Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 212
________________ ·(18) गुरुने नहीं आदरे तो सर्वनो त्यागं करवो पडशे ते कहे छे. जे पांच प्रकारना निग्रंथ अने चउद प्रकारनी अभ्यंतर गंठी तथा नव प्रकारनी बाह्यग्रंठी तेथी भूकाणा ते निग्रंथ कहीयें. यतः- “गथो मिच्छचाई, घणाइओ अंतरो य वज्झो य । दुविहाओ तओ जे, निम्गयंति ते हुति निग्गंथा ॥१॥ मिच्छतं वेयतियं, हासाई छक्यं च नायव्वं । कोहाईणं चलकं, चउदस अभितरा गंथी ||२|| धणधन्नखित्तकुवयं, वत्थु दुपय कणय रूप चउचरणा । नव वाहिरया गंथी, एवं ते हुंति पुण पंच ॥३॥” सुगमं नवरं चउचरणा के० चतुष्पद इति १ पुलाग २ बकुस ३ कुशील ४ निग्रंथ ५ सनातक एनां लक्षण भगवतिसूत्रना शतक २५ में उद्देशे छ जोजो ए पांच का तेमां १ पुलाग २ निग्रंथ ३ सनातक ए त्रण तो प्रतिसेवा रहित जाणवा अने बस तथा कुशील ए बेहुने प्रतिसेवा छे. गाथा - "मूलत्तरगुणविसया, पडिसेवा सेवए कुंसीलोय | उत्तरगुणे वउसो, सेसा पडिसेंबणा रहिया ॥ ४ ॥" तेमां पण निग्रंथ तथा संनातक तो श्रेणीविच्छेदगइ तेमां गया तथा पुलाग लब्धि पण विच्छेदगइ ते माटे ए त्रण जंबूस्वामी साथे विछेद गयां ते हेतुयें वकुस तथा कुशील ए बेहुयी तीर्थ चाले छे. यतः“निगंथसिणायाणं, पुलाग सहियाण तिण्ह वुच्छेओ । समणा बक्कुसकुसीला, जा तित्थं ताव डोहित || ५| " जे माटे ते छठ्ठा सातमा गुणठाणावंत होय ते अंतरमुहूर्ते अवश्य परावर्त्त थाय ते वारे छट्ठे गुणठाणे आवे तिहां अवश्य प्रमच दोषनो लव मात्र देखीने गुरुनो त्याग केम थाय? अने ते त्याग करीश तो जगतमां आजना कार्ले निर्दोष कोइ नहीं लाये. ते माटे लवमात्र दोष लागते पण वक्कुस तथा कुशील ए बेहु जातिना मुनि ते थिरपरिणामी एटले तेहना परिणाम अति उन्मार्गे नयी चालता अथवा थिरपरिणामी के० ए वे मुनि थिरपरि - नामे छे एटले पंचमआराना छेडा लगे एहिज छे माटे नछंडाए इतिभाव एहनो विस्तार धर्मरत्न ग्रंथनी वृत्तिथी जाणवो ॥ २ ॥ ज्ञानाविक गुण पण गुरुवादिक मांहे जोय, सर्व प्रकारें निर्गुण नवि आदरवो होय | ते छांडे गीतारथ जे जाणे विधि सर्व, ग्लानौषध दृष्टांते मूढ धरे मन गर्व ॥ ३ ॥ अर्थ - ते माटे ज्ञानादिक के० ज्ञान दर्शन चारित्र मांहेलो हरकोई उत्कृष्ट गुण पण गुरु आदिकमां जोइयें पण सर्वप्रकारें के० सर्वथा निर्गुण होय तो न आदरीयें माटे जे गीतार्थ डोय तथा जे प्राणी उत्सर्ग अपवाद प्रमुखनी सर्व विधि जाणता होय वे छांडे के० गच्छने पण निर्गुण जाणीने छांडे ते उपर दृष्टांत कहे छे-ग्लानौषध के० जेम रोगीने औषध ते जिहां लगे रोग तिहां लगें औषध तेम जिहां लगे अगीतार्थ तिहां लगे औषध सदृश गच्छ अने ज्यारे निरोगी सदृशगीतार्थ थयो त्यारे औषधरूप गच्छनुं काम नहीं ते माटे मूढ के० जे मूर्ख छे ते अहंकार मनमां धरीने गच्छ बाहिर निकले छे इहां कोई बीजीरीते

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