Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 274
________________ (१०८) क्रिया रहित गीतार्थनो वैयावच्च करे एम उपदेशमाला मध्ये कधूछे. यतः-"हीणस्सवि मुद्धपरुवगस्स, नाणाहियस्स कायव्वं । जणचित्तग्गहणत्य, करिति लिंगावसेसेवि ॥१॥॥१५॥ किरियानये पण एक बालते, जे लिंगी मुनि रागी । ज्ञानयोगमा जस मन वरते, ते किरिया सोभागी ॥ धन्य० १६ ॥ अर्थ-जे क्रियानयनी अपेक्षायें बाल छे एटले क्रियावंत नथी शिथिल क्रियावंत छे एवा ने लिंगी के. केवल साधु लिंग मात्र राखे छे पण जो मुनि रागी के० गुणवंत मुनिना रागी छे एटले पोते गुणवंत नयी पण गुणीना रागी छे ते पोते पण ज्ञानी थाय ते माटे कहे छे जे ज्ञानयोगमा जस मन वरते के० ए रीते जेतुं मन ज्ञानयोगमां वर्ते छे तेनी अल्प क्रिया पण सोभागी के० सोभाग्यवंत जाणवी. इहां अल्प क्रिया एवो अर्थ करियें तो पूर्वापर संबंध मलें एटले ए भाव जे पोते अल्प क्रियावंत होय पण सुनिनो रागी छे तो ए रीते ज्ञानयोगमा वर्चतां अल्पक्रिया पण सौभाग्यवंती जाणवी ॥ १६ ।। बालादिक अनुकूल क्रियाथी, आपें.इच्छा योगी । अध्यात्म मुख योग अभ्यासें, केम नवि कहियें योगी ॥धन्य० १७॥ अर्थ-आ के पोते इच्छायोगीथको रहे एटले योग त्रण मकारना कह्या छे १ इच्छा योग २ शास्त्रयोग ३ सामर्थ्ययोग तथा पुनः "१ श्रद्धानाविकलो २ वाक्याविकलं ३ शक्त्यनतिक्रम" इति योगनिर्णये. ए त्रण योगमा प्रथम इच्छायोग ते श्रद्धा अविकलथकां आ के० पोते श्रद्धावंत अने क्रियावंत होय तो ते क्रियाथी वालादिक अनुकूल के बालजीव मार्गना रागी थाय एटलामां एवडो गुण छे तो अध्यात्ममुख के० अध्यात्मममुख योगसाधनना ग्रंथोनो अभ्यास करे एटले अहोरात्री अध्यात्ममां मान रहे ते पुरुषने योगीश्वर केम न कहियें एटले श्रद्धावंतथको क्रिया करतो बालजीवने उपकारी थाय छे अने साधु कहेवाय छे तो अध्यात्ममां मग्न रहेतां साधुसुनिने योगी केम न कहीयें ॥ १७ ॥ उचित क्रिया निज शक्ति छाडि, जे अति वेगे चढतो। ते भवथिति परिपाक थया विण, जगा दिसे पडतो॥धन्य०१८॥ अर्थ-वली अध्यात्ममार्ग पण पोतानी उचित शक्तिये क्रिया करतो साधे अने यथाशक्ति क्रिया मूकीने शक्ति उल्लंघन करे तो तेने गुण न थाय माटे जेटली पोतानी शक्ति होय तेटलीज क्रिया करवी एजें नाम उचित क्रिया कहिये ते रीते न करे अने जे अति वेगे चढतो के शक्तियी अधिक करे एटले ए भाव जे शक्तिने अभावें उपवास करे छठ प्रमुख करे अथवा आवापना लेवे इत्यादिक काम करतो ते प्राणी पण भवस्थिति परिपाक थया विना जगतमां पडता देखीयें छैये एटले ए भाव जे शक्ति उलंघन करीने अधिक क

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