Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 281
________________ (११५) पयस्स पयं नत्थि के० अवस्था विशेप जे पद ते नथी जेने ते अपद कहिये एटले अपद ते सिद्धने पद के. जे अभिधान ते नथी एटले सिद्धने कोइ नामे कही बोलावी ते नथी. इति भावः ॥ ८॥ शुद्धता ध्यान एम निश्चयें आपनु, तुझ समापत्ति औषध सकल पापर्नु । द्रव्य अनुयोग संमति प्रमुखथी लही, भक्ति वैराग्यने ज्ञान धरिये सही ॥९॥ अर्थ-शुद्धता के० शुद्ध स्वरूप जे ध्यान तेहिज पोतानु निश्चयरूपें जाणवू. माटे हे प्रभु सर्व पापर्नु समापत्ति औषध सर्व दोप नाशन रसायन ते एकहिज छे जे शुद्ध उपयोग. लक्षण ते. अने पट द्रव्यनी विचारणा रूप अनुयोग संमतिमहावादि ग्रंथथकी जाणीने साहिवनी विधि सेवा पूर्वक निराशंसतारूप भक्ति वैराग के विषय विमुखता ज्ञान ते शुन्द्र उपयोग निश्चयथकी एहीन चित्तमां धरीय कार्य साधकता एहिज छे एटले भक्ति दशा, बैगग्यदशा, जानदशा ए त्रण कार्य साधकता छे विहां चोथो गुणठाणो भक्ति मुख्ये पांचमी छटो गुणठाणो वैराग्यदशा मुख्ये क्षीणमोहादिक गुणठाणो ज्ञानदशा मुख्ये इत्यादि द्रव्यभावें सर्व जाणवी. मुख्यता गुणतायें एकें त्रणे एक इत्यादि व्यक्तता ग्रंथांतरथी जाणवी ॥ ९ ॥ मा गाथानो अर्थ ज्ञानविमल मरिना टवा उपरथी लख्यो छे, ॥९॥ जेह अहंकार ममकारनुं बंधनं, शुद्ध नय ते दहे दहन जेम इंधनं । शुद्ध नय दीपिका मुक्ति मारग भणी, शुद्ध नय आथि छे साधुने आपणी ॥१०॥ अर्थ-जे अहंकार के० मान ममकार के० ममख तेनुं बंधनं के० कारण एटले अहंकार तथा ममकारनु मूल राग द्वेप छे ते राग द्वेपथी अहंकार तथा ममकार होय ते राग द्वेपने दहन जेम इंधन के० जेम अनि लाकडांने पाली नाखे तेनी पे शुद्ध नय के० आत्मतत चिंतनरूप ध्यान ते दहे के वाले एटले शुद्ध ध्यानयी राग द्वेष वली भस्म थाय. शुद्ध नय के निश्चय नय ते मोक्षमार्गनो दीवो छे केमके मोक्षमार्गे गमन करतां अजवाल करे माटे जे शुद्धनय तेज साधुने आपणी के० पोतानी आथी के० संपत्ति छे. यतः-"दीपिका खलु निर्वाणे, निर्वाणपथदर्शिनी । शुद्धात्मचेतना या च, साधूनामक्षयो निधिः॥१॥" इति योगनिर्णये ॥ १० ॥ सकल गणी पिटकनुं सार जेणे लघु, तेहने पण परम सार एहज कह्यु । ओघनियुक्तिमा एह विण नवि मिटे, दुःख सवि वचन ए प्रथम अंगे घटे ॥११॥

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