Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala
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(६५)
वृत्त्यादिक अणमानता, सूत्र विराधे दिन; जि० ।
सूत्र अरथ तदुभय थकी, प्रत्यनीक कह्या तीन ॥ जि० तुझ० ५ ॥
अर्थ - वली हत्त्यादिक के० वृत्ति चूर्णि भाप्यने अनुसारें प्रकरण चरित्रादिकने अणमानताथका ते दीन के० भावदया करवा योग्य मुत्रनेज विराधे छे, मूत्रनीज आशातना करे छे. समवायांगमूत्रे तथा नंदिमत्रे कां छे - "आयारेणं परित्ता वायणा संक्खेज्जा अणुओगद्वारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा मिळोगा संखेज्जाओ निज्जुत्सीओ संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ" इत्यादिक कयां छे तेमाने नहीं तेवारें मृत्रने विराधेज छे. वली १ सूत्र प्रत्यनीक २ अर्थ प्रत्यनीक ३ तदुभय प्रत्यनीक ए श्री ठाणांगमृत्रे कथा छे. यतः- “सुयं पच नओ पडिणीया पनना तंजा - मुत्तपडिणीए अत्थपडिणिए तदुभयपडिणीए " ए त्रीजा टाणाना चोथा उद्देगें कां छे. एमज भगवतीमुत्रना आठमा गतकना आठमा उहेगामां क , तो अर्थ प्रत्यनीक ते नियुक्त्यादिक जे नथी मानता तेने कहीयें तेशिवाय अर्थ प्रत्यनीक तथा तदुभय प्रत्यनीक ने वीजा कोने कहींय ते बतावो ॥ ५ ॥
अक्षर अर्थज एकला, जो आदरता खेम; जि० ।
भगवइ अंगे भापिओ, त्रिविध अर्थ तो केम ॥ जि० तुझ० ६ ॥ अर्थ- जो केवल एकलो अक्षरार्थ मानीयें एटले जेटलं मत्र तेटलोज गब्दार्थ आदरीयें मानीय अने नेम मानता तमने खेम के० कुशल हे तो भगवतीमृत्रमां त्रिविध के० त्रण प्रकारे व्याख्यान अर्थ कडेवो को ले ते केम घटे तथा अनुयोगद्वारे वे प्रकारे अनुगम को छे “मुत्तागमे य निज्जुत्तिअणुगमे य" तथा "निज्जुत्तिअणुगमे तिविहे पत्ते तंजानिक्खेवनिज्जुतिअणुगमे उवग्धायनिज्जुत्ति अणुगमे" इत्यादिक तथा 'उडेसे निडेसे निग्गमे कालपुरिसे 'ए गाथा अनुयोगद्वारमां छे तेना अर्थ केम करशो. इति भावः ॥६॥ सूत्र अरथ पहेलो वीजो, निज्जुत्तीये मीस; जि० ।
निरविशेष श्रीजो वली, इम भाषे जगदीश ॥ जि० तुझ० ७ ॥
अर्थ-तेज त्रण प्रकारनुं व्याख्यान देखाडे छे. प्रथम मुत्रनो गव्दार्थ शिष्यने देवो, जेम नमी के० नमस्कार थाओ अरिहंताणं के०अरिहंत राग द्वेषरूप शत्रु हण्या माटे. ते शब्दार्थ सारी रीते आवड्यो ते वारे वीजो के बीजीवार अर्थ कहे ते निज्जुत्तियें मीस के० नियुक्ति सहित अर्थ कहे हे शिप्य ते अरिहंत चार प्रकारना छे. नाम, स्थापना, द्रव्य अने भाव भेदें. यतः -" नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा पुण जिणंदपडिमाओ । दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ॥ १ ॥ " इत्यादिक एम बीजी वार अर्थ आवड्यो पछी त्रीजी वार फरी एज पदनो अर्थ निरविशेष के० समस्त रीते कहे एटले प्रसंगे प्रसंगे सर्व कहे नैगमादिक नय पण शक्ति होय तो फलावे तेना साधन कहे. उदाहरण जे अरिहंतने नमस्कारनुं फल कहे इन्यादिक एटले ए भाव जे प्रथम अर्थमां टीका, चूर्णि अने वीजा

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