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अर्थ- माटे जे लोक अति परिणामी छे एटले एक निवें मार्गज आदरयो के ते पोतेज आ स्तवनमां आगल कहेशे जे - "भेदलव जाणतां केइ मारग तजे, होय अति परिगति परसमय स्थिति भजे ।" वली केटलाक लोक ते नहीं परिणामी के केवल व्यवहारनेज आदरे छे ते क्रिया व्यवहारमां राता पण निवें मार्ग जाणताज नथी ते पण पोतेज आ स्तवनमां आगल कहेशे - " केइ नवी भेद जाणे अपरिणतमती, शुद्धनय अतिहि गंभीर छे ते वती ।" ए वचनथी तो एम जाणीयें छैयें जे अतिपरिणति ते निश्चयवादी अने अपरिणति ते व्यवहारवादी तथा विशेषावश्यक मध्ये तो वृत्तिकारें एम लख्यु छे जे - "इह शिष्यात्रिवि - धास्तद्यथा अपरिणामा अति परिणामाः परिणामाचेति । तत्राऽविपुलमतयोऽगीतार्था अपरिणतजिनमतरहस्या अपरिणामाः, अतिपरिणामा अतिव्याप्तापवाददृष्टयोऽतिपरिणामाः, सम्यक्परिणतजिनवचनास्तु मध्यस्थवृत्तयः परिणामाः । तत्र ये अपरिणामास्ते नयानां यः खखआत्मीयआत्मीयविषयो ज्ञानमेव श्रेयः क्रिया वा श्रेय इत्यादिकस्तमश्रद्धानाः येत्वतिपरिणामाः तेपियदेवैकेन नयेन क्रियादिकं वस्तुप्रोक्तं तदेतन्मात्रं प्रमाणतया गृण्डतः ।" इत्यादिक लख्युं छे इहां तो पूर्वोक्त अर्थ पण लागे छे तथा महाभाष्योक्त अर्थ पण लागे छे वली विशेष बहुश्रुत कहे ते खरं इतिभाव - एहवा अतिपरिणामी तथा नहीं परिणामी जे लोक छे तेहने नितें क० न्यायमार्ग स्याद्वादमार्ग देखाडी गुरु समजावे छे अथवा निते के० निरंतर देशनायें करी समजावे छे ते कोण समजावे के गुरु के० गुरु समजावे छे एम वृहत्कल्पभाग्यमां वचन छे ते मनमां भावीनें कहे छे. यतः - " अइपरिणइ अपरिणइ, दुहंचि मग्गं जणो पणासंति । तम्हा देसणमाइक्खई, सुहगुरू मग्गरख्कष्ठा ॥ १ ॥ १८ ॥
खल वयण गणे कुण सूरा, जे काढे पयमां पूरा |
तुज सेवामां जो रहीयें, तो प्रभु जश लीला लहीयें ॥ १९ ॥
अर्थ- माटे देशना न देवी विगेरे खललोकनां वचनने कोण शूरवीर पुरुष गणे के०कोण गणतीमां आणे एटले शुरवीर तेने गणतीमां आणताज नथी. जे खलपुरुप छे ते पय के० दूधमांथी पण पूरा काढे छे माटे जे देशना गुणकारी छे तेहने अहितकारी कहेछे तो हे प्रभुजी तेहनां वचन लेखामा गणीयें नहीं अने तुजसेवामां रहीयें के० तमारी आज्ञा पालीयें एटले तमारी आज्ञा एवी रीतें छे जे देशना आपतां लाभज थाय छे. माटे देशना आपबी ए आज्ञा पालनरूप तमारी सेवा छे ते सेवामां जो रहियें तो जशलीला पामीये. इतिभाव ॥ १९ ॥ ए चोथी ढालने विषे खललोके गुणवंतने दूषण दीधा तेहना समाधान करचा. हवे पांचमी ढालमां खललोक निर्गुणी छतां पोताना आत्माने गुणकारी माने छे तेने दोष दीये छे ते संबंधे पांचमी ढाल कहे छें ॥ १९ ॥
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