरण वला। दुद्द तेहिं तुरंगे हिं, सारहीया महापहे ॥ १४ ॥ इदिएहिं सुदंतेहिं ण संचरति गोयरं विधेयेहिं तुरंगेहि सारहिव्वा व संजय ॥ १५ ॥ पुव्यं म जिणित्ताणं, वारे बिसयगोयरं विधेयं गयमारूढी, सूरो वा गहितायुधो ॥ १६ ॥ जित्वा मणं कसाए या जो सम्मं कुरुते तवं संदिप्यते स सुधप्पा, अग्गीवा हविसाऽऽहुते ॥ १७ ॥ सम्मत्तणिरतं धीरं दतकोहं जितिंदियं देवाचि तं णमंसंति, मोक्खे चेव परायणं ॥ १८ ॥ सव्यदुक्खप्पहीणे य, सिद्धे भवति णीरये ॥ १६ ॥ एवं से सिद्धं बुद्धे० ॥ २६ ॥ इद्द वधमाणनामज्ययण' एगूणतीसइमं ॥ २६ ॥ दुद्द तेहिं दिएहडप्पा, । ! सव्वत्थ विरये दाँतै, सव्यचारीहिं वारिए , ~ 49~ ।। २५ ।। वाउणाभज्क यण २६ पासिज्जना म० ३० Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन-[३०], .........मूलं H I गाथा [१-९] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [३०] 'वायु' अध्ययनं । प्रत सूत्रांक गाथा - सिद्धि । अधासबमिणं सव्वं वायुणा सव्यसंजुत्तेणं अरहता इसिणा बुइतं च जं कोरते कम्म, तं परत्तोवभुज्जतिः। मूलसेकेसु || सक्वेसु,फल साहासु दिल्सति ॥१॥ जारिस चुप्पते वीयं, तारिस बज्मए फल। णाणासठाणसंबद्ध', णाणासण्णाभिसणितं ॥२॥ जारिस किज्जते कम्म, तारिस भुज्जते फलं। णाणापयोगणिवत्तं, दुक्खं वा जा वा सुहं ॥३॥ कालाणा लभति कल्लागं, पावं पावा तु पावति । हिंसं लभति हतारं, जात्ता य पराजयं ॥४॥ सूवर्ण सूदइत्ताणं, जिंद'ताधि अजिंदणं । अक्कासदत्ता अक्कोस, परिच कम्म णि-1 रत्थकं ॥ ५॥ मण्णेति भहका भद्दकाइ मधुर मधुणति । कडुयं (कडुय ) भणियाइ', फरुसं फरुसाई माणति ॥ ६॥ कालाणंति भण। तस्स, कल्लाणए पडिस्सुया । पावकंति भणंतस्स,पावा ते पडिसुया ॥७॥ पडिस्सुआसरिस कम्म, णच्चा, भिक्खू सुभासुमं । न कम्म न सेवेज्जा, जेण भवति णारए ॥ ८॥ एवं से सिद्ध ॥३०॥ इइ चाउणामं तीसदममायण ॥ २६ ॥ ||१-९|| हमा दीप अनुक्रम [३४४३५२] ~50 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१|| [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[३१], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं | [३१] 'पासिज्ज' अध्ययनं केऽयं लोए कइविधे लोए कस्स वा लोए को वा लोयभावे केण वा उडण लोए चुच्चई का गती? कस्स वा गती के वा गतिभावे ॥ २६ ॥ केण वा अट्ठ गती पवच्चति, पासेण अरहता इसिणा बुइत'-जीवा चेव अजीवा केव, चउबिहे लोए विवाधिते-दव्यतो लोए खेत्तओ लोए पासिज्जम्भ कालओ लोए भावो लोए, अत्तभावे लोए, सामित्तं पदुच्च जीवाण लोए, निव्वत्ति पडुव्य जीवाण' चेव अजीवाण' चेब, अणादीप अणिहणे I यी ३० ऋषिभाषि (बीओषाढो पारिणामिए लोकभावे, लोकतीति लोको । जीवाण य पुग्गलाण य गतीति आहिता, जीवाणपुग्गलाण चेव गती दन्यतो गती खेत्तमो गती काल ओ गती भावओ गती, अणातीए अणिधणे लोकभावे, गंमतीति गती, उद्धगामी जीवा महग्गामी पोग्गला, कम्मप्पभवा जीवा परिणामप्पभवा पोनगला, कम्म पप्प फलविवाका जीवाण', परिणामं पप्प फलविवाको पोग्गलाण', विमा पया कयाई अन्यायाहसुहमेसिया, कस' कसावदत्ता जीवा दुविहं वेदण' वेदेति, पाणातीवातबेरमणेण' जाव मिच्छादसणविरमणेण', किं तु जीवा सातण वेयण वेदेति जस्सद्वाप जिहति. विहेति समत्तिच्छिहास्सति भट्टा समुच्छिहास्सति णिद्वितकरणिज्जे संतिसंसारभग्गा अमडाइ णियंठे णिस्तापवंचे योच्छिण्णसंसार वोचिषण ME संसारपेदणिज्जे पधीणसंसार पहीणसंसारवेयणिज्जे णो पुणरवि श्च्चत्य हव्वमागच्छति । एवं से सिद० ॥३१॥ पासिज्जनामज्भयण ॥३१॥ ॥२७॥ दे दीप अनुक्रम [३५३३५४] ~51 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [१] गाथा [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ....... अध्ययन-[३२], .........मूलं H I गाथा [-1......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [३२] 'पिंग' अध्ययनं सिद्धि । गतिवागरणगंथाओ पमिति जाव समाणितं इमं मझयणं, ताव इमो बीओ पाढो दिस्सति, तजाहा--जीषा चेव गमणपरिIMणता पोग्बाला चेव गमणपरिणता, दुविधा गती-पयोगगती य वीससागती य, जीवाणं व पोग्गलाणं चेव, उदण्यापारिणामिए गतिभावे, गम्ममाणा इयि गती उगामी जीवा अधगामी पोग्गला, पावकम्मकडाणं जीवाणं परिणामे, पावकम्मकडेणं पुग्गलाभां, ण कयाति पषा अनुPE क्खं पकासीति, अत्तकडा जीवा, किच्चा किच्चा वेदिन्तित-पाणातिवाए जाव परिग्गहेणं, एस खलु असंबुद्धे असंखुडे (अ)कम्मते, (अ) चाउजामे (अ)णियंठे अट्ठविह कम्मगंठि' पगरे'ति, से य चउहि ठाणेहिं विवागमागच्छति, तजहाणेरइपहिं तिरिक्खजोणिपहि मणुस्सेहि देवेहि, अत्तकटा जीवा णो परकडा, किच्चाकिच्चा वेदिति, पाणातिपातवेरमणेषां जाव परिग्गहवेरमणेघां, एस खलु संखुडे कमाते चाउजामो ॥२७ ।। ॥ २८ ॥ णियंठे अडविहं कम्मगर्थि णो पकरें ति, से य चउहिं ठाणेहिं जो विपाकमागच्छति, त'जहा-रइपहिं तिरिक्खजोणिएहि मणुस्सेहि देवेहि, लोए AM अरुणिज्जन ऋषिभाषि-2 ण कताइ णासी,ण कताइ ण भवति, ण कताइ ण भविस्सति, भुविं च भवति व भविस्सति य धुवे णितिए सासए अक्सए अल्यए अवट्ठिए निच्चे, मम०३३ से जहा णाम ते पंच अस्थिकाया ण कयाति णासी जाव णिच्चा एवामेव लोकेऽवि ण कयाति णासी जाव णिच्चे। ॥ एवं से सिद्धे॥ ___ सिद्धि ॥ दिव्वं भो किसिं किसेजा णो अप्पिणेजा, पिंगेण माहणपरिव्वायएणं अरहता इसिणा बुद्धत' -कतो छत्तं कतो बीय? कतो | ते जुगांगलं? । गोणावि ते ण पस्सामि, अज्जो का णाम ते किसी ॥