Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala
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ते सर्व कामदेव श्रावकनी पेठे सहे, ए चोयो भेद . कहो. ए कृतव्रतकर्माना चार भेद वखाण्या ॥४॥
सेवे आयतणा उद्देश, परगृह तजे अणुब्भडवेस। वचन विकार त्यजे शिशुलील, मधुर भणे ए षट विधशील ॥५॥
अर्थ-हवे वीजा शीलवतनामा लक्षणना छ भेद कहेछे. सेवे आयतणा के साधर्मिकने मलवानुं स्थान सेवे. यत:-"जत्थ साहम्मिया वहवे, सीलवता बहुमुया । चरित्तायारसंपन्ना, आययणं तं वियाणाहि ॥१॥" तेवो उद्देश के० स्थानक सेवे पण मिलनी पाली प्रमुख सेवे नहीं, ए पहेलो भेद. वली परगृह तजे के० पारका घरमा पेसतो नफरे, केमके काइ वस्तु खोवाय त्यारे तेना उपर शंका आवे पण कारणे कोइना घरमां जाय ते वात जूदी छे, ए बीजो भेद. तथा अणुब्भडवेस के० उद्भट वेप न पहेरे जे थकी लांठीआ ठोलीआ आदमीमां गणाय ते न करे, ए त्रीजो भेद. वली वचनविकार त्यजे के० जे थकी रागद्वेष वघे एवा विकारनां वचन वोले नहीं, ए चोथो मेद. अने शिशुलील के. वालक्रीडा, जुगहुँ रमवू इत्यादिक त्यजे, ए पांचमो भेद. वली मधुर भणे के० मीटुवोले गमेतेवु कार्य पडे तोपण हे सौम्य, हे सुंदर, आ काम करशो एम कहे ए छ भेद शीलवंतनामा गुणना जाणवा ॥ ५ ॥ हवे एज छ भेद विस्तारी देखाडे छे.
आयतन सेवे गुण पोष, परगृह गमने वाधे दोष । उद्भट वेष न शोभा लाग । वचन विकारें जागे राग ॥६॥
अर्थ-आयतन के. जे साधर्मिनां स्थानक ते सेवतांथका गुणनी पुष्टि थाय गाथा-"आययण सेवणाओ, दोसा छिज्जवि वइगुणोहो।" इतिवचनात्. पली परगृहगमने के० पारके घेर जात वाधे दोप के दोप वधे. यता-"परगिह गमणपि कलंकपंकमूलं मुसीलाणं ।" इवि वचनात्. वली उद्भट वेप ते शोभालायक नहीं. गाथा-"सहइ पसंतो धम्मी, उन्भडवेसो न सुंदरो तस्स । " इति वचनात्. सहइ के० शोमे पसंत पम्मी के०प्रशांत धर्मी उद्भटवेष तेने मुंदर नयी इति. तथा वचनना विकारे करीने राग जागे माटे विकारनां वचन कहे नहीं. यतः-"सपियारजंपियाई, नृणमुईरंति रागगि।" इति वाक्यात्. ते माटे न कहे. यत:मुणमाणस्स कह, मुठ्ठयरं जलइ माणसे मयणो। समणेण सावरण वि न सा कहा होइ कहियन्वा ॥१॥" इति वचनात् ॥६॥
मोहतणो शिशुलीला लिंग, अनर्थ दंड अछे ए चंग । कठिन वचननुं जल्पन जेह, धर्मिने नहि सम्मत तेह ॥७॥ अर्थ-जे शिशुलीला के० बालक्रीडा ते मोहवणो के मोह लिंग छे वली केवी के अनर्थ दंड छे ते जीवने चंग के मनोहर लागे छे. यतः-" बालिसजणकीला विहु,

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