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( ५१ ) गयो ने समुद्रमां पातालमां जइ पेठो पछी श्रीकृष्णप्रमुखें विचारयुं जे ब्रह्मा तो भूतसरिखा केम देखाय छे एम विचार करतां श्रीकृष्णे जाण्युं जे शंखदैत्य चारे वेद लइ गयो छे हवे हुँ लेइ आवुं एम विचार करी मत्स्यावतार धरी शंखासुरना भवनमां गयो त्यां बालक रूप धरी तेनी स्त्री पासे बेठो ते खीयें जाण्युं जे आपणे मनोहर बालक पाम्या पछी तेने रमाडवा बेठी एटलामां शंखासुरना पेटमां चारे वेद वातो करवा लाग्या जे आपणी वाहार करवा ठाकोरजी आव्या छे ते वात सांगली शंखासुरे जाण्युं जे अनर्थ थयो पछी खोने क जे बालक मूकी धो पण स्त्रीयें न मूक्युं त्यारें बालकने मारवा दोड्यो तेथी स्त्रीयें बालकने मूकी दीधुं पछी ते बालकें ते दैत्यसाथ युद्ध करी मच्छरूपें थइ दैत्यने मारी तेना पेटमाथी चारे वेद लइ श्रीकृष्ण पाणीमांथी बहार आव्या ते माटे प्रथम मच्छावतार लीधो ए अधिकार शिवमार्गना शासने दशावतार ग्रंथ मध्ये कां छे इहां दृष्टांते लख्युं छं बली ने अगीतार्थ होय ते उत्सर्ग अपवादादिक सर्व विधिओना भेद न जाणे माटे अगीतार्थने एकलो विहार न होय इतिभावः ॥ ९ ॥
कारणथी एकाकीपणं पण भाष्युं तास, विषमकालमां तो पण रुडो भेलो बास ।
पंचकल्प भाष्यें भण्युं आतम रक्षण एम, शालि एरंड तणे एम भांगे लहिए खेम ॥ १० ॥
अर्थ- वली कोइ कशे जे श्रीउत्तराध्ययन मध्ये एकाकीपणानी हा केम कही यथा"इक्कोवि पावाई विवज्जयंतो, विहरिज्ज कामेसु असज्जमाणो ।” इति वचनात् . तेने उत्तर जे गीतार्थ होय तास के० तेने कोइक कारणथी एकाकीपणुं पण भाष्यु के० कनुं छे यथा तिहांज काव्यम् - " न वा लभिज्जा निउर्णसहायं, गुणाहियं वा गुणओ सभं वा ।" इति वचनात्. तोपण विषमकालमा के० आ पांचमा आरामां हुंडाअवसर्पिणी कालमां रुडो मेलो वास के० भेला वसवुं तेज रुई पण एकाकी बसवुं रुहुं नहीं एम पंचकल्प भाष्यने विषे कर्तुं छे. आतमरक्षण एम के० जे संगमरूप आत्मा तेनी रक्षा ते एमज थाय अथवा आत्मा ने शरीर अभेद छे माटे आतम के० शरीरनी रक्षा पण एम के० एमज भेला वसतां थकां होय. इहां शालि तथा एरंडनी चोभंगी छे १ शालिनो वृक्ष अने शालिनी वाडी २ शालिनो वृक्ष अने एरंडनी वाडी ३ एरंडनो वृक्ष अने शालिनी वाडी ४ एरंडंनो वृक्ष अने एरंडनी वाडी ए चोभंगीमांथी शालि. तथा एरंडना त्रण भांगे वसतां तो खेम के कल्याण छे इति अक्षरार्थ. भावार्थ तो एछे जे शालिसरिखा गीतार्थ एटले आचार्य अने एरंडसरिखा मूर्ख तेनी चोभंगी देखाडे छे - १ गीतार्थ आचार्य अने जे गीतार्थनो परिवार ते वाडी पण गीतार्थनी २ गीतार्थ आचार्य अने मूर्खपरिवारनी वाडी ३ मूर्ख आचार्य अने गीतार्थना परिवारनी वाडी एत्रण भांगालगे कोइक रीते आज्ञा के पण मूर्ख आचार्य अने सूर्ख परिवार ए मांगों तो
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