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['ऋषिभाषित-सूत्राणि' मूलं ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत सबसे पहले " श्रीमद्भिः प्रत्येकबुद्धैर्भाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि " के नामसे सन १९ २७ (विक्रम संवत १९ ८३) में श्री ऋषभदेव केशरीमलजी नामक संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब |
+ये 'ऋषिभाषित' सूत्र का मूल प्राकृत नाम 'इसिभासिय' है | वर्तमान कालमे इस सूत्र का समावेश ४५ आगमोमें नही दिखता, मगर पक्खीसूत्रमें इस की गिनती 'आगमसूत्र' के रुपमे हुई है | अंगबाह्य सूत्रोमे कालिकसूत्रमे पांचवा कालिकसूत्र 'इसिभासिय' लिखा है | नन्दीसूत्र में ये सूत्र सातवे 'कालिक सूत्र के रूपमे गिनाया है | इस सूत्र का हिन्दी एवं गुजराती अनुवाद भी किसी ने प्रकाशित करवाया है । इस सूत्र (आगम) पर किसीने वृत्ति (अवचूर्णि) भी लिखी है। 'इसिभासिय' सूत्र का संशोधन व संपादन पूज्य पुन्यविजयजीने भी किताब रुपमे किया है ।
+ हमारा ये प्रयास क्यों? + आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पुज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर सूत्र आदि के नंबर लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा सूत्र आदि चल रहे है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके ।
* हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस 1 दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची या 'गाथा' शब्द लिखा है। हर पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट दी है |
* शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणासे और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद | की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'आगम-संबंधी-साहित्य' भाग-२ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है।
... मुनि दीपरत्नसागर.
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