Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ एम कहे छे माटे हे मनमोहन जिनजी अथवा मनने मोहना उपजावणहार एवा जे जिनेश्वर तेनो संवोधन करिये जे हे मनमोहन जिनजी तुजवयणे के तमारा वचनने विषे मुझने रंग छे रीझ छे ॥१॥ नवि जाणे ते सर्व त्यजीने, एक अहिंसा रंग। केवल लौकिक नीति होवे, लोकोत्तर पंथ भंग ।। मन० २॥ अर्थ-तेहने उत्तर आपे छे के ते अज्ञानी नयी जाणता नथी समजता जे सर्व पूजा प्रभावना सामिवत्सल प्रमुख करणी त्यजीने मात्र एक अहिंसाने विषेज रंग के० रीझकरे छे तेथी केवल लौकिक के० व्यवहार नीति करीने एटले लौकिक व्यवहारमा एक दया दया पोकारे ते सारी लागे पण लोकोत्तर मार्ग जे जिनमार्ग तेहनो भंग थाय छे एटछे एकली दयामां जिनशासन नथी पण जिन आज्ञामां शासन पवनै छे एकली दयायें तो पडिक्मणा सह प्रमुख पण न करी शके तो पूजा प्रभावनानी वात तो वेगली रही इति भावः ॥२॥ वनमां वसतो बाल तपखी, गुरु निश्राविण साध । एक अहिंसायें ते राचे, न लहे मर्म अगाध ॥ मन०३॥ अर्थ-एक तो वाल तपस्वी जे अज्ञान तपस्वी ते पण वनमां वसतो एटले घोर कष्टनो करणहार तथा वीजो गुरुनिश्राविण के० गुरुआणाविना ए बेहु एक अहिंसायें ते राचे के. एक अहिंसा मुखे कडे एटले वाह्यजीवनी रक्षा करवी एटलामांज रीझछे पण ते अहिंसानो अगाध के ऊंडो मर्म छे ते मूढ न जाणे एटले स्वआत्मा हणाय ते हिंसा अने खात्मा न हणाय ते अहिंसा एहवा मर्मनी तेने खबर नथी ॥ ३ । जीवादिक जेम बाल तपस्वी, अणजाणतो मूढ । गुरुलघुभाव तथा अणलहेतो, गुरुवर्जित मुनि गूढ ॥ मन०४ ।। अर्थ-हवे कोइ कहेशे जे वालतपस्वी तथा साधु ए थे वरावर केम थाय तेने कहे के के जेम पालनपखी ते जीव अजीव पुन्य पाप प्रमुखलु यथार्थ स्वरूप ते मूढ अजाणतोके० अणसमजतो थको जेम ते होय तथा के० तेमज गुरुलघुभाव अणलहेतो के० हलका भारे लाम खोटने अणजाणवो जे आईं प्रायश्चित्त करशुं ते करतां बीजी करणीमां यद्यपि मायश्चित छे तोपण लाभ घणोछे इत्यादिक वातोयी अणसमजु छ जे माटे गुरुवर्जित मुनि के. गुरुयेकरी रहित एहवा जे मुनि ते गूढ के० गुप्त रहस्य जे होयं तेवा गुरु अने लघु भावने न लहे इतिभावः ए रीतें गूढ शब्द गुरु लघुभावने जोडीयें ॥ ४ ॥ भाव मोचक परिणाम सरिखो, तेहनो शुभ उद्देश । . आणारहितपणे जाणोजे, जोइ पद उपदेश ॥ मन० ५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295