Book Title: Aacharya Shree Tulsi
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 7
________________ तात्पर्य यह है कि गरीबी का अन्त प्रसन्तोष है और सन्तोष ही भयं संख्या का सबसे बड़ा प्रभाव है । संग्रह के जिस बिन्दु पर मनुष्य सन्तोष को प्राप्त होता है, वहीं उसकी गरीबी का प्रश्त हो जाता है । यह बिन्दु यदि पाँच अथवा पाँच हजार पर भी लग गया, तो व्यक्ति सुखी हो जाता है। हमारे देश की प्राचीन परम्परा में तो वे ही व्यक्ति सुखी और समृद्ध माने गए हैं, जिन्होंने कुछ भी सग्रह न रखने में सन्तोष किया है। ऋषि महर्षि, साधु-सन्यासी गरीब नहीं बहलाते थे और न कभी प्रर्थाभाव का दुःख ही व्याप्त था ।"" विज्ञान का युग है । क्षेत्र की दूरी सिमिट रही है, काल की दूरी भी सोमिट रही है, पर मनुष्य, मनुष्य के बीच मनो की दूरी ज्यो की त्यो बनी ही पडी है। अब दूरी को भी सीमित करने का कोई मार्ग है या वह बनी ही हे ? "माज के युग में हम कगार पर खड़े हैं । अन्तरिक्ष युग है। धरती की गोलाई को लेकर सुदूर व्यतीत मे हत्याएं हुई हैं । उसी तथ्य को प्राज का मानव मखों से देख पाया है। इस प्रगति ने मानस को पट भूमि को भान्दो - लित भी किया है । दृष्टि को क्षमता बढी पर मानव का अन्तर मन अभी भी वही है। हिंसा मोर घृणा की बात विवादा| विवेक-बुद्धि भी जागृत हुई है । स्पद मानकर छोड़ भी दें, लेकिन साम्प्रदायिकता और जातीयता, धर्थलोलुपता और मात्सर्य - ये सब उसे भी पूरी तरह जकडे हुए हैं। धर्म, मत अथवा पंथ में न हो, राजनीति और साहित्य में हो, तो क्या उसका विष श्रमृत बन सकता है ? भले ही हम चन्द्रलोक में पहुँच जाएं अथवा शुक्र पर शासन करने लग । उस सफलता का क्या अर्थ होगा, यदि मनुष्य अपनी मनुष्यता से ही हाथ धो बैठे ? मनुष्यता सापेक्ष हो सकती है, परन्तु दूसरे के लिए करने की कामनायें, मर्थात् 'स्व' को गोण करना स्व को उठाना है ।" " प्राधिक प्रगति वर्तमान समाज का एक प्रनुपेक्षणीय उद्घोष है । संयम प्रगति को सीमा रेखा है । नवोदित समाज में संयम और प्रगति का सहभस्तित्व एक प्रश्न चिह्न है । पर हम देखेंगे, इस प्रश्न चिह्न के सामने उत्तर भी अपना पूर्ण विराम लिये सड़ा है। "यह सच है कि दरिद्रता अच्छी चीज वयं एक सम्धा भाग १. पृष्ठ १२-१४६ ० सेठ गोविन्ददास के पोषक, प्रचारक व उन्नायक, भा० १, पृष्ठ ४८०४१; लेखक श्री विष्णु प्रभाकर

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