१॥ आता छेत्तं तयो बोयं, संजमो जुयणंगलं । अहिंसा समिती जोज्जा, एसा धर्मातरा किसी ॥ २॥ एसा किसी सोभ(सुद्ध)तरा, अलुद्धस्स विवाहिता । एसा बहुसई होइ, परलोकमुहावहा ॥३॥ एवं किसि 2 कसित्ताध, सव्वसत्तदयावाई । माहणे खत्तिए वेस्से, सुई वाऽवि य सिझती ॥ ४॥ एवं से सिधे बुबुधे० ॥ ३२ ॥ पिंगझयण ॥ ३२ ||१-५|| पगार दीप अनुक्रम [३५५ ३६० ~52~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[३३], .........मूलं | गाथा [१-१८] .... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं | [३३] 'अरुणिज्ज' अध्ययनं प्रत सूत्रांक H गाथा ||१-१८|| ૨૮ दीप सिदि॥ दोहि ठाणेहिं बालं जाणेजा, दोहि ठाणेहिं पंडितं जाणेना, सम्मापओए मिच्छायपोतेणं कम्मुणा भासणेण । Fiभासियाए भासाए, सुकडेण व कम्मुणा । बालमेतं बियाणेजा, कज्जाकज्जविणिच्छए ॥१॥ सुभासियाए भासाए, सुकडेण य कम्मुणा । पंक्तिं तं वियाणेज्जा, धमाधम्मविणिच्छये ॥२॥ दुभासियाए (भासाए), दुकाडेण य कम्मुणा। जोगवस्त्रेम कहत तु. उसुवाया व सिंचति ॥३॥ सुभासियाण भासाये, सुकडेण य कम्मुणा। पज्जपणे कालवासी वा, जसं तु अभिगच्छति ॥४॥ व बालेहिं संसन्गि , णेव बालेहिं संथवं। धमाधम्मं च बालेहि, व कुज्जा कदायिवि ॥ ५॥ इहेवाकित्ति पावहि, पेच्चा गच्छेद दोगति । तम्हा बालेहि संसग्गिं, व कुज्जा कदायिचि ॥६॥ साहहिं संगम कुज्जा, साधूहि चेच संथबं । धम्माधम व साहूहिं साथ कुच्चिज्ज पंडिए ॥७॥ इहेब कित्ति पाउगति, पेच्चा गच्छा सोगति । तम्हा साधूहि संसग्गिं, सदा कुब्विज्ज पंडिए ॥ ८॥ पाणं पमाणं वत्तं च, वैज्जा अच्चाति योधमा । सद्धम्मचक्कदाणं तु, अवसाय अमतं वता ॥ पुग्न वित्यमुषा गम्म, पेच्चा भोज्जाहि ज फल । सबम्मवारिदाणे, विष्णं सुज्झति माणसं ॥१०॥ सम्भाधवक्कविषसं, सावजारंभकारक। HE दुमित्तं तं विजाणेज्जा, उभयो लोयविणासां ॥ ११॥ सम्मत्तणीरगंभीर; सावज्जा भवज्जकं । तं मित्त मुटु सेबेज्जा, उभतोलोक सुदावह ॥ १२॥ संसम्गितो पसयंति, दोसा वा जइ वा गुणा। वाततो मास्तस्सेय, ते ते गंधा सुहावहा ॥१३॥ संपुण्णवाहिणी भोधि, आवन्ना लवणोदधि । पप्पा सिप्प तु सव्याधि, पावंति लवणत ॥ १४॥ समस्सिता गिरि मेर', णाणावण्णापि पक्सि। णो। सव्ये हेमप्पमा होति, तस्स सेलस्स सो गुणो ॥ १५ ॥ कल्लाणमित्तसंसम्गि, संजयो मिहिलाहियो। फीतं महितलं भोच्चा, Is मूलाकं दिवं गतो ॥ १६ ।। अरुणेण महासालपुत्तेण अरहता इसिणा बुइतं -सम्मत्तं च अहिंसं च, सम्म णच्चा जितिदिए । कलाण2 मित्तसंसम्गि, सदा कुविज्ज पंडिते ॥ १७॥ एवं सिद्ध० ॥३३॥ अरुणिज्ज नाममज्झयणं तेत्तीसइम ३३ ॥ तेषु अनुक्रम [३६१३७८] ~53. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ॥१-७|| दीप अनुक्रम [३७९ ३८६] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ------... अध्ययन - [३४], .....मूलं [१] / गाथा [१-७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं ॥ ३० ॥ ऋषिभाषितेषु [३४] 'इसिगिरि' अध्ययनं सिद्धि | पंचहि ठाणेहिं पंडिते वाले परीसहोदसी उदीरिज्जमाणे सम्म सहेज्जा तितिवखेजा अधिया सेउजा वाले खलु पंडितं परोक्तं फलं वदति णो पच्चक्सं, मुक्खसभाषा हि वाला ण किंचि वालेहिंतो पण विज्जति तं पंडिते सम्म सहेजा खमेउजा०, बाले चालु पंडितं पञ्चक्खमेव फलं वदेज्जा तं पंडिए बहु मन्निज्जा, दिट्ठे मे एस वाले पच्चवखं फरसं वदति णो दंडे वाणि वा (लेडुणा वा) मुट्ठिणा वा वाले कवालेण वा अभिहणत तज्जेति तालेह [ परितालेति ] परिताबेति उद्दवेति मुक्खसभाषा हु वाला ण किंचि वालेहिंतो ण विज्जति तं पंडिते सम्म सहेज्जा खमेज्जा, वाले य पंडितं दंडेण वा एवं चैव वरं अण्णतरेणं सत्यजातेणं अण्णयरं सरीरजायं अच्छिंदर वा विच्छिंदर वा मुक्खसभाषा हि बाला तं पडिए सम्म सहइ० वाँले य पंडियं अण्णतरेणं सत्यजाएणं अच्छिंदवि वा विच्छिंदति वा सं पंडिए बहु मन्नेजा दिट्ठे मे एस वाले अण्णतरेणं साधनायेण अपतरं सरीरजायं अच्छं विच्छिं णो जीवितातो ववरोवेति, मुक्खस० ण किंचि बाळाओ या विजति तं पं० सम्म सहे० ख० तिति० अहि०, इसिगिरिणा मा० पंडितं जीविया ओ बबरोवेज्जा तं पंडिते बहु मध्णेज्जा, दिट्ठे मे एस वाले जीविता णो धम्मातो भंसेति, मुक्सा किंचि वा० तं पंडिते सम्म सहे० ख० तिति०, अहि० इसिगिरिणा माहणपरिव्वायपणं अरहता बुझतं जेण केणइ उचारणं, पंडिओ मोहज्ज अप्यकं । बालेणुदीरिता दोसा, तंपि तस्स हिता भवे ॥ १ ॥ अवडिण्ण (य) भावाओ, उत्तरं तु ण विज्नती । माहणे ॥ २ ॥ किं कज्जते उ दीणस्स, पणऽण्णत्ता देहकखणं । कालस्स कंसणं चावि, णऽण्णन्त वा विहायती ॥ ३ ॥ णच्वाण आतुरं लोकं णाणावाहीहि पीलितं । णिम्ममे णिरहंकारे भवे भिक्खु जितिंदिए ॥ ४ ॥ पंचमहब्वयजुस्ते, अकसाए जितिदिए । से छु दंते सुहं सुयति णिरुवसाय जीवति ॥ ५ ॥ जे पण लुमति कामेहि, छिपगसोते अणासवें । सव्वदुक्खपहीणो हु, सिद्धे भवति णीरम् ॥ ६ ॥ एवं से सिद्धे० ॥ ३४ ॥ इसिगिरिणामज्यपणं चतीसह सह कुल्बर वेसे प्पो, अपडिण्णे (य) ३४ ॥ ~54~ ॥ २६ ॥ अद्दालपज्ज भ० ३५ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[३५], .........