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(१२२) जाणतां पण कपटे नहीं जे कहे एक अने चित्तमां वीजें होय एम कपटसहित नहीं तथा तुझ वचन मन आणतां के पूर्व ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः एम जाणतां तथा मन आणतां के० मवित करता थकां मुजश के० भलो जे जश ते हुं पासु एटले सुनिराज प्रमुख मुविहित लोक भलो जश वोले एवी स्याद्वाददृष्टि केम थयी ते कहे जे जे पूर्व सुविहिततणा के० पूर्वाचार्य श्री हरिभद्रसरि तथा धर्मदासगणी भाष्यकारजी उमाखाति वाचक प्रमुखना जे ग्रंथ ते जाणी करीने सम्यक् ज्ञाने करी स्याद्वाददृष्टि थयी ते एवी दृष्टितो प्रभुकृपाथी थाय ते माटे मन पासे मार्थना करे छे जे भव पयोनिधि के जे संसारसमुद्र तेने विषे तुझ कृपा के तमारी दया तद्रूप तरी के० जहाज ते मुझ होजो के मारे थजो एटले संसारसमुद्रमा तमारी कृपारूप जहाज मारे थजो ॥ २५ ॥
Press॥ ढाल सतरमी॥
ए सोलमी ढालने अंते स्याद्वाददृष्टिनी सिद्धि कही एवी दृष्टि पोतानी थयी तेथी उपनो जे हर्ष ते हर्षे करी सतरमी ढालमा वोले छे.
॥ कहखानी देशी॥ आज जिनराज मुज काज सिद्धां सवे, विनति माहरी चित्त धारी ॥ मार्ग जो में लह्यो तुझ कृपा रसथकी ॥ तो हुइ संपदा प्रगट सारी ॥ आज० ॥१॥
अर्थ-हे जिनराज आज के. जे दिवसे स्याद्वाददृष्टियें भोलखाण थयुं ते दिवसे कविश्वरतुं वर्तमान छे ते मारे आज कहिये ते आजे मारां जे कार्य ते सर्व सिद्ध थयां शा माटे जे मारी विनति चित्तमां परमेश्वरे धारी यद्यपि परमेश्वर तो वीतराग छे कोइनी विनति चिचमां घरता नयी तोपण परमेश्वरनी भक्तिज निज कार्य भक्त लोकने थयु माटे कारणे कार्योपचार करीने कहेछे के जो तुज कृपारूप रसथकी में मार्ग लयो के हुँ मार्ग लह्यो के हुँ मार्ग पाम्यो अने ते मार्ग रूप सारी के० मनोहर संपदा माहरे प्रगट थयी ॥१॥
वेगलो मत हुजे देव मुझ मन थकी, कमलना वन थको जेम परागो । चमकपाषाण जेम लोहने खेंचसे, मुक्तिने सेहेज तुझ नक्तिरागो। आज० ॥२॥