मूलं [१] / गाथा [१-१९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [३५] 'अदालईज्ज' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-१९|| सिद्धि । चउहि ठाणेहिं खलु भो जीवा कुप्पंता मज्जता गृहंता लुब्भता वजं समादिययंती, बज्ज समादिइत्ता चाउरांतसंसारकतारे पुणोरवत्ता पडिविसंति, त कोहेणं माणेणं मायाए लोमेणं, तेसिं च णं अहं पडिघातहउँ अकुप्पते अमते अगूहते अलुभते तिगुत्ते तिदडविरते णिस्सल्ले अगारवे चउविकहविवज्जिए पंचसमिते पंचेदियमुसंडे सरीरसाधारणट्ठा जोगसंधणट्ठा णवकोडीपरिसुद्ध' दसदासविप्पमुक्कं उगमुप्पायणासुद्धं तत्थ तत्थ इतरइतरफुले हि परकडपरणिहितं विगलिंगालं विगतधूम सत्यातीतं सत्थपरिणतं पिंड सेज्ज उवहि | च एसे भाषेमिति. अहालएणं महता इसिणा बुइत'-अण्णाणषिप्यमूढप्पा, पच्चुप्पण्णाभिधारए। कोर्य किच्चा महापाणं, अप्पा विधा। अप्पकं ॥१॥ मण्ण बाणेण विढे तु, भचमेक्कं विणिज्जति । कोषबाणे पविट्ठ तु, णिज्जती भक्ततिः ॥२॥ अण्णाणविष्पमूटप्प प० ॥ ३१ ॥ पपदालाज्ज माणं किच्चा महाबाण अ॥३॥ मन्ने वाणेण० माणयाणे पवि० ॥ ४॥ एवं मायाएवि० ॥ ५-६॥ लोमेऽवि ॥ ७८॥ दोनाम०३५ ऋषिभाषि सिलोका । तम्हा तेसिं विणासाय, सम्ममागम्म संमति । अप्पं परं च जाणित्ता, चरे विसयगोयरं ॥३॥ जेसु जायते कोधाती, कम्मबंधा महाभया । ते वत्थू सव्वभावेणं, सव्वहा परिवज्जए॥ ६ ॥ सत्वं सल्लं विसं जंतं, मज्जं वालं दुभासणं । बज्जे तो तंणिमेणं, दोसेण ण ॥ विलप्पति ॥७॥ आत परं च जाणेज्जा, सव्वभावेण सव्वथा । आय€ च पर8 च, पियं जाणे तहेवय ॥ ८॥ सप गेहे पलितमि, किं धावसि परातक। सयं गेह णिरित्ताण, ततो गच्छे परातकं ॥ ६॥ आतडे जागरो होहि, मा परद्वाहिधारए । आतट्ठो हाबए तस्स, जो परद्वाभिधारए ॥१०॥ जइ परो पडिसेबेज्ज, पावियं पडिसेवणं। तुझ मोणं करें तस्स, के अट्टे परिहायति ? ॥ ११॥ आतहो णिज्जरायतो, परद्वो कम्मबंधणं । अत्ता समाहिकरणं, अप्पणो य परस्स य ॥ १२ ॥ अण्णातयंमि अट्ठालक मि, किं जग्गिएण वीरस्स। णियगंमि जग्गियब, इमो हु बहुचोरतो गामो ॥१२॥ जग्गाही मा सुचाही माहु ते धम्मचरणे पमत्तस्स । काहिंति बहु चोरा; संजमजोगेहि डाकम्मं ॥ १३ ॥ (जोगे हिट्ठा० प्र०) पंचेंदियाई सपणा दंड सल्लाई गारवा तिषिण। बावीस व परीसहा चोरा दीप अनुक्रम [३८७४०६] ~55 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ||१-१९|| दीप अनुक्रम [३८७ ४०६] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन - [३५], .......... मूलं [१] / गाथा [१-१९] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि”-मूलं [३५] 'अद्दालईज्ज' अध्ययनं (वर्तते) तरिय कसाया ॥ १४ ॥ जागरह णरा निच्च मा मे भ्रम्मचरणे पमत्ताणं । काहिंति बहू बोरा दोगतिगमणे हिडकम् ॥ १५ ॥ अण्णायक अट्टालकम जग्गंत सोर्याणज्ञोऽसि णाहिसि वणितो संतो, ओसहमुल्ल अदितो ॥ १६ ॥ जिच्च जागरमाणस्स जागरति सुतं जे सुवति न से सुहिते, जागरमाणे सुही होति ॥ १७ ॥ जागरंत मुणि धीर, दोसा कज्जेति दूर ओ जलंत जाततेयं वा, चक्खुसा दाहभीरुणो ॥ १८ ॥ एवं से सिद्धे० ॥ ३५ ॥ अद्दा लइजमायण' ।। ३५ ।। जागरह परा -----X-----X-----X-----X----- ~56~ | || 3 || Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि .... अध्ययन-[३६], ........मूलं H / गाथा [१-१८] .... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं | [३६] 'तारायणिज्ज' अध्ययनं प्रत सूत्रांक नाममायण H गाथा ||१-१८|| 4088 सिदिः। ततो उप्यतता उप्पतता उप्पयंतपि तेण वोच्छामि । किं संत बोच्छामिण संत' वोच्छामि कुक सया ॥१॥ तारायणिक ॥३२॥ | वित्तेण तारायणेण अरहता इसिणा बुइत-पत्तस्स मम य अन्नेसिं, मुको को ( वो) दुहावहो ? । तम्हा खलु उप्पत'त', सहसा कोवं णिगिऋषिभाषि- हितव्यं ॥१॥ कोवो आगी तमो मच्यू, विसं वाधी अरीरयो । जरा हाणी भयं सोगो, मोहं सल्लं पराजयो ॥२॥ वहिणो ण तेषुः पलं छित्त, कोहग्गिस्त पर पलं। अप्पा गती तु वहिस्स, कोवग्गिस्सऽमिता गती ॥३॥ सक्का यही णिधारत', वारिणा जलितो। बहि । सब्बोदहिजलेणावि, कोवग्गी दुपिणवारओ ॥४॥ एकं भवं दहे वण्ही, बस्सवि सुह भये। इमं परं च कोबागी, णिस्संकं दहते भव ॥ ५॥ अग्गिणा तु इह दहा, सतिमिच्छति माणवा। कोहग्गिणा तु दड्डाणं, दुक्ख' संति पुष्णोविहि ॥६॥ सक्का तमो निवारेत, मणिणा जोतिणावि बा। कोवं तमो तु दुज्जेयो, संसारे सव्वदेहिणं ॥ ७॥ सत्तं बुद्धी मतो मेघा, गंभोरं सरलत्तणं ।। कोहागहऽभिभूयरस, सम्यं भवति णिप्पमं ॥ ८॥ गंभीरमेरुसारेऽथि, पुळा होऊण संजमे। कोवुग्गमरयो धूते, त (अ) सारत्तमतिच्छति ॥ ६ ॥ महाविसे बहीदित्त, चरे दत्त'कुरोदये। चिट्ठ चिट्ठ स संते, णिव्यसत्तमुपागते ॥१०॥ एवं तपोबलत्थेवि, णिच्च कोहपरायणे । अचिरेणवि कालेणं, तबोरित्तत्तमिच्छति ॥ ११॥ गंभीरोऽवि तबोरासी, जीवाणं दुक्यसंचितो। अक्खेवेणं दवग्गीवा, कोवग्गी बहते खणा ॥ १२॥ कोहेण अप्पं बहती परं च, अत्थं च धम्म च तहेव कामं । तिव्यं च वेरपि करें ति कोधा, अधर गति वावि अविति कोहा ॥ १३ ॥ कोवाविद्धा ण यागंति, मातरं पितरं गुरु । अधिक्सिबंति साधू य, रायाणो देवयाणि य ॥ १४ ॥ कोषमूलं णियाति, धणहाणिं बंधणाणि य। पियविप्पयोगे व बहू, जम्माई मरणाणि य ॥ १५॥ जेणाभिभूतो जहती तु धर्म, विद्ध सती जेण कतं च पुण्ण । स तिव्वजोती परमप्पमादो, कोधो महाराज ! णिज्यिव्यो ॥१६॥ 8 करतीह णिरुममाणो भासं ॥३२॥ | करें तोह विमुच्चमाणो। हहु च भासंच समिक्व पपणे, कोचं णिरु भेज सदा जितप्प ॥ १७॥ एवं से सिद्ध ॥३६॥ इति तारायणिज्ज मज्यगं ॥atn % दीप अनुक्रम [४०७४२४] म.३० ~57~ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[३७], .........मूलं [१] / गाथा -1......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [३७] 'सिरिगिरिज्ज' अध्ययन सातपुत्तनान प्रत सूत्रांक [१] गाथा I ऋषिभाषि | सव्वमिणं पुरा उदगमासीत्ति सिरिगिरिणा माहणपरिवायगेण अरहता इसिणा बुइयं-पत्थ अंडे संतत्ते, पत्थ लोए संबूते, | एत्थ' सासासे, इयं णे वरणविहाणा, उभयो कालं उभयो संझ खीर णवणीयं मधुसमिधासमाहारं खोर संख' व पंडिता अन्मिहोत्तकुंदं पडिजागरमाणे विहरिस्सामीति, तम्हा एवं सर्वतिबेमि, गवि माया, ण कदाति णासि न कदाति न भवति न कदाति न भविस्सति य, पडुप्पण्णमिणां सोच्चा सूरसहगतो गच्छे, जत्थे व सूरिये भत्थमेज्जा खेतसि वा णिपणसि वा तत्थेव मां पादुप्पभायाप, रवणीये जाव तेजसा जलते , एवं बु में कप्पति पातीष्णं वा पडिणं वा दाहिणं वा उदीणं वा पुरतो जुगमेत्तं पेहमाणे महारोयमेव रीतित्तए, एवं से सिई बुद्ध विरए विपावे दंते दविए अलंताती, जो पुष्परवि इच्चत्य हवमागच्छतित्तिरेमि ॥३७॥ सिरिगिरिउजनामज्जयां ॥ ३०॥ दीप अनुक्रम [४२५] ~58~ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[३८], .........मूलं | गाथा [१-३०] .... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [३८] 'साईपुत्तिज्ज' अध्ययनं प्रत सूत्रांक H गाथा ||१-३०|| UR दीप अधिभाषि सिद्धि ॥ ॐ सुहेण सुहं लद, अच्छतसुखमेव तं । सुखेण दुहं लद, मा मे लेण समागमो॥१॥ सातिपुत्तेण बुद्धेण अरहता बुइतमणुपणं भोयग भोच्चा, मणुपमा सयणासणं । मणुण्णसि अगारंसि, झाति भिक्खू समाहिए ॥२॥ अमणुण्ण भोयणं भोच्चा, अमणुमां सपणासणे । अमणुगंसि गेहंसि, दुक्खं भिक्खू प्रियायती ॥३॥ एवं अणेगवष्णार्ग, त परिवज्ज पंडिते। णपणस्थ लुभई पण्णे एयं बुधाण सासणं ॥ ४॥ जाणावणेसु सदसु, सोवपचेसु बुद्विधर्म । गेहिं वायपदोसं वा, सम्म बज्जेज्ज पंडिए । ५॥ एवं वेसु । गंधेसु रसेसु फासेसु अप्प पाभिलावे, पंच जागरओ सुत्ता, अप्पदुक्खस्स कारणा । तस्सेव तु विणासाय (पण्णे वट्टिज्ज संतयं ॥ ६॥ वाहिक्खया व दुक्खं वा, सुहं वाणाणदेसियं । मोहक्खयाय एमेवा, दुहं वा जइ वा सुहं ॥७॥ण दुषवण सुई धाथि, जहा हेतु तिगिच्छति। सातिपुत्तज्य तिनिच्छिासु जुसस्स, दुक्ष वां जति वा सुहं ॥ ८॥ मोहक्खएउजुत्तस्स, दुक्ख वा जइ वा सुहं । मोहचए जहा हेऊ, न दुक्ख नविय०३८ वा सुहं ॥३॥ तुच्छे जणमि संवेगो, निव्वेगो उत्तमे जणे। अत्थित्तादीण भावाणं, विसेसो उवसेसणं ॥१०॥ सामण्णे गीतणीमाणा, विसेसे मम्मवेविणी। सव्वण्णुभासिया वाणी, णाणावत्थोदयंतरे ॥ ११ ॥ सव्यसत्तयो वेसो , णारंभो ण परिगहे। सत्तं तवं दयं चेव, भासंति जिणसत्तमा ॥१२॥ दंते दियस्स वीरस्स, किं रणेणऽस्समेण वा ? । जत्य जत्थेव मोहंते, त रणं सो य अस्समो ॥:१३ ॥ किमदंतस्स रपणेण?, दंतस्स व किमस्समे।। णातिकतस्स मेसज्ज, ण वा सत्थस्स भेज्जती ॥ १४॥ सुभावभाकि तप्पाणो, सुष्ण रणं धणंपिवा । सव्वमेत हि माणाय, सल्लचित्तेव सल्लिणो ॥ १५:॥ दुहस्था दुरंतस्स, पाणावत्था पमुंधरा । कम्मादाणाय सम्बंपि, कामाचित्ते व कामिणो ॥ १६ ॥ संमत्तं च दयं चेव, णिण्णिदाणो व जो दो । ततो जोगो य सम्बोधि, सत्यकामवसायंकरो ॥१७॥ साथकं वावि आरंभ, जाणेकजा य णिरत्थकं । पडिहत्थिस्स जो पतो. तई घातिति वारणो॥१८॥ जम्स कज्जस्स जो जोगो, साहेतु जेण पच्चलो। कज्जा बजेति त सव्यं, कामीवा पगमुंडणं ॥ १६ ॥ जाणेजा सर धीरो, ण कोहि देति दुग्गतो । पा सीह कहा S अनुक्रम [४२६४५५] -8484 ECSHREE ~59~ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन-[३८], .......मूलं H | गाथा [१-३०] .... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [३८] 'साईपुत्तिज्ज' अध्ययनं (वर्तते) प्रत सूत्रांक गाथा ||१-३०|| दप्पिय छेयं, क भोज्जा हि अंबुओ॥ २०॥ सपत्थामसंबद्ध , सत्वन्धं वारए सदा । णाणी भरतिपायोग्य, णाल' धाररि बुद्धम ॥२१॥ बंभचारी जति कुल्हो, बज्जेज्ज मोहदीवणं । ण मूढस्स तु वाहस्स, मिगो अप्पेति कं ॥ २२ ॥ पत्थायां चैव रूव'च, णिच्छमि विभावए । किमत्थं गायते चाहो, तुहिक्को वावि पक्खिता ॥ २३ ॥ कज्जणिव्यत्तिपाओग्गं, आदेयं कज्जकारण । मोषवनिव्यत्तिपाओग, विष्णेय । त' विसेसओ ॥ २४॥ परिघारे चेच बसे थे, भाक्ति तु विभावए । परिवारेऽविगंभीरे,, ण राया पीलचूओ ॥२५॥ अत्थादाई जण ॥ ३४ ॥ णे, णाणाचित्ताणुभासके । भत्थादाईणको संगो, दासंतस्सत्वसंतती ॥ २६ ॥ भकप्पं कत्तिसम, णिच्छामि विभाधए । ण खिलामुFL संजइज्जय कारितु, उवचारंमि परिच्छतो ॥ २७॥ सम्भावे दुप्पले जाणे, णाणावण्णाणुभासकं ।: पुष्कादाणेसु गंदा चा, पदकारघरं गता ॥ २८ ॥ वर्ण ३६ दव्यं खेत्ते य काले य, सव्वभाव य सव्वथा। सव्येसिं लिंगजीवाणं, भावाणं तु विहावए ॥२६॥ ॥ एवं से सि० ॥ ३८1दीवायणिज्ज इइ साइपुत्तिज्ज नामभयगं ॥ ३८ ॥ झयण ४० | ॥ ३५ ॥ अपिभाषि- तेषु दीप अनुक्रम [४२६४५५] ~60~ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[३९], .........मूलं [१] / गाथा [१-५] ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [३९] 'संजइज्ज' अध्ययनं प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||१-५|| सिद्धिः । जे दु (ब) में पावकं कम्म',णेव कुज्जा ण कारवे । देवावि त णमंसंति, धितिम दित्ततेयसं ॥१॥ जे गरे कुव्वती पावं, अंधकार मह करे। 'अणवजं पंडिते किच्या, आदिच्चेव पभासती ॥२॥ सिया पावं सई कुज्जा, तण कुज्जा पुणो पुणो। णाणि काम व गं कुज्जा, साधुकम्म चियाणिया ॥३॥ सिया कुज्जा तं तु पुणो पुणो से निकाय च ण फुज्जा, साहु भोज्जो विजायति, रहस्से खलु भो पावं कम समज्जिणित्ता दव्यो खेत्तओ कालओ भावो कम्मो अज्भवसायमी सम्म अपलियंच&माणे जहत्य' आलीपज्जा, संजएणं अरहता इसिणा बुइत'-णवि अस्थि रसेहि भइपहि, संवासेण य भद्दपण य । जत्य मिए काणणोसिते, उघणामेति वहाए संजए ॥ १ ॥एवं से सि०॥ ३६॥ संजइज्जं नामज्झयणं ॥ ३६॥ दीप अनुक्रम [४५६ ४६१] ~61 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [3] गाथा ॥१-६॥ दीप अनुक्रम [४६२ ४६८] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[४०], .......मूलं [१] / गाथा [१-६] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि" - मूलं ॥ ३६ ॥ [४०] 'दीवायणिज्ज' अध्ययनं सिद्धि० ॥ इच्छमणिच्छं पुरा करेज्जा दीवायणेण अरहता इसिणा बुइत इच्छा बहुविधा लोए, जए बद्धो किलिस्तति । तम्हा इच्छमणिच्छाए, जित्ता सुमेधती ॥ १ ॥ इच्छाभिभूया न जाणंति, मातरं पितरं गुरुं । अधिविश्ववंति साधू य, रायाणी देवाण य ॥ २ ॥ इच्छमूलं नियच्छति, घणहाणिं बंधणाणि य। पियविप्पलगे य बहु, जम्मा मरणाणि य ॥ ३ ॥ इच्छते च्छिते. इच्छा, अि पिच्छति। वाच्छं अणिच्छा, जिपित्ता सुमहती ॥ ४ ॥ दन्दओ खेत्तओ कालो भावनो अहाथामं जहाबलं । अधाविरियं भणिगृहंतो आलोएज्जासिति ॥ ५ ॥ एवं से सिद्धे० ॥ ४० ॥ इह दीवायणिज्जमज्पणं ॥ ४० ॥ ~62~ ॥ ३५ ॥ इंदनागिकाम Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[४१], .........मूलं | गाथा [१-१६] .... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [४१] 'इंदनागिज्ज' अध्ययनं प्रत सुत्रांक गाथा ||१-१६|| दीप अनुक्रम [४६९४८४] .. सिद्धि॥ जेसिं आजीवतो अप्या, पराणं बलदसणं । तवं ते आमिस किच्चा, जणा संणिचत जणं ॥१॥ विकीत तसि सुकडं तु तच णिस्साए जीवियं । कम्मचट्ठा भजाता.वा, जाणिका ममका सढा ॥२॥ गलुच्छित्ता आसातव, पच्छा पावं ति वेवणं। अणागतमपस्सता, पच्छा सोबती दुम्मती॥३॥ मच्छा व झीणपाणीया, कंकाणं घासमागता । पच्चुप्पण्णरसे गिद्धा, मोहमल्लपणोल्लिया ॥४॥ दिन्नं पावंति उह', वारिमज्ञ व वारिणा। आहारमेत्तसंवद्धा, कज्जाकउजणिमिल्लिता ॥५॥ णिक्षिणो घतकुम्मे वा, अवसा पावे ति सखय' । मधु पावेति तुवं दी, पवात से (ण) पस्सति ॥ ६ ॥ आमिसत्थी भसो चेव, मम्गत अप्पणा गलं । आमिसत्थीचरित्तं तु, जीवे हिंसति दुम्मती ॥ ७॥ अणायं यं मणिं मोत्त, सुत्तमत्ताभिनंदती। सन्वष्णुसासणं मोत्तुं, मोहादीए हिं हिंसती ॥ ८॥ सो-अमचेण विसं गेभी, जाणं तत्थेव जुंजती । आजीवत्थं तवो मोत्तुं, तप्पते विविहं बहु॥॥ तवणिस्साए जीवंतो, तवाजीवं तु जीवती । णाणमेवोवजीवतो, चरित्तं करणं तहा ॥१०॥ लिंग च जीवणवाए, अविसुद्धति जीती। विज्जामंतोपदेसेहिं दूतीसंपेसणेहि वा ॥११॥ भावीतबोबदेसेहि, अविसुध्दति जीवति । मूलकोउयकम्मेहि, भासापणइएहि या ॥ १२॥ अक्खाइओवदेसेहि, अविसुध्दं तु जीवति । इंदनागेण अरहता इसिणा बुइत - मासे मासे व जो बालो, कुसम्गेण आहारए। ण से सुक्खाय धम्मस्स, आघती सतिम कल ॥१३॥ मा ममं जाणऊ कोयी, माह जाणामि किंचिति । अण्णातेणऽत्य अण्णात, चरेज्जा समुदाणिय ॥१३॥ पंचवणोमगसुद्धं जो भिक्ख' एसणाए एसेज्जा । तस्स सुलद्धा लाभा हणणादीविप्पमुक्कदोसस्स ॥ १४॥ जथा कवोता | य कविंजला य, गावो चरती इह पातडायो। पवं मुणो गोयरिय' चरेज्जा, णोची लवे णोविय संजलेज्जा ॥१५॥ ॥वं से सिद्धे० ॥४१॥ इइ इंदनागिज्जज्झयणं ॥ ४१ ॥ [192.93 ~63~ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ...... अध्ययन-[४२], .........मूलं [१] / गाथा [१] ........ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [४२] 'सोमिज्ज' अध्ययनं प्रत सूत्रांक ४.७1०५ सिद्धि० । अप्पेण बहुमेसेजा, जेट्ठमझिमकण्णसं । णिरवाजे ठितस्स तु णो कप्पति पुणरवि सावज सेवित्तए, सोमेण अरहता ४४-४५ द इसिणा चुइतं । एवं से सिद्ध०॥ ४२ ॥ इइ सोमिजं नामज्झयण ॥ ४२ ॥ शिमोमाइणि गाथा ||१|| दीप अनुक्रम [४८५ ४८६] ~64~ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ....... अध्ययन-[४३], .........मूलं 1 / गाथा [१-२] .. पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि-मूलं [४३] 'जम' अध्ययनं प्रत सूत्रांक ७ सिद्धि । लाभंमि जे ण सुमणो,अलाभे णेव दुम्मणो । से हु सेढे मणुस्साणं, देवाणं व सयकका ॥ १ ॥ जमेण अरहता इसिणाNI अझय18 बुइत । एवं से सिद्धे०॥४३ ॥ इइ जमनामायणं ।। ४३ ॥ गणाणि. गाथा ||१-२|| दीप अनुक्रम [४८७४८८] ~65 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक H गाथा ॥१-२॥ दीप अनुक्रम [४८९ ४९०] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..मूलं [-] / गाथा [१-२] अध्ययन - [४४ ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि" - मूलं [४४] 'वरुण' अध्ययनं दाहिं अंगेहिं उप्पीतेहिं आता जस्स ण ओप्पीलति । रागंगे य व दोसे य से हु सम्यं नियच्छती ॥ १ ॥ वरुणेणं अरहता इसिणा बुझतं ॥ एवं से सिद्धे ॥ ४४ ॥ · IS1 66~ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य ......... [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[४५], .........मूलं H | गाथा [१-५५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [४५] 'वेसमणिज्ज' अध्ययनं प्रत सूत्रांक H गाथा ||१-५५|| सिद्धि । अप्पं च आउं इह माणवाण, सुचिरं च कालं णरएसु वासो। सत्वे व कामा णिरयाण मूलं, को णाम कामेसु बुहो रमेज्जा १ ॥१॥ पावं ण कुजा ण हणेज्ज पाणे, अतीरमाणो व रमे कदायी । उच्चावहिं सयणासणेहिं, वायुब जालं समतिकमज्जा ॥२॥ वेसमणेणं अरहता इसिणा बुइत-जे पुमं कुरुते पार्व, ण तस्सऽष्पा धुवं पिओ । अप्पणा हि कडं कम्मं, अपणा चेव भुज्जती g॥३॥ पावं परस्स कुव्यतो, हसते मोहमोहितो । मच्छो गलं गसंतो वा, विणिराय ण पस्सति ॥ ४ ॥ परुचुप्पण्णरसे गिद्धो, मोहमल्लप्पINोल्लितो । दित्तं पावति उकंठ, वारिमज्मे व वारणो ॥५॥ परोवघाततलिच्छो, दप्पमोहबलुदरो । सीहो ज(न)रो दुपाणे वा, गुणदोसंण विदती 18॥६॥सवसो पार्य पुरा फिस्चा, दुक्खं वेदेति दुम्मनी । आसत्तकंठपासो वा, मुकधारो दुट्टिओजापावं जे उ पकुव्वंति, जीवा सोताणुगामिणो । वइंढते पावकं तेसि, अणग्गाहिस्स वा अणं ॥८॥ अणुबंद्धमपस्खता, परचुप्पण्णगवेसका । ते पच्छा दुक्खमच्छति, गलुच्छित्ता जधा ॥३७॥ दीप . . .. . ४४-४५ अनुक्रम [४९१५४५] इसिभासि-ठा भसा ॥ ९ ॥ आता कडाण कम्माण, आता भुजतिजं फलं । तम्हा आयस्स अट्टाए, मोघमादाय वजए ॥ ११ ॥ जे हुंवा जं .४२-४३ विवज्जेति, जं विसंवाण (जेहिं सद्धिं च) भुंजति । जण गेहति वाचालं, णूणमात्थ ततो भयं ॥१२॥ धावतं सरिसं तारं, सच्छे दादि (च) सिंगिणं । दोसभीरू विवजेती, पावमेवं विवज्जए ॥ १३ ॥ पावकम्मोदयं पप्प, दुक्खतो दुक्खभायणं । दोसा दोसोदई चेव, पावे कुज्जास सोमाईणि ॥३८॥ पसूयति ।। १४ । उब्विवारा जलाहंता, तेतणीए मतोद्विता । जीवितं वावि जीवाणं, जीवति फलमंदिरं ।। १५ ।। देज्जा हि जो मरंतस्स, INणाणि. सागरतं वसुंधरं । जीवियं वावि जो देजा, जीवितं तु स इच्छती ॥ १६ ॥ पुत्तं दारं धणं रज्ज, विज्जा सिप्प कला गुणा। जीविते सति जीवाणं, जीविताय रती अयं ॥ १७ ॥ आहाराकिं तु जीवाण, लोए जीवाण दिक्जती । पाणसंधारणहाय, दुक्खाणिग्गहणा जहा ॥ १८ ॥ सत्येण वहिणा वावि, खते दट्टे व वेदणा । सए बेहे जहा होति, एवं सब्बसि देहिणं ॥१९॥ पाणी य पाणिघात च, पाणिण च पिया दया । सब्वमेत विजाणित्ता, पाणिघातं विवज्जए । २० ।। अहिंसा सव्वसत्ताणं, सदाऽणिब्बेयकारिका । अहिंसा सब्बसत्तसु, परं बंभमाणिदियं है। | ॥२१॥ देविंदा दाणविंदा य, गरिंदा जेवि विस्सुवा । सम्बसत्तदयोवत, मुणिसं पणमति ते ॥२२॥ तम्हा पाणयट्ठाए, नेलपत्तधरो जथा । ~67~ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [-] गाथा ॥१-५५॥ दीप अनुक्रम [४९१ ५४५] [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन - [४५], .. मूलं [-] / गाथा [१-५५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) “ऋषिभाषित-सूत्राणि”-मूलं [४५] 'वेसमणिज्ज' अध्ययनं (वर्तते) इसिमासि एस ॥ ३९ ॥ --------- ॥ एगो ( माय) मणीभूतो दयत्थी विरहे (हरे) मुणी ॥ २३ ॥ आणं जिणिदभणितं सव्वशाणुग मिणि । समचित्ताऽभिणदिता, मुहचंती सव्वबंधणा ॥ २४ वीतमोहस्स दंतस्स, धी ( इ ) मंतस्स भासितं । जे जरा णाभिणंदति, ते धुवं दुक्खभायिणो ।। २५ ।। जेऽभिदति भाषेण, जिणाणं तेसि सव्वधा । कहाणाइ सुहाई च, रिद्धिओ य ण दुल्हा ।। २६ ।। मणं जथा रम्म मणं, णाणाभावगुणोदयं । फुलं व परमिणीसंड, सुतित्थं गाहवज्जितं ॥ २७ ॥ रम्मं मतं जिनिंदाणं, णाणाभावगुणेादयं । कस्य ण पिये होजा ? इच्छिय व रसायण ॥ २६ ॥ तण्हातो य सरं रम्मं, वाहितो वारुणाधरं । छुहितो व जहाऽऽहारं रणे मूढो व बंदियं ॥२९॥ वहि सीताहतो वावि, शिवायं वाऽणिलाइतो । तातारं वा भब्बिग्गो अणत्तो व धणागमं ॥ ३० ॥ गंभीरं सव्वतोभदं हेतुभंगणयुज्जलं । सरणं पयतो मण्णे, जिनिंदवणं तहा ॥ ३१ ॥ सारदं वा जलं सुद्धं, पुण्णं वा ससिमंडलं । जब्वमाणिं अहं वा, थिरं वा मेतिणीतलं ॥ ३२ ॥ साभावियगुणोयेतं, भावते जिणसासणं । ससितारापच्छिष्णं, सारदं वा णभंगणं ॥ ३३ ॥ सव्वण्णुसासणं पप्प, विष्णाणं पवियंभते । हिमवंतं गिरिं पप्पा, तरूणं चारुचामगं ॥ ३४ ॥ सत्तं बुद्धी मती मेघा, गंभीरतं च बहूती ओसधं वा सुई कंते, जुज्जए बलबीरियं ॥ ३५ ॥ पयंडस गरिदस्स, कंतारे देसियस्स य आरोग्गकारणो चेव, आणाकोहो दुहावहो || ३६ || सासणं जं गरिंदा उ कंतारे जे य देसगा । रोगो घातो य बेज्जातो, सव्वमेतं हिए हियं ॥ ३७ ॥ आणाकोबो जिदिस्स, सउष्णस्स जुतीमतो । संसारे दुक्खसंगाडे, दुत्तारो सम्यदेहिणं ॥ ३८ ॥ तेलोसार गुरुअं, धीमतो भासितं इमं । संमं कारण फासेत्ता, पुणो न विरमे ततो ॥ ३९ ॥ बद्धविध जथा जोधो, वम्मारुढो थिरायुध । सीहणायं विमुचित्ता, [वि] पलायंतो ण सोभती ||४०|| अगंधणे कुले जातो, जधा णागो महाविसो | चित्ता सविसं भूतो, पिर्यंतो जाति लाघवं ॥ ४१ ॥ जधा रुप्पिकुलुब्भूतो, रमणिज्जंपि भोयणं । तं पुणो स भुंजतो, धिद्धिकारस्स भाषणं ।। ४२ ।। एव य जिजिदआणाए, सल्लुद्धरणमेव य। णिग्गमो य परित्ताओ, सुहिओ सुहमेव तं ॥ ४३ ॥ इंदासणी ण तं कुब्जा, दितो वही अणं सरी । आसादिज्जत संबद्धो, जं कुज्जा रिद्विगारो ॥ ४४ ॥ विसगाई सरछूटं विसं वामणुजोजितं । सामिसं वा 68~ ॥ ३८ ॥ अज्झयगाणं तयत्थाणं व संग्रहणी Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन-[४५], .........मूलं | गाथा [१-५५] .... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [४५] 'वेसमणिज्ज' अध्ययनं (वर्तते) प्रत सूत्रांक गाथा ||१-५५|| INणदीसोय, साताकम्म दुहंकरं ॥ ४५ ॥ कोसीकितेव्वऽसी तिक्खो, भावच्छण्णो व पावओ । लिंगवेसपलिच्छण्णो, अजियप्पा तह। पुमं 41 ॥४६॥ कामा मुसामुही तिक्खा, साता कम्माणुसारिणी । तण्हं सातं च सिग्धं च, तण्हा छिंदति देहिणं ॥४७ ॥ सदेवोरगगंधवं, ॥३९॥ सतिरिक्खं समाणुस । चत्तं तेहिं जगं किच्छ, तपहाए सणिबंधणं ॥ ४८ ॥ अक्खोवंगो वणे लेवो, तावणं जे जस्स य । णामणं उसुणो इसिभासि-13 च, जुर्ति तो कज्जकारणं ॥ ४९ ॥ आहारादी पडीकारो, सव्वण्णुवयणा हितो । अप्पा हु तिव्ववण्डिस, संजमहाए संजमो ॥ ५० ॥ अज्झयएसु हेमं वा आयसं वावि, बंधणं दुक्खकारणा । महम्घस्सावि हंडस्स, णिवाए दुक्खसंपदा ॥ ५१ ॥ आसज्जमाणे दिव्बंमि, धीमंता णाणं कज्जकारणं | कत्तारे अभिचारित्ता, विणियं देहधारणं ॥ ५२ ।। सागरे णावणिज्जोको, आतुरो वा तुरंगमे । भोयर्ण भिज्जएहि वा, तयत्थाण ॥४०॥ जाणेज्जा देहरक्खणं ।। ५३ ॥ जात जातं तु बीरिय, सम्मं युज्जेज्ज संयमे | पुष्फादीहि पुष्फाण, रक्खेतो आदिकारण ॥ ५४॥ एवं से सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दंते दविए अलं ताती णो पुणरवि इच्चत्थं हब्वमागच्छतित्तिमि ।। ५५ ॥ वेसमणिज्ज नाम अज्झयणं ।। ५६ ॥ दीप अनुक्रम [४९१५४५] -----X-----x---x-----x [इसिभासियाई संमतानि] ऋषिभाषित-सूत्राणि समाप्तानि ~69~ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन--1, .........मूलं H I गाथा ] ..... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं __ ऋषिभाषित संग्रहणि प्रत सूत्रांक गाथा I-II ___ पत्तेयबुद्धमिसिणो वीस तित्थे अरिहणेमिस्स | पासस्स य पण्णरस वीरस्स बिली णमोहस्स ॥ १ ॥णारद १ वज्जितपुत्ते २ असिते ३ अंगनिसि ४ पुष्फसाले ५ य । बकल ६ कुंमा ७ केयलि ८ कासव ९ तह तेतलिसुते १० य ॥२॥ मंखलि ११ जण १२ भयाली १३ बाहुयमा १४ सोरियाण १५ बिदू १६ पिंपू १७ । बरिसे कण्हे १८ आरिय १९ कालवादा य २० तरुणे २१ व ॥ ३ ॥ गद्दभ २२ रामे २३ य तहा हरिगिरि २४ अंबड २५ मयंग २६ वारत्ता २७। तंसो य अदए २८ वद्धमाणे २९ वाऊ ३० य तीसतिमे ॥४॥ पासे ३१ पिंगे ३२ अरुणे ३३ इसिगिरि ३४ यहालए ३५ य वित्त ३६ य | सिरिगिरि ३७ सातिवपुत्ते ३८ संजय ३९ दीवायणे व ४०॥4॥ तत्तो य इंदणागे ४१ सोम ४२ यमे ४३ चेव हे इवरुणे ४४ य । वेसमणे ४५ व महप्पा चत्ता पंचेव अक्खाए।।६।। इसिभासियाणं संगहणी संमत्ता ।। सोयव्वं १ जस्स २ भवि लेवे ३ आदाण रक्खि ४ माणे ५ य । तम ६ सव्वं ७ आराए ८ जाव य ९ सद्धेय १० णव्वेय ११ ॥१॥ लोगेसणा १२ किमत्थं १३ जुत्तं १४ साता १५ तथैव विसये १६ व । विज्जा १७ वजे १८ आरिय १९ उकाल २० गावि इसिभासि31जाणामि २१ ॥ २ ॥ पडिसाडी २२ ठवण दुवे मरणे २३ सय २४ तहेव वंसे य २५ । धम्मे २६ य साहु २७ सोते २८ सर्वति२९ द अहसव्वतो ३० समे लोए ३१ ॥३॥ किसि ३२ बाळे य ३३ पंडित सहणा ३४ तह कुप्पणा ३५ य योद्धया । उप्पत ३६ वदय IN३७ य मुख्या ३८ पाये ३९ तह इच्छणिच्छा ४० य ॥ ४॥ आजीवओ ४१ य अप्पा जेण य एसितथ्य बहुयं तु ४२ लाभे ४३ यो| ॥४॥ ठाणेहि य ४४ अप्पं पापाण हिंसायु ४५ ॥ ५॥ इसिभासितअस्थाहिकारसंगहणी सम्पत्ता ।। ॥ प्रामाण्यं दीप अनुक्रम - CARREARS । ॥ इति ऋषिभाषितान्यध्ययनानि ससंग्रहणीकानि समाप्तानि ।। ~70~ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ........ अध्ययन--1, .........मूलं / गाथा ......... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं ऋषिभाषित-शास्त्रस्य प्रामाण्यं इसिभासि131 स्थानाङ्गे १० स्थाने-दस दसाओ पं००-१-२-३-४-५-पण्हावागरणदसाओ......... .......पण्हावागरणदसाणं दस प्रामाण्यं 16 अज्झयणा पं० त०- उवमा--संखा-इसिभासियाईxxएतहत्तौ-प्रभव्याकरणदशा इहोक्तरूपा न दृश्यन्ते दृश्यमानास्तु पंचाश्रवपंचसंव-18 रात्मिका इति । इहोक्तानां तु उपमादीनामध्ययनानामक्षरार्थः प्रतीयमान एव । तथा समवायाने॥४२॥ चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया प० देवलोयचुयाणं इसीणं चोयालसिं इसिभासियज्झयणा प० एतवृत्तौ चतुश्चदत्वारिंशस्थानकेऽपि किश्चिल्लिख्यते, चतुश्चत्वारिंशत् 'इलिभासिय' त्ति ऋषिभाषिताध्ययनानि कालिकभुतावशेषभूतानि 'दियलोयचुयाभासिय' ति देवलोकच्युतैः ऋषिभूतैराभाषितानि देवलोकच्युताभाषितानि ।। (कस्यापि प्रत्येकबुद्धस्य अन्यस्याः कस्याश्चिद् गतेरायातत्वमपेक्ष्य पञ्चचत्वाहारिंशतोऽप्यध्ययनानां विवक्षा एकोनतयाऽत्र ) यशोदेवसूरिकृत-पाक्षिकसूत्रटीका [ वीरगणिशिष्यचन्द्रसूरिशिष्या यशोदेवाः][ वि सं.१९८०] |. 'इसिभासियाइ ' न्ति, इह ऋषयः-प्रत्येकबुद्धसाधवस्ते चात्र नेमिनाथतीर्थवर्तिनो नारदादयो विंशतिः पाश्र्वनाथतीर्थवर्तिनः पञ्चदश वर्धमानस्वामितीर्थवर्तिनो दश प्रायाः, वैर्भाषितानि पञ्चचत्वारिंशत्संख्यान्यध्ययनानि श्रवणाद्याधिकारवन्ति ऋषिभाषितानि||अत्र वृद्धसंप्रदाय:सोरियपुरे नयरे सुरंपरो नाम जक्खो, धणञ्जओ मेही, सुभद्दा भज्जा, तेहिं अन्नया सुरवरो विनत्तो-जहा जइ अम्हाणं पुत्तो होहि तोडू तुज्म महिससर्य देमोत्ति, एवं ताणं सजाओ पुत्तो । एत्यंतरे भगवं वदमाणसामी ताणि संबुझिहिन्तिात्त सोरियपुरमागओ । सेट्टी सभज्जो | निग्गओ, संबुद्धो, अणुरुवयाणि । सो जक्खो सुविणए महिसे मग्गइ, तेणवि सेटिणा पिट्ठमया दिण्णत्ति ।। सामिणो य दोन्नि सीसा-धम्मघोसो य धम्मजसो य एगस्स असोगवरयायवस्स हेढा परियट्टिन्ति । ते पुठवण्हे ठिया, अवरण्हेवि छाया | न परियता । तओ को भणह-तुझेसा लद्धी । बिइओ भणहू-तुज्झत्ति । तओ एको काइयभूमि गओ जान छाया ॥४२॥ गाथा SASSOCIEOS ||-II दीप अनुक्रम ~71 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रामाण्य 45 प्रत सूत्रांक [भाग-2] प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ..... अध्ययन--1, ........मूलं ] | गाथा [-] ..... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं ऋषिभाषित-शास्त्रस्य प्रामाण्यं इसिभासि- तहेव अच्छइ, तओ बीओऽवि गओ, तत्थेव महेव अच्छाइ, तेहिं णायं जहा एकस्सवि न लद्धी, तओ सामी पुच्छिओ, भगवया भणिय | जहा इहेव सोरियपुरे समुरविजओ राया आसि, जन्नदत्तो तावसो सोमजसा तावसी, ताण पुत्तो नारओ, ताणि उछवित्तीणि, एकदिवसंमि जेमिन्ति, एकदिवसं उववासं करोन्ति । अन्नया ताणि तं नारयं पुब्वण्हे असोगपायवस्स हेट्ठा ठवेऊण उच्छन्ति । इत्रो य यडाओ वेसमणकाइया तिरियजंभगा देवा तेणन्तेणं वीइवयन्ता पेच्छन्ति तं दारय, ओहिणा 8 आभाइन्ति । सो ताओ व देवनिकायाओ चुओ । तओ ते तस्साणुकंपाए तं छार्य थंभन्तित्ति । एवं सो उम्मुक्कबालभावो | अन्नया तेहिं जंभगदेवेहिं पन्नत्तिमाइयाओ विज्जाओ पाढिओ । तओ कञ्चणकुण्डियाए मणिपाउयाहिं आगासे हिण्डइ । अन्नया बारवर्ड गओ । वासुदेवेण पुच्छिओ-किं सोयति । सो न तरति पडिकहिउँ | तओ अन्नकहाए बक्खेवं काऊण उडिओ, गओ पुब्बविदेहं । तत्थ य सीमंधरं तित्थयरं जुगबाहू वासुदेवो पुच्छइ-किं सोय ?, तित्थगरेणं भणियं-सरुचं सोयंति | जुगबाहुणा एकवयणेणवि सव्वं उबलद्ध, नारओवि तं निसुणित्ता उप्पइऊणं अवरविदेहं गओ । तत्थवि जुगन्धरं तित्थयरं महाबाहू वासुदेवो तं चेव पुच्छइ, भगवयावि तं चेव बागरियं, | महावाहुस्सवि सव्वं उवगयं | नारओवि तं सुणित्ता वारवई गओ वासुदेवं भणइ-किं ते तदा पुच्छियं , वासुदेवो भणइ-किं सोयंति | नारओ भणइ-सकचं सोयति । वासुदेवो भणइ-कि समचंति ?, तओ नारओ खुभिओ न किंचि उत्तरं देइ । तओ कण्हवासुदेवेण भणिय-जत्थेव तं । पुच्छियं तत्थ एयपि पुच्छियब्ब हुन्तत्ति खिसिओ । ताहे नारओ भणइ-सच्चे भट्टारओ न पुच्छिओत्ति, चिन्तेउमाररो, जाई सरिया, संबुद्धो, पढममज्झयणं 'सोयव्यमेव' इच्चाइयं वदति । एवं सेसाणिवि ढब्बाणिति" इत्यादीनि बहून्येषां प्रामाण्यवाक्यानि नन्द्यावश्यकवृत्यादिषु । इति प्रत्येकबुद्धभाषितानि । पञ्चचत्वारिंशदध्ययनानि ।। समाप्तानि ।। ॥४३॥ गाथा ARRESS 11-11 दीप अनुक्रम H ~72~ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषित-सूत्राणि समाप्तानि मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: "ऋषिभाषित-सूत्राणि" मूलं परिसमाप्तम् ~73~ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: भाग-2 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च प्रत्येकबुद्धैर्भाषितानि श्री ऋषिभाषितसूत्राणि (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: "ऋषिभाषित-सूत्राणि” मूलं नाम्ना परिसमाप्त: आगम-संबंधी-साहित्य-श्रेणि, भाग-२ ~74~ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. आजम आग VIRA STROTHE आगम GRIOTT आजम LISTE SHOHI BACION BATMEN आजम BRIGHT 371017 आजम आजम राजस आजम आगम CHMO आजम आगम आजम आगम आजम आजम आगम आगम PITUTE आगम राजमा CHISTE अगम आराम आगर आनं 3707 SUDER आगम वाचना शताब्दी वर्ष गम आराम ~75~ आजम ATMINT आगम enom & GITSTH आगम आज आसरा ही शास आगम भ झण आजम आजार आजम विजय गा Briggs आगम आगम Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आम आज आज नमो नमो निम्मलदसणस्स सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि मूल संशोधक अभिनव-संकलनकर्ता 12 Matineerinternet पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महायजा आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] Roadiesity प्रत-प्राप्ति और पेज सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855198253062757 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघ में श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म० ही है । 1 इस संघ पूज्य साधू -भगवंत एवं साध्वी महाराज के लिए उपाश्रय भी है। जहां हर साल चातुर्मास करवा के श्रावकश्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है । ऐसे सम्यग्-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म आणस मूल संशोधक म पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब आगर आणम आगम आगम आगम प्रत्येकबुद्धभाषितानि "ऋषिभाषितसूत्राणि" मूलं म आज अभिनव-संकलनकर्ता आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी ___[M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] आजम आगम आगम आजम आगमा आजम आगम 